scriptरोजगार का रिपोर्ट कार्ड भी तो बताओ- उठते सवालों पर एक नजर! | Read the Artical on Employment in Rajasthan | Patrika News

रोजगार का रिपोर्ट कार्ड भी तो बताओ- उठते सवालों पर एक नजर!

locationजयपुरPublished: Nov 10, 2017 10:35:03 pm

जरूरत है पाठ्यक्रमों में बदलाव की। मानव संसाधन का बेहतर उपयोग हो, इस पर विचार किए जाने की।

Rajasthan University
संदीप पुरोहित।

राजस्थान यूनिवर्सिटी मेें एक और दीक्षांत समारोह जैसा कार्यक्रम संपन्न हो गया। एक बार फिर मेडल बांटकर इतिश्री कर ली गई। हाथ में डिग्री तो आ गई, पर रोजगार नहीं। हर हाथ को काम चाहिए, डिग्री नहीं। उन डिग्रियों का महत्व ही क्या है, जो रोजगार का सृजन नहीं करे। लगता है कि उच्च शिक्षा के ये मंदिर दिशा भटक गए हैं। यहां अब न व्यक्तित्व का निर्माण हो रहा है और न ही जीविकोपार्जन का जरिया मिल पा रहा है। हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। बेरोजगारों की फौज बढ़ती ही जा रही है। यूनिवर्सिटी और उसके कर्ता-धर्ता उसी पुराने ढर्रे पर चल रहे हैं।
क्लास लग जाए तो ठीक, नहीं लगे तो भी कोई खास बात नहीं। सत्र पूरा हो ही जाएगा, परीक्षाएं भी हो ही जाएंगी। डिग्री दे ही देंगे। इसके आगे इनकी जि मेदारी खत्म हो गई लगती है। रोजगार सृजन का अपना दायित्व तो ये मानते ही नहीं हैं। अगर मानते तो इनका प्लेसमेंट सेल कुछ तो करता। दीक्षांत समारोह में मेडल बांटने के साथ रोजगार का रिपोर्ट कार्ड भी पेश करते। पर बताने के लिए कुछ हो तो बताएं न!
अगर हम 2016 की बात करें, तो 2 लाख 40 हजार डिग्रीधारी हो गए हैं। सवाल यह है कि इनमें से कितनों को रोजगार मिला होगा? यह हाल तो अकेले राजस्थान यूनिवर्सिटी का है। यहां खानापूर्ति के लिए सेंट्रल प्लेसमेंट सेल बनी हुई है। हैरानी की बात यह भी है कि वेबसाइट पर प्रदर्शित इस प्लेसमेंट सेल के संरक्षक आज भी पूर्व कुलपति जेपी सिंघल ही हैं, जबकि वे अपने पद से इस्तीफा दे चुके हैं। इस सेल ने पिछले साल जुलाई में मेगा प्लेसमेंट फेयर का आयोजन किया, जिसमें केवल 449 विद्यार्थियों को ही नौकरी मिल सकी। प्लेसमेंट से जुड़ी सूचनाएं इस वेबसाइट पर अपडेट तक नहीं की गई हैं।
प्रदेश और देश की आज सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी ही है। आज जरूरत है पाठ्यक्रमों में बदलाव की। मानव संसाधन का बेहतर उपयोग हो, इस पर विचार किए जाने की। मानव संसाधन मंत्रालय और यूजीसी को इसे गंभीरता से लेना चाहिए। राज्यपाल और कुलाधिपति जो कि खुद भी लंबे समय तक जनप्रतिनिधि रहे हैं, उन्हें समीक्षा करानी चाहिए। बेहतर होगा कि प्रदेश के सभी विश्वविद्यालयों का पुनर्गठन हो। जिन विभागों की आवश्यकता नहीं है, उन्हें तुरंत बंद किया जाना चाहिए। विभागों और उनके आउटपुट की समीक्षा भी होनी चाहिए।
पहले तो राजस्थान यूनिवर्सिटी में प्रोफेशनल कोर्स चल ही नहीं रहे हैं। जो चल भी रहे हैं, तो उनके हालात बेहद खराब हैं। कहीं फंड नहीं है, तो कहीं फैकल्टी नहीं है। फंड बचे कैसे, यूनिवर्सिटी में सैलेरी के ओवर हैड हद से कहीं ज्यादा हैं। पचास फीसदी लोगों का तो कोई आउटपुट ही नहीं है। बस एक बार नौकरी लग गई तो रिटायर ही होंगे। यह नहीं होकर हर पांच साल में असेसमेंट होना चाहिए। नॉन टीचिंग स्टाफ कम करना चाहिए, अधिकतर काम-काज भी ऑनलाइन होना चाहिए। टीचर्स को अकाउंटेबल बनाना भी जरूरी है। स्वायत्तता का अर्थ यह नहीं है कि आप स्वच्छंद हैं।
आपको विद्यार्थियों के भविष्य के प्रति उत्तरदायी तो होना ही पड़ेगा। क्लास की अनिवार्यता विद्यार्थी और शिक्षक दोनों के लिए ही है। बायोमैट्रिक अटेंडेंस होनी चाहिए। यूनिवर्सिटी अब प्रो. पाई, प्रो. सीएस बरला, प्रो. पांडे, प्रो. इकबाल नारायण, प्रो. मल्होत्रा और प्रो. दयाकृष्ण जैसे नामचीन प्रोफेसरों के लिए तरस रही है। वक्त की जरूरत के साथ अगर विश्वविद्यालय नहीं ढले, तो ये महज बेरोजगार उत्पन्न करने की फैक्ट्री मात्र बनकर रह जाएंगे।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो