जयपुर

बजरी खनन के मामलों पर सीईसी से छह सप्ताह में मांगी रिपोर्ट

अवैध बजरी खनन पर रोक लगाने के लिए उठाए कदमों की राज्य सरकार को चार सप्ताह में देनी होगी रिपोर्ट

जयपुरFeb 19, 2020 / 09:34 pm

KAMLESH AGARWAL

एससी-एसटी एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

जयपुर।
बजरी खनन को लेकर दायर 17 याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को सुनवाई हुई। राज्य सरकार को फटकार लगाते हुए न्यायालय ने अवैध बजरी खनन पर राजस्थान सरकार, जिला कलेक्टर और पुलिस अधीक्षकों को कदम उठाने को कहा। इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने सेंटर एम्पावर्ड कमेटी यानि सीईसी को अवैध बजरी खनन रोकने के सुझाव सहित अन्य सभी मुद्दों पर छह सप्ताह में सुझाव देने के आदेश दिए हैं।

मुख्य न्यायाधीश एसए बोब्डे, न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायाधीश सूर्यकांत ने राजस्थान में बजरी खनन के मामले पर सुनवाई की। न्यायालय ने सीइसी को पूरे मुद्दे पर विचार कर छह सप्ताह में रिपोर्ट देने का आदेश दिया है। इसी के साथ बड़े पैमाने पर अवैध खनन के मुद्दे पर राज्य सरकार विशेष तौर पर जिला कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक को कदम उठाने को कहा है। न्यायालय ने मान कि अवैध बजरी खनन से पर्यावरण को अपूरणीय क्षति होेने की संभावना है।
राजस्थान सरकार से भी मांगा रिपोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार को अवैध खनन पर अंकुश लगाने के आदेश दिए हैं। सरकार को इस संबंध में उठाए गए कदमों की जानकारी के साथ चार सप्ताह में रिपोर्ट देने को कहा है।
यह है सीईसी का जिम्मा

सीईसी बजरी के अवैध खनन के मुद्दे पर भी विचार करेगी। अवैध खनन के लिए जिम्मेदारी तय करते हुए रोकने के सुझाव भी देगी। सीइसी इसके लिए राज्य सरकार के किसी भी अधिकारी को सम्मन कर सकती है। मामले में सभी पक्षकारों को सीईसी के पास जाने के लिए कहा गया है। कमेटी को निर्देश दिया कि रेत कारोबारियों , इस कारोबार से जुड़े लोगों की समस्याओं पर भी विचार करे।
इनकी है याचिका
सुप्रीम कोर्ट में राजस्थान में बजरी खनन पर लगी रोक के संबंध में दायर 17 याचिकाओं पर सुनवाई की है। इसमें बजरी लीज होल्डर्स वेलफेयर सोसाइटी, एनजीओ दस्तक, नवीन शर्मा और कुछ अन्य निजी पक्षकार शामिल है।
दिसंबर में हुई थी सुनवाई

पिछली सुनवाई पर राज्य सरकार ने कहा था कि राज्य सरकार की ओर से 82 खानों के एलओआई (मंशापत्र) जारी किए है। इन मामलों में खान संचालन को लेकर पर्यावरणीय अनापत्ति प्रमाण पत्र के लिए केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय में एलओआई धारकों ने आवेदन किए थे। लेकिन इनमें से करीब 12 मामलों में अनापत्ति प्रमाण पत्र मिल चुके हैं। शेष 70 मामले अब भी लंबित चल रहे हैं।
यह आना है फैसला…
न्यायालय में पर्यावरणीय अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी किए जाने के साथ ही इस पर सुनवाई हो रही है कि खानों के एलओआई धारकों के एलओआई जिंदा रखे जाएं फिर खानों की नीलामी में रखी गई पांच साल की अवधि समाप्त समझी जाए। खानों की नीलाम राजस्थान सरकार ने वर्ष 2012 में की थी। उसके कुछ समय बाद ही खानें बिना पर्यावरणीय अनापत्ति प्रमाण पत्र के चालू करा दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने 16 नवंबर 2017 को भी 82 एलओआई होल्डर द्वारा किए जा रहे बजरी खनन पर रोक लगाने का आदेश दिया था। कोर्ट ने यह रोक केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय से पर्यावरण स्वीकृति लिए बिना खनन किए जाने पर लगाई थी।
दो साल में 22 सौ एफआईआर

मामले में अवमानना याचिका लगाने वाले नवीन शर्मा ने कहा कि प्रदेश सरकार ने स्वीकार किया है कि अवैध बजरी खनन व्यापक स्तर पर हो रहा है। पिछले दो साल में 2200 एफआईआर की गई है। जबकि प्रतिदिन 5 से 7 हजार ट्रक अवैध बजरी खनन हो रहा है। प्रदेश सरकार आंख मूंदकर बैठी है और बड़े स्तर पर अवैध खनन से बजरी माफिया पनप रहे हैं। इसके चलते आम जनता को तीन गुना कीमत में बजरी खरीदनी पड़ रही है।
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