नौकरियों और पदोन्नति में आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं: शीर्ष कोर्ट
उत्तराखंड की अपील: हाईकोर्ट का फैसला पलटा

नई दिल्ली.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अनुसूचित जाति-जनजाति के लोगों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण और पदोन्नति देने के लिए राज्य सरकारें बाध्य नहीं हैं क्योंकि यह ऐसा कोई मौलिक अधिकार नहीं है, जो किसी व्यक्ति को पदोन्नति में आरक्षण का दावा करने के लिए विरासत में मिला हो। अदालत द्वारा राज्य सरकारों को आरक्षण प्रदान करने के लिए कोई निर्देश जारी नहीं किया जा सकता। यह राज्य सरकारों की इच्छा पर निर्भर है। कोई भी अदालत किसी राज्य सरकार को एससी/एसटी समुदाय को आरक्षण देने का आदेश नहीं दे सकती। यह राज्य सरकार के विवेक पर निर्भर करता है कि वह आरक्षण दे या नहीं या प्रमोशन में आरक्षण दे या नहीं। जस्टिस एल नागेश्वर राव व जस्टिस हेमंत गुप्ता की बेंच ने यह फैसला उत्तराखंड सरकार के लोक निर्माण विभाग में सहायक अभियंता पदों पर पदोन्नति में अनुसूचित जाति /अनुसूचित जनजाति समुदाय को आरक्षण की अपील पर सुनाया।
हाईकोर्ट ने 2012 दिया था फैसला
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के 2012 में दिए फैसले को पलट दिया है, जिसमें राज्य को निर्दिष्ट समुदायों को कोटा देनेे का निर्देश दिया था। उस समय वकीलों का तर्क था कि राज्य में संविधान के अनुच्छेद 16 (4) और 16 (4-ए) के तहत एससी / एसटी की मदद का कर्तव्य था।
सही आंकड़ों को जुटाना भी जरूरी
एससी/एसटी समुदाय को सरकारी नौकरियों में प्रतिनिधित्व के संबंध में सही आंकड़े जुटाने के संबंध में शीर्ष अदालत ने कहा कि आरक्षण देने से पहले इन आंकड़ों को जुटाना जरूरी होगा और अगर राज्य सरकारों ने आरक्षण नहीं देने का फैसला किया है तब इसकी जरूरत नहीं होगी।
फैसले की जिमेदारी भाजपा पर, आंदोलन करेंगे: कांग्रेस
कांग्रेस महासचिव मुकुल वासनिक व दलित नेता उदित राज ने एक संवाददाता समेलन में कहा कि कांग्रेस अदालत के इस फैसले से असहमत है। फैसले की वजह भाजपा शासित उत्तराखंड सरकार के वकीलों की दलील है। इसलिए इसकी जिमेदारी भाजपा की है। कांग्रेस इसके खिलाफ देश भर में आंदोलन करेगी और सोमवार को संसद में भी इस विषय को उठाएगी।
माकपा पोलित ब्यूरो की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि केन्द्र सरकार को संसद के दोनों सदनों में विधायी तरीके से आरक्षण को लागू करने के प्रावधानों में आने वाली बाधाओं को दूर करना चाहिए। इसके साथ ही न्यायालय के फैसले में आरक्षण की व्याया की समीक्षा करने के लिए सभी संबंधित कानूनी उपायों का पता लगाया जाना चाहिए। पार्टी ने कहा कि उसका मानना है कि अनुसूचित जाति एवं जनजाति व पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण अनिवार्य है।
आदेश मिलने पर कुछ कह सकते हैं
सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला उत्तराखंड राज्य सरकार की अपील पर दिया है। अभी आदेश की प्रति नहीं मिली है। इसके परीक्षण के बाद ही इस मामले में कुछ कह सकते हैं। इसे मध्यप्रदेश में लागू किया जाएगा या नहीं आदेश देखे बिना कुछ भी कहना उचित नहीं है।
एसआर मोहंती, मुख्य सचिव मध्यप्रदेश
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