दरअसल, बेनीवाल उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय न्यायाधीश (वेतन और सेवा की शर्तें) संशोधन विधेयक, 2021 की चर्चा में भाग ले रहे थे। इस दौरान उन्होंने कहा कि दलित-आदिवासी-पिछड़ों और अल्पसंख्यकों की बात नहीं सुनी जाती। उन्हें न्याय नहीं मिलता और जहां खुद पारदर्शिता नहीं है, वहां हम न्याय की अपेक्षा कैसे कर सकते हैं। उन्होंने सवाल किया कि लोकतंत्र के दो स्तंभ विधान पालिका और कार्यपालिका में आरक्षण है तो न्यायपालिका में क्यों नहीं? कोलीजियम पद्धति में न्यायाधीश ही न्यायाधीश की नियुक्ति करते हैं।
उन्होंने आरक्षण जैसी समावेशी व्यवस्था को न्यायपालिका में तरजीह नहीं दी गई? उन्होंने कहा कि विभिन्न उच्च न्यायालयों में 400 से अधिक रिक्तियां हैं। यह स्थिति तब और चिंताजनक हो जाती है जब निचली अदालतों में करीब 3.8 करोड़, उच्च न्यायालयों में 57 लाख से अधिक तथा उच्चतम न्यायालय में एक लाख से अधिक मामले लंबित हैं। सांसद ने कहा कि राजस्थान उच्च न्यायालय में न्यायाधीश के पद पर पिछड़े वर्ग का कोई व्यक्ति नियुक्त नहीं है।
-जन-धन खातों से राशि काटना ठीक नहीं
शून्यकाल में बेनीवाल ने प्रधानमंत्री जन-धन योजना के खाता धारकों से स्टेट बैंक ऑफ इंडिया सहित अन्य बैंकों के डिजिटल ट्रांजेक्शन के नाम पर गलत रूप से काटे गए शुल्क का मुद्दा उठाया। उन्होंने आईआईटी बॉम्बे की ट्रांजेक्शन शुल्क की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि 2017 से 2019 तक महीने में 4 से अधिक डिजिटल लेन देन पर 12 करोड़ जन धन खाता धारकों से स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने164 करोड़ रुपए वसूले। इस राशि को खाता धारकों को लौटाने की मांग की।
शून्यकाल में बेनीवाल ने प्रधानमंत्री जन-धन योजना के खाता धारकों से स्टेट बैंक ऑफ इंडिया सहित अन्य बैंकों के डिजिटल ट्रांजेक्शन के नाम पर गलत रूप से काटे गए शुल्क का मुद्दा उठाया। उन्होंने आईआईटी बॉम्बे की ट्रांजेक्शन शुल्क की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि 2017 से 2019 तक महीने में 4 से अधिक डिजिटल लेन देन पर 12 करोड़ जन धन खाता धारकों से स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने164 करोड़ रुपए वसूले। इस राशि को खाता धारकों को लौटाने की मांग की।