अधिकारियों ने बताया कि जयपुर विकास प्राधिकारण, अजमेर विकास प्राधिकरण सहित सभी निकायों की जमीनों का बेचान नहीं हो पा रहा है। बाजार की स्थिति ठीक नहीं है और आरक्षित दरें बहुत ज्यादा हैं। इस पर तय किया गया कि एक कमेटी का गठन किया जाएगा जो इस संबंध में सुझाव देगी।
इसमें आरक्षित दरों में संशोधन, नीलामी के बाद जमीन के पैसे चुकाने का शेड्यूल भी बदलने को लेकर सुझाव दिए जाएंगे। इसके अलावा यह भी विचार किया जा रहा है कि आरक्षित दरों को डीएलसी दरों से अलग कर दिया जाए। बैठक में प्रमुख सचिव यूडीएच भास्कर ए सावंत, जेडीसी टी. रविकांत, एसएसजी सचिव भवानी सिंह देथा, डीएलबी उज्जवल राठौड़, निदेशक वित्त अशोक सिंह सहित अनेक अधिकारी उपस्थित रहे।
आरक्षित दरों को अलग किया जाएगा
बैठक में विचार किया गया कि आरक्षित दरों को डीएलसी दरों से अलग किया जाएगा। अभी डीएलसी दरों की डेढ़ गुना आरक्षित दरें होती हैं। शहर के ज्यादातर इलाकों में डीएलसी दरें बहुत ज्यादा है।
इन दरों में संशोधन का अधिकार यूडीएच को नहीं है, ऐसे में आरक्षित दरों को इनसे अलग किया जाएगा। ताकि बाजार की वर्तमान स्थिति के आधार पर इन दरों को तय किया जा सके। मामले के जानकार भी मानते हैं कि नीलामी के लिए जमीन की न्यूनतम विक्रय मूल्य तय करने का फार्मूला मौजूदा परिस्थितयों में अतार्किक हो चुका है। बाजार की मांग के अनुसार इस फार्मूले में आमूलचूल बदलाव की आवश्यकता है। इसके लिए सरकार के स्तर पर नीलामी की नई नीति बनाना वाकई एक अच्छा कदम है।
अभी हाल खराब
भूमि के आवंटन और नीलामी से होने वाली आय शहरी निकायों के राजस्व का प्रमुख स्त्रोत रही है। लेकिन पिछले चार-पांच सालों में नीलामी से होने वाली आय के तय लक्ष्य अधिकतर शहरी निकायों की ओर से पूरे नहीं किए गए हैं। जयपुर विकास प्राधिकारण सहित अन्य विकास प्राधिकरण, नगर सुधार न्यासों और कई शहरी निकायों के यही हाल है। इसका सीधा असर निकायों की ओर से कराए जा रहे है विकास कार्यों पर पड़ रहा है। कई निकायों में तो शहर की सफाई और रोडलाइट जैसे रोजमर्रा के कार्यों के लिए भी पैसे की कमी है।