कुछ दिनों पहले ही सेंट्रल कौंसिल ऑफ इंडियन मेडिसिन सिस्टम की ओर से एक राजपत्र जारी किया गया। इसके अनुसार आयुर्वेद चिकित्सक को दो साल के कोर्स के बाद जनरल सर्जरी, नाक, कान, गला, आंख, दंत सर्जरी के साथ 58 तरह के ऑपरेशन के लिए अधिकृत किया जाएगा। एलोपैथ के डॉक्टर्स का कहना है कि आधुनिक चिकित्सा पद्धति में विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग विशेषज्ञ होना जरूरी है। इस राजपत्र में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि प्रीएनेस्थेटिक, एनेस्थेटिक और पोस्ट ऑपरेटिव पीरियड में वो किस पद्धति की दवाइयों का उपयोग करेंगे। ऐसे में मिक्सोपैथी मरीजों के लिए खतरा बन सकता है। डॉक्टर्स कह रहे हैं कि इससे नई मेडिकल शिक्षा नीति के तहत इंटीग्रेटेड मेडिकल सिस्टम का प्रावधान किए जाने से 2030 तक आधुनिक चिकित्सा पद्धति के चिकित्सक खत्म हो जाएंगे।
अखिल राजस्थान राज्य सेवारत चिकित्सक संघ की ओर से 11 दिसम्बर को काली पट्टी बांधकर विरोध जताया जाएगा। संघ के प्रदेशाध्यक्ष डॉ अजय चौधरी ने सेंट्रल कॉउन्सिल आफ इंडिया मेडिसिन की ओर से आयुर्वेद में शल्य चिकित्सा में पीजी डिग्री धारकों को 58 प्रकार की शल्य चिकित्सा की अनुमति देने से संबंधित जारी किए गए आदेश को असंवैधानिक, गैर जरूरी व मरीजों के लिए अहितकारी करार दिया है।
अखिल राजस्थान राज्य सेवारत चिकित्सक संघ के प्रदेशाध्यक्ष डॉ. अजय चौधरी ने बताया कि आयुर्वेद में शल्य चिकित्सा की अनुमति दिया जाना निंदनीय है। उन्होंने केंद्र सरकार से अपील की है कि जनस्वास्थ्य से खिलवाड़ करने वाले व चिकित्सा की मूल भावना के खिलाफ जारी किए गए इस आदेश को वापस लिया जाए। ‘