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पढ़ें गर्मी का एक बेहद रोचक किस्सा: जब वायरलैस पर मैसेज चला कि गांव में पापड़ को लेकर हो रहा है झगड़ा

locationजयपुरPublished: Jun 06, 2019 06:32:38 pm

Submitted by:

Nidhi Mishra

रिटायर्ड IPS हरिराम मीणा की जुबानी— झगड़ा पापड़ का
 

retd IPS shares interesting incident on scorching heat in Rajasthan

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हरिराम मीणा/ जयपुर। इन दिनों राजस्थान में भयंकर गर्मी पड़ रही है। सबसे अधिक तापमान वाले जिलों में चूरू का नाम आता रहा है। चूरू की गर्मी के साथ मुझे पापड़ का किस्सा याद आ रहा है। यूं पापड़ को लेकर कई तरह के मुहावरे प्रचलित हैं जिनमें ‘पापड़ बेलना’ ‘वो मारा पापड़ वाले को’, ‘मार दिया पापड़ वाले ने’ वगैरह शामिल हैं. पापड़ बेलने में अधिक मेहनत नहीं करनी पड़ती फिर भी ‘पापड़ बेलने’ की कहावत को बेहद मेहनत करने से जोड़ दिया गया है. मैं जब चूरू में एस.पी. के पद पर कार्यरत था तब वहाँ के देहाती पुलिस थाना भालेरी के वायरलैस सेट के मार्फ़त यह सन्देश दिया जा रहा था कि ‘गाँव में पापड़ को लेकर झगड़ा हो रहा है,’ मैंने वह मैसेज सुन लिया. मैं कहीं कानून व्यवस्था के मसले को लेकर उलझा हुआ था, इसलिए उस वक्त पापड़ के झगड़े पर ध्यान देना मुमकिन नहीं था. वैसे भी मैंने यह सोचा कि पापड़ जैसी हल्की चीज को लेकर कोई बड़ा दंगा नहीं हो सकता.
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घर लौटते मुझे शाम हो गयी थी. डिनर के दौरान जब मेरे अर्दली ने मुझे पापड़ परोसा तब यकायक दिन में दिए जा रहे पापड़ वाले वायरलैस मैसेज की याद आ गयी. दिन भर चले कानून व्यवस्था के मुद्दे को सुलझाने के लिए मुझे बहुत ‘पापड़ बेलने’ पड़े थे. जब मैं सोने लगा तो मेरे अचेतन मस्तिष्क पर पापड़ की बात ने पूरी तरह से कब्ज़ा कर रखा था. पुलिसवालों के लिए छुट्टी व नींद का सबसे बड़ा संकट होता है. इसलिए बैड पर लेटते ही नींद आ गयी. नींद में भी मुझे चारों दिशाओं में पापड़ ही पापड़ नज़र आने लगे. अगली सुबह मैंने महसूस किया कि पापड़ों का हेंग-ओवर अभी भी माथा पर सवार था. संयोग से वह राजकीय अवकाश का दिन था. वैसे भी फुर्सत सी थी. दोपहर के भोजन के वक्त अर्दली ने फिर पापड़ परोसा. खाना खाकर मैं अपने निवास के पिछले बरामदा में बैठा था.
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जेठ मास की भीषण गर्मी चल रही थी. उस समय मैं अकेला था. किचन में से मैंने दो पापड़ निकाले और उन्हें मार्बल से पटे आँगन में अलग अलग रख दिया. मैंने ऐसा इसलिए किया ताकि मैं देख सकूं कि आग उगलती धूप में पापड़ किस हद तक सिक सकते हैं? मैं अपने इस प्रयोग में काफी हद तक सफल रहा. दोपहर में करीब तीन घंटा बाद उन पापड़ों में से एक का हिस्सा चखकर देखा तो पता लगा कि पापड़ खाने लायक हो गए. मेरे मन में एक बात आई कि अगर मेरे इस प्रयोग के बारे में तनिक जानकारी बाबा रामदेव को मिल जाये तो टी.वी. चैनलों पर तत्काल उनकी कंपनी का विज्ञापन प्रसारित होने लग जायेगा कि ‘धूप में सिके पापड़ खाने से पेट की बीमारी नहीं होती!’
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संध्या तक भी पापड़ वाली बात मेरे मगज में बैठी थी. मुझे पता था कि चूरू के कई कस्बों में महिलाओं द्वारा पापड़ बनाने का घरेलू काम व्यावसायिक स्तर पर होता रहा है. सुजानगढ़, छापर व सरदारशहर जैसे कस्बे इसके लिए प्रसिद्ध हैं. पापड़ के भार को सर से उतारने की गरज से मैंने भालेरी थानाधिकारी से पापड़ वाले झगड़े से संबंधित मैसेज के बारे में पूछा तो विस्तृत जानकारी यूँ मिली कि एक महिला ने पापड़ बेलकर उन्हें सुखाने के लिए घर की छत पर फैला दिए. कुछ देर बाद पडौसी का बच्चा अपनी खोयी हुई गेंद को ढूँढता हुआ उस छत पर चढ़ गया और जल्दबाज़ी में पापड़ों के ऊपर उसके पाँव पड़ गए. उसकी इस हरकत से कई पापड़ ख़राब हो गए. पापड़ वाली महिला ने उस बालक की माँ को उलाहना देते हुए कुछ उल्टा सीधा कह दिया. बात का बतंगड़ बन गया. दोनों महिलाओं के समर्थक जुट गए. अच्छे खासे दो दल बन गए. थाना पर सूचना मिलते ही दो सिपाही वहाँ भेजे गए. उन दोनों ने काफ़ी समझाईस की मगर मामला कंट्रोल नहीं हुआ, तब जाकर थाना के वायरलैस से थानाधिकारी को मैसेज दिया गया था कि ‘गाँव में पापड़ को लेकर झगड़ा हो रहा है.’
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पापड़ वाली इस घटना का असर मेरे दिमाग पर कई दिनों तक रहा. चूरू में गर्मी का प्रकोप भी बढ़ता जा रहा था. वह रविवार का दिन था. मौसम विभाग कुछ भी कहता रहा हो, मुझे आभास हुआ कि तापमान 50 डिग्री के ग्राफ़ को छू रहा है. मेरे उपजाऊ दिमाग में पापड़ को लेकर कई बिंदु उभरने लगे. इस तरह की दोपहर की धूप में पापड़ सकने का अनूठा प्रयोग मैं कर ही चुका था. अब मैंने सोचा कि क्यूँ न इस विधि को सार्वजनिक कर दिया जाये ताकि किचन बंद हो और पापड़ सेककर देने वाला घर में कोई न हो तो भी पापड़ खाने का मज़ा लिया जा सके. मेरी नेक सलाह है कि निम्न बिन्दुओं पर ध्यान दिया जाये:

1. घर में पापड़ न हो तो सुबह अथवा शाम को ही खरीद कर रख लें. समझदार लोग समय से पहले तैयारी कर लेते हैं.
2. पापड़ रखने बाहर स्वयं किसी हालत में नहीं जाएँ. यह ध्यान रखें कि पापड़ से अधिक महत्वपूर्ण आपका स्वास्थ्य है.
3. अच्छे बुरे संबंधों की परवाह किये बिना पड़ौसी से विशेष निवेदन कर पापड़ धूप में रखवा दें. अनुभव यह सिखाता है कि पडौसियों के साथ सम्बन्ध बनते-बिगड़ते रहते हैं.
4. किसी अति विश्वसनीय दोस्त को किसी अन्य बहाने से दोपहर में बुला लें और मौका देखकर उसके द्वारा पापड़ धूप में रखवा दें. बाद में वह सोचे कि ‘मुझे ….बना दिया’ तो उसे कहें कि ‘बाबा रामदेव का कहना है कि धूप में सिके पापड़ खाने से पेट की बीमारी नहीं होती.’
5. ज़रूरत हो तो संभावित रखनेवाले को आधा या आधे पापड़ देने का वादा कर लें. आजकल लोग लालच में कुछ भी करने को राजी हो जाते हैं.
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6. बेरोजगारी की वज़ह से आजकल युवा सेल्समेन कॉलोनियों में खूब घूमते हैं. उसे वस्तु खरीदने का वादा करके पापड़ धूप में रखवाये जा सकते हैं. बाद में उसे भागा दें. वह दोबारा आपके द्वार पर आकर घंटी नहीं बजाएगा. इससे एक तीर और दो शिकार हो जायेंगे.
7. किसी रह चलते आदमी से यह कहकर कि ‘तेरे ग्रह नक्षत्र ख़राब चल रहे हैं. तू इन अभिमंत्रित पापड़ों को धूप में रखने के बाद घर जाकर सो जा. तेरे अच्छे दिन आ जायेंगे.’
8. जो बड़े लोग हैं यथा नेता, अफ़सर, सेठ, प्रोफ़ेसर वगैरह वे पापड़ रखने का काम अपने नौकरों, अर्दलियों, शोधार्थियों से करवा सकते हैं. वे निष्ठावान सेवक हैं, कभी इनकार नहीं करेंगे.
9. अगर घर में केवल महिलाएं हैं तो घर में झाड़ू-पौंछा व बर्तन-भाँडा करने के लिए जो बाई आती है तभी उससे पापड़ रखवाने का काम भी करवा लें. बायीं नहीं माने तो उसे चाय नाश्ता ऑफ़र कर दें.
10. अगर आपको उपरोक्त किसी भी विधि को उपयोग में लेने में कोई झिझक, दुविधा या परेशानी हो तो सुबह सुबह ही धूप में पापड़ रखे जा सकते हैं. मगर वो मज़ा नहीं आयेगा जो पहले सिनेमा हाल की खिड़की के बाहर लगी लम्बी लाईन को चीरकर कमीज की बाहों की परवाह नहीं करते हुए बड़ी ज़द्दोज़हद के बाद टिकिट कबाड़ कर सिनेमा देखने में आया करता था.
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