हाल ही घोषित नई रिप्स में निवेशकों के लिए तय रियायतों में कई अतिरिक्त श्रेणियां जुड़ी हैं। निवेशक इससे आकर्षित हुए तो निश्चित ही पूंजिगत विनियोजन अनुदान (कैपिटल सब्सिडी) और उद्यम ऋणों के पेटे ब्याज अनुदान (इंटरेस्ट सब्सिडी) के मद में तुलनात्मक तौर पर अधिक वित्तीय भार सरकार पर आएगा, जिसके प्रावधान इसी बजट से सरकार को करने होंगे। अभी देखें तो वित्तीय वर्ष 2019-20 में सरकार पर अनुदानों के पेटे करीब 240 करोड़ रुपए का भार आ चुका है। इसमें से पहली किस्त के तौर पर 119 करोड़ रुपए के अनुदान बांटे जा चुके हैं। इसके अलावा राज्य जीएसटी का अनुदान अलग है।
नई रिप्स रियायतों के चलते अगले वित्तीय वर्ष में उद्योगों की सब्सिडी के लिए अधिक पैसा चाहिए होगा। एक अनुमान के अनुसार ये आंकड़ा 300 करोड़ रुपए के पार पहुंच सकता है। इसके अलावा राज्य जीएसटी में भी अनुदान को सरकार ने पूर्व में निर्धारित 30 प्रतिशत के बजाय शुरुआती सात वर्षों के लिए 75 प्रतिशत तक बढ़ा दिया है। अब तक यह राशि सामान्यत: 500 करोड़ रुपए तक होती थी, जिसमें आगे काफी बढ़ोतरी हो सकती है। हालांकि जानकारों का कहना है कि इस बढ़ोतरी से राज्य के खजाने पर असर 2021-22 के बजट तक दिखने लगेगा।
क्या है सब्सिडी निवेश को आकर्षित करने के लिए सरकार उद्यम लगाते वक्त निवेशकों को विभिन्न श्रेणियों में पंूजी विनियोजन और ब्याज सब्सिडी देती है। यों समझें कि यदि कोई निवेशक उद्यम लगाने के लिए जो निवेश करता है, उस पर कुछ प्रतिशत सब्सिडी पूंजी विनियोजन अनुदान है। जबकि उद्यमी मशीन, कारखाने के लिए ऋण लेता है तो उस पर देय ब्याज का निर्धारित हिस्से का पुनर्भुगतान ब्याज सब्सिडी के तौर पर किया जाता है।
यों बढ़ेगा वित्तीय भार जानकारों के अनुसार पहले सिर्फ वस्त्र उद्योग को ब्याज अनुदान का प्रावधान था। लेकिन अब ये थ्रस्ट सेक्टर (विशेष ध्यान वाले) के लगभग सभी उद्योगों को दिया जाएगा। ऐसे ही कैपिटल सब्सिडी में भी पूर्व के चुनिंदा चार बड़े उद्यमों के अलावा अन्य कई उद्यम इस श्रेणी में जोड़े गए हैं। नई उद्योग नीति में सेवा क्षेत्र पर तुलनात्मक तौर पर सरकार का ध्यान अधिक है। सेवा क्षेत्र के थ्रस्ट सेक्टर में भी 3 के बजाय अब एकदम से 11 प्रकार के उद्यम शामिल हुए हैं। इसके अलावा पिछली निवेश योजना से तुलना करें तो सरकार नई योजना में पात्र निवेशकों को विद्युत शुल्क, भूमि शुल्क, मंडी शुल्क आदि में दोगुनी रियायत की घोषणा कर चुकी। इसके लिए अतिरिक्त वित्तीय प्रावधान का वजन भी इसी बजट में संभावित हैं।
तीन वर्षों के प्रावधान और खर्च वर्ष— वित्तीय प्रावधान (करोड़ रुपए में)—- खर्च (करोड़ रुपए में)
2017-18— 180.97—– 180.96
2018-19—- 149.71 —- 149.69
2019-20—- 127.19 (अब तक)—– 119.71 (अब तक)
तो निवेश की बल्ले-बल्ले
अनुदान और अन्य रियायतों के नाम पर होने वाले खर्च ने यदि सरकार की उम्मीद के अनुसार काम किया तो प्रदेश के निवेश में बड़ी बढ़ोतरी की संभावना है। सरकार का आकलन है कि नई रिप्स के बाद अगले तीन साल में निवेश 75 हजार करोड़ रुपए से 1 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच जाएगा। रिप्स 2014 के बाद यह निवेश बीते तीन वर्षों में प्रदेश में ंकरीब 70 हजार करोड़ रुपए का निवेश हुआ है।
नई रियायतों का असर बजट पर पड़ेगा, लेकिन सब्सिडी में दिया पैसा तब भी फलीभूत हो पाएगा जबकि निवेश की राशि के बजाय रोजगार को देखा जाए। उन निवेशकों को रियायतों का अधिक फायदा देना चाहिए, जो रोजगार सृजन पर अधिक ध्यान दें। बेरोजगारी अभी चरम पर है, ऐसे में यही देखना होगा कि कौन कितने रोजगार दे पाएगाï? इसके अलावा नए वित्तीय प्रावधानों में उनका भी ध्यान रखना चाहिए, जो पुराने उद्योग हैं। इनको नई नीतियों का फायदा नहीं मिला तो यह प्रतिस्पद्र्धात्मकता में पिछड़ जाएंगे।
राजेन्द्र भानावत, पूर्व प्रबंध निदेशक- राजस्थान राज्य औद्योगिक विकास एवं निवेश निगम