रोडवेज अधिकारियों ने पहले तो सोशल डेस्टिसिंग बनाते हुए यात्रियों को एक—दो मीटर की दूरी में बैठाया। ऐसे हजारों यात्रियों को रवाना करने के बाद अंतिम बसों के दौरान व्यवस्था चरमरा गई। बसें कम होने से सोशल डिस्टेंसिंग धरी रह गई। पचास सीटों वाली बसों में 80 से अधिक लोग सवार हुए। इसमें कोई एक भी पॉजिटिव हुआ तो सरकार के सामने बड़ी आपदा खड़ी हो सकती है।
उत्तर प्रदेश रूट के लिए सिंधी कैंप से बसें तो रवाना हुई, लेकिन बसें यात्रियों को भरतपुर—यूपी बॉर्डर तक ही छोडेगी। वहीं, उत्तप्रदेश ने अपनी बॉर्डर सील करने से अब ये यात्री अपने घरों तक कैसे पहुंचेंगे, इसका इंतेजाम प्रशासन नहीं कर पाया है। जानकारी अनुसार, बसें जिला कलेक्टर की अनुशंसा पर रवाना की गई थी।
राजस्थान राज्य पथ परिवहन निगम की ओर से जयपुर से चार स्टॉप चिन्हित कर बसें रवाना की गई। इसमें सिंधी कैंप के साथ, दिल्ली-आगरा मार्ग के लिए ट्रांसपोर्ट नगर, सीकर मार्ग के लिए चौमूं पुलिया, टोंक/कोटा मार्ग के लिए दुर्गापुरा बस स्टैंड, अजमेर मार्ग के लिए 200 फीट बाईपास से बसें रवाना हुई।
कोरोना प्रकोप से हर व्यक्ति का बचाव जरुरी है। लेकिन सिंधी कैंप पर बसों में सीटों ( Transport Department )
से डेढ़ गुना तक बैठे यात्रियों को बजाय कर्मचारी को ज्यादा सैनिटाइजर का छिडकाव करते दिखे। हालांकि इनका भी बेहद जरुरी है।
मंत्री खाचरियावास के निर्देशों में बसों का संचालन का समय नहीं था। इससे लोग अपनी फैक्टी, घरों और आश्रय स्थलों से निकलकर बस स्टैंडों पर देर रात तक पैदल आते रहे।