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रोहिंग्या मुसलमानों से कम नहीं इनका दर्द, देखिए यह खास रिपोर्ट

locationजयपुरPublished: Sep 15, 2017 07:38:18 pm

Submitted by:

Kamlesh Sharma

रोहिंग्या हिंदोस्तान के लिए भी अवैध नागरिक हैं और इस मामले में यूनाइटेड नेशन के सामने भी अपना रुख साफ करके देश ने संप्रभु होने का सबूत भी दिया है।

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चक्रेश महोबिया/जयपुर।
कहां तो तय था चिरागां हरेक घर के लिए
कहां मयस्सर नहीं चिराग शहरभर के लिए

रोजी—रोटी और बेहतर जिंदगी की ख्वाहिश रखने वालों को जन्नत के ख्वाब दिखाने वाली व्यवस्थाएं कैसे ट्रीट करती हैं? दुष्यंत की पंक्तियां उन्हीं ख्वाबों की जमीनी हकीकत का आइना भर हैं।
ऐसे समाज के सपनों और उनकी हकीकत के बारे में जो इस देश और उसके संसाधनों के सबसे ज्यादा हकदार होने के बाद भी वंचित हैं, सताए हुए हैं और अपने ही देश में स्टेटस लैस जैसा दर्जा लिए हैं। अब जबकि रोहिंग्या मुसलमानों को लेकर हिंदुस्तान ने अपना रुख स्पष्ट कर दिया है, तब एक बात साफ हो गई है कि देश के अलग— अलग हिस्सों में रह रहे 40 हजार से ज्यादा अवैध रोहिंग्याओं को फोर्स बैक किया जाएगा। इसमें समय लग सकता है। रोहिंग्या हिंदोस्तान के लिए भी अवैध नागरिक हैं और इस मामले में यूनाइटेड नेशन के सामने भी अपना रुख साफ करके देश ने संप्रभु होने का सबूत भी दिया है। ऐसे बे—वतनों की जो अपनी नागरिकता खोज रहे हैं। जिंदगी में ठहराव चाह रहे हैं।
चाहे वह अखंड हिंदोस्तान हो या आजादी के बाद का भारत, दोनों की ही कहानी में हमारे पड़ोसी अहम भूमिका निभाते रहे हैं। दरअसल आज के हिंदोस्तां की हकीकत हैं कि इसे किसी एक धर्म, समाज या संप्रदाय ने नहीं बनाया। रोजी—रोटी और बेहतर जिंदगी की तलाश में बंजारों के समूह यहां की सरजमी पर आए तो यहीं के होकर रह गए। वहीं कुछ आए तो इस जमीं की दौलत लूटने को थे, मगर हिंदोस्तां को ही मादरे वतन बना लिया।
ये कुछ साल पहले की ही तो बात है, जब हर गली— मोहल्ले की उनींदी धूप को काबुली वाले की सख्त आवाज चीर देती थी।
हींग ले लो, दूधिया हींग, हीरा हींग… हींग और सूखे मेवों को अपनी पोटली में बांधे हुए ये लोग दरअसल हमारे पड़ोस अफगानिस्तान से आते थे। बेहिचक! तो काजल और सुरमा बेचने के लिए आने वाली लंबी— चौड़ी कद काठी की बिल्लोचनों की चर्चाएं भी महिलाओं की बैठकों में आती थीं. जादुई से सौंदर्य वाली ये महिलाएं पाकिस्तान के ही एक सूबे बलूचिस्तान से अपने खाना—बदोश समूहों के साथ आकर रोजी—रोटी चलाती रही हैं।
मगर! पर हाल ही के वर्षों में दुनिया वैसी नहीं रही, जैसी 20—25 साल पहले हुआ करती थी. धर्म, सीमा और ताकत के विवादों ने दुनिया को कई धड़ों में बांट दिया है. हाल ही के वर्षों तक पड़ोसियों की पनाहगाह रहा हिंदोस्तान खुद सीमा विवादों में उलझा हुआ है। हमारे खुद के मसले हैं, दरअसल भारत में आज भी हजारों लाखों लोग ऐसे हैं जो भारतीय होते हुए भी भारतीय होने का हक नहीं रखते. दर्जनों खाना—बदोश जनजातियां इस धरती पर आज के हिंदोस्तानियों से कदमताल करने के लिए बैचने हैं।

हिंदोस्तान में बसे 40 हजार से ज्यादा रोहिंग्या मुसलमानों और उनके बहाने इस देश में ही सैकड़ों सालों से रहने वाली उन खानाबदोश जनजातियों की, जो अपने ही देश में बे—वतन हैं, स्टेटसलैस हैं।
जाहिर है आज के हालात में रोहिंग्या किसी एक देश की समस्या नहीं रह गई है, पूरे एशिया की बड़ी समस्याओं में से एक बनकर उभरी है। बहरहाल अब बात अपने देश के स्टेटस लैश उस समुदाय की जो हमारे आसपास ही जिंदगी की जदृोजहद कर रहे हैं। दो जून रोटी के लिए जूझ रहे हैं। रिफृयूजी, बंजारे या खानाबदोश… जी हां! आज की ग्राउंड रिपोर्ट के यही किरदार हैं, कभी कंजरों के बारे में आपने सुना है। अंग्रेजों ने इस समुदाय को जरायमपेशा यानि खानदानी अपराधी घोषित किया हुआ था, देश को आजाद हुए 70 साल बीत गए इनके प्रति हमारा व्यवहार आज भी अंग्रेजों जैसा ही है….
जब आप और हम ट्रैफिक चौराहे पर बत्ती के हरे होने का इंतजार करते हैं, तब शीशे के बाहर से झांकती आंखें अक्सर इसी कंजर समुदाय की होती हैं। इनके और हमारे हिंदुस्तान के बीच की दूरी भी उतनी ही है, न इनकी आवाज हम तक पहुंचती है, न ही इनका दर्द…
अपने जंगल और जमीन छोड़कर शहरों में आ बसे ये लोग सिर्फ इज्जत की रोटी के लिए छोटे—मोटे सामान बेचने की कोशिश करते हैं, और हमारे पास इनके लिए सिर्फ बत्ती के हरे होने तक का ही टाइम होता है।

भारत—पाक विभाजन को 70 साल हो चुके हैं। इसके बावजूद जख्म हैं कि भरते नहीं. हम आपको मिलाते हैं ऐसे ही सख्स से जो बे—वतन होने के दर्द से गुजरा है. साथ ही चलेंगे ऐसे गांव जहां जिंदगी सिर्फ मुहाल है।
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