एडवोकेट हिमांशु जैन ने कोर्ट को बताया कि प्रार्थिया के पति स्कूली शिक्षा विभाग से २००६ में सेवानिवृत्त हुए थे। रिकार्ड में उनकी जन्मतिथि में कांट-छांट होने के कारण सरकार उन्हें प्रोविजनल पेंशन ही दे रही थी। २०१७ में पति की मृत्यु होने पर प्रार्थिया ने फैमिली पेंशन के लिए आवेदन किया था। विभाग ने उनसे भी दिवंगत पति की जन्मतिथि से संबंधित ऑरिजनल दस्तावेज मांगे थे और फैमिली पेंशन शुरु नहीं की थी। जबकि प्रार्थिया के दिवंगत पति जीवित रहते हुए ही जन्म तिथि से संबंधित प्रमाणिक दस्तावेज विभाग को सौंप चुके थे लेकिन,विभाग ने ना तो अपना रिकार्ड दुरस्त किया और ना ही दिवंगत को जीवित रहते पूरी पेंशन व अन्य परिलाभ का भुगतान किया था। इस पर प्रार्थिया ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर फैमिली पेंशन सहित पिछला बकाया दिलवाने की गुहार की थी। कोर्ट ने सभी परिलाभ का १५ दिन में ९ प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित भुगतान करने के निर्देश देते हुए सरकार पर एक लाख रुपए की कॉस्ट भी लगाई है।