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सबरीमला केस 7 जजों की पीठ को, स्त्रियों के प्रवेश का फैसला बरकरार

locationजयपुरPublished: Nov 14, 2019 06:46:36 pm

Submitted by:

Vijayendra

सीजेआइ बोले : धार्मिक स्थलों में प्रवेश पर प्रतिबंध दूसरे धर्मों में भी प्रचलित

सबरीमला केस 7 जजों की पीठ को, स्त्रियों के प्रवेश का फैसला बरकरार

सबरीमला केस 7 जजों की पीठ को, स्त्रियों के प्रवेश का फैसला बरकरार

नई दिल्ली
केरल के सबरीमला मंदिर में स्त्रियों के प्रवेश का मामला 7 जजों की पीठ को सौंप दिया गया है। पांच जजों की पीठ ने यह फैसला 3:2 से किया। अदालत ने कहा कि अंतिम फैसले तक पिछला आदेश बरकरार रहेगा। केरल सरकार को कहा गया है कि वह इसे लागू करने पर फैसला ले।
बता दें कि शीर्ष कोर्ट ने 4:1 के बहुमत से 28 सितंबर 2018 को सबरीमला मंदिर में स्त्रियों के प्रवेश को मंजूरी दी थी। इस फैसले पर 56 पुनर्विचार याचिकाएं और 9 अन्य याचिकाएं दायर की गई थीं। प्रधान न्यायाधीश (सीजेआइ) रंजन गोगोई, जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस एएम खानविलकर ने सबरीमला मामला बड़ी पीठ को सौंपने का फैसला दिया, जबकि जस्टिस फली नरीमन और जस्टिस डीवाइ चंद्रचूड़ ने इसके खिलाफ।

यह दूसरे धर्मों में भी प्रचलित है : सीजेआइ
सीजेआइ गोगोई ने कहा कि याचिकाकर्ता इस बहस को पुनर्जीवित करना चाहता है कि धर्म का अभिन्न अंग क्या है? पूजा स्थलों में स्त्रियों का प्रवेश सिर्फ मंदिर तक सीमित नहीं है। यह दूसरे धर्मों में भी प्रचलित है। सुप्रीम कोर्ट को सबरीमला जैसे धार्मिक स्थलों के लिए एक सार्वजनिक नीति बनानी चाहिए। सबरीमला के अलावा मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश और दाऊदी बोहरा समाज में स्त्रियों के ***** से जुड़े धार्मिक मुद्दों पर बड़ी बेंच फैसला करेगी।

महिला जज ने कहा था- धार्मिक मुद्दे नहीं छेडऩे चाहिए
सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमला मंदिर में स्त्रियों के प्रवेश को मंजूरी देते हुए कहा था- दशकों पुरानी हिंदू धार्मिक प्रथा गैरकानूनी और असंवैधानिक थी। बेंच की इकलौती महिला जज जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने कहा था- धर्मनिरपेक्षता का माहौल कायम रखने के लिए कोर्ट को धार्मिक अर्थों से जुड़े मुद्दों को नहीं छेडऩा चाहिए।

सबरीमला विवाद : कब, क्या हुआ
1990: मंदिर परिसर में 10-50 साल की स्त्रियों का प्रवेश रोकने के लिए केरल हाईकोर्ट में याचिका लगाई गई।
1991 : हाईकोर्ट ने स्त्रियों के प्रवेश पर रोक की सदियों पुरानी परंपरा को सही ठहराया।
2006 : इस रोक को चुनौती दी गई। कन्नड़ अभिनेत्री जयमाला ने दावा कि उन्होंने 1987 में भगवान अय्यप्पा के दर्शन किए। पुजारी ने कहा था कि भगवान नाराज हैं, क्योंकि स्त्री आई थी।
2007: केरल की लेफ्ट की सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर यंग लॉयर एसोसिएशन की याचिका के समर्थन में हलफनामा दाखिल किया।
फरवरी 2016 : यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट की सरकार आई तो स्त्रियों को प्रवेश देने की मांग से पलट गई। कहा कि परंपरा की रक्षा होनी चाहिए।
2017 : सुप्रीम कोर्ट ने मामला संविधान पीठ को सौंप दिया।
28 सितंबर 2018 : सुप्रीम कोर्ट ने स्त्रियों को प्रवेश की अनुमति दी।
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सबरीमला : भगवान अयप्पा का मंदिर
केरल के पठनामथिट्टा जिले की पहाडिय़ों के बीच भगवान अयप्पा के मंदिर को सबरीमला मंदिर के नाम से जानते हैं। जिले में स्थित पेरियार टाइगर रिजर्व की 56.40 हेक्टेयर जमीन सबरीमला को मिली हुई है। मंदिर तक पहुंचने के लिए 18 पावन सीढिय़ों को पार करना पड़ता है, जिनके अलग-अलग अर्थ भी बताए गए हैं। इस मंदिर में हर साल नवंबर से जनवरी तक श्रद्धालु अयप्पा भगवान के दर्शन के लिए आते हैं। बाकी पूरे साल यह मंदिर आम भक्तों के लिए बंद रहता है।
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यह है मान्यता
सबरीमला मंदिर करीब 800 साल से अस्तित्व में है। भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी माने जाते हैं। उनके मंदिर में ऐसी स्त्रियों का आना मना है, जो मां बन सकती हैं। उनकी उम्र 10 से 50 साल निर्धारित की गई है। माना गया कि इस उम्र की स्त्रियां माहवारी के कारण शुद्ध नहीं रह सकतीं और भगवान के पास बिना शुद्ध हुए नहीं आया जा सकता। 1950 से ही स्त्रियों के प्रवेश पर विवाद है।
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