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देववाणी संस्कृत है सकारात्मक भाषा-राज्यपाल

locationजयपुरPublished: Jan 27, 2020 06:44:48 pm

Submitted by:

Ashish

Sanskrit : संस्कृत का प्रभाव बढ़ रहा है। लोग संस्कृत भाषा के प्रति लालायित है। संस्कृत सकारात्मक भाषा है।

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देववाणी संस्कृत है सकारात्मक भाषा-राज्यपाल

जयपुर

Sanskrit : संस्कृत का प्रभाव बढ़ रहा है। लोग संस्कृत भाषा के प्रति लालायित है। संस्कृत सकारात्मक भाषा है। यह भाषा सभी को साथ लेकर चलने का प्रयास करती है। राज्यपाल कलराज मिश्र ने राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान में बहुद्देश्यीय भवन शिलान्यास समारोह में ये बात कही। राज्यपाल ने परिसर में बनने वाले बहुद्देश्यीय भवन की शिलान्यास पट्टिका का अनावरण किया। समारोह में राज्यपाल ने कहा कि संस्कृत भाषा के अध्ययन का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य भारतवर्ष के वास्तविक स्वरूप को जानना है। संस्कृत भारतवर्ष की सांस्कृतिक भाषा है, इसलिए बिना संस्कृत के इस देष की संस्कृति और पारम्परिक विरासत को समझना कठिन है। सांस्कृतिक बोध के बिना किसी भी राष्ट्र के सच्चे स्वरूप का अभिज्ञान कदापि संभव नहीं है।
राज्यपाल मिश्र ने कहा कि भारतीय चिंतन में राष्ट्र शब्द से तात्पर्य केवल सीमाओं से आबद्ध भूभाग मात्र नहीं है, अपितु इसमें उस देश की पंरम्परा, सभ्यता, लोक चेतना तथा सामाजिक एवं सांस्कृतिक स्वरूप का प्रकाशन और बोध भी सम्मलित है। उन्होंने कहा कि जब हम भारतवर्ष के लिए राष्ट्र शब्द का प्रयोग कर रहे होते हैं, तब उसका तात्पर्य उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में सागर तक विस्तीर्ण भूभाग मात्र से नहीं होता है, अपितु हमारा तात्पर्य यहां के ज्ञान, विज्ञान, इतिहास, कला, दर्शन, सभ्यता और संस्कृति से भी होता है। यदि हमें इस देश के सांस्कृतिक स्वरूप को समझना हो तो संस्कृत भाषा का अध्ययन नितांत जरूरी है।
इस भाषा की है अहमियत
समारोह में राज्यपाल ने कहा कि हमारा सम्पूर्ण साहित्य, गीता, रामायण आदि काव्य एवं शास्त्र सब संस्कृत भाषा में निबद्ध हैं। संस्कृत के विषय में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का भी यह स्पष्ट मानना था कि ‘‘संस्कृत के अध्ययन के बिना कोई भी सच्चा भारतीय और सच्चा विद्वान नहीं बन सकता। ‘यदि हम अपनी महानतम सांस्कृतिक विरासत को सहेजना चाहते हैं तो हमें संस्कृत का अध्ययन जरूर करना चाहिए। राज्यपाल मिश्र ने कहा कि संस्कृत भाषा के अध्ययन का एक और महत्वपूर्ण उद्देश्य भारतवर्ष के वास्तविक इतिहास को जानना भी है।
वैदिक काल से अब तक
वैदिक काल से लेकर आज तक भारतीय सभ्यता के विकास में संस्कृत भाषा एक महत्वपूर्ण उपादान रही है। वेद, रामायण, महाभारत, पुराण, साहित्य, उपनिषद्, दर्शन, अर्थशास्त्र, नाट्यशास्त्र, छन्द, व्याकरण, अलंकार, आयुर्वेद आदि शास्त्रों की भाषा संस्कृत ही है। वाल्मीकि, व्यास, भास, दण्डी, श्रीहर्ष, कालिदास, भारवि, भवभूति, माघ, भोज, बाणभट्ट, मुरारी, राजशेखर, भर्तृहरि, भट्टनारायण, पण्डितराज जगनाथ आदि अनेक महाकवियों का साहित्य संस्कृत भाषा में ही रचित है।

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