विद्यालय के प्रधानाध्यापक कन्हैयालाल बैरवा के मुताबिक वर्ष 2013 में विद्यालय की शुरुआत हुई थी, लेकिन भवन नहीं होने से ग्रामीणों की सहमति से गांव के तेजाजी, हनुमानजी व शंकर भगवान के मंदिर में कक्षाएं शुरू कर दी गईं। ग्रामीणों को जल्द ही भवन बनने की उम्मीद थी, लेकिन करीब नौ साल बीत जाने के बावजूद भवन के लिए कोई बजट उपलब्ध नहीं हो पाया। नतीजतन नौनिहालों के लिए मंदिर की छत ही आश्रयस्थल बनी है।
जानकारी के मुताबिक चालू शैक्षणिक सत्र में विद्यालय की पांचों कक्षाओं में 44 विद्यार्थियों का नामांकन है। पहली में 5, दूसरी में 6, तीसरी में 9, चौथी में 13 तथा पांचवीं कक्षा में 12 बच्चे नामांकित हैं।
प्रधानाध्यापक ने बताया कि मंदिर में कमरे नहीं होने के कारण विद्यालय का सारा रिकॉर्ड पास ही स्थित धर्मशाला में रखना पड़ता है। ऐसे में सुरक्षा पर सवालिया निशान खड़ा होना लाजमी है।
विद्यालय प्रबंधन के मुताबिक करीब दो साल पहले गांव के पास ही आठ बिस्वा भूमि विद्यालय के लिए आवंटित हो चुकी है। नामांतरकरण भी खुल चुका है, लेकिन बजट नहीं होने से भवन निर्माण फिलहाल सपना ही बना हुआ है। सूत्रों की मानें तो सर्व शिक्षा अभियान के तहत प्रस्ताव लेकर विभाग को भेजा जा चुका है। पंचायत समिति सदस्य कैलाश चौधरी सहित ग्रामीणों ने बताया कि विधायक को भी इस संबंध में अवगत कराया जा चुका है, लेकिन हालात जस के तस हैं।
रमेश चंद कुमावत, पंचायत प्रारम्भिक शिक्षाधिकारी दोसरा