यदि ये करार होता है तो सऊदी अरब तेल का शीर्ष आपूर्तिकर्ता बन जाएगा। एशिया पारंपरिक रूप से मध्य-पूर्व से तेल का बड़ा खरीदार रहा है। उधर अमरीका निर्यात में वृद्धि के प्रयास में लगा है तो रूस नए ग्राहकों की तलाश कर रहा है और सऊदी अरब ओपेक के प्रयासों का प्रतिनिधित्व करता है, ताकि कीमतों में वृद्धि हो सके। ईरान और वेनेजुएला पर अमरीकी प्रतिबंधों ने तेल के नए आपूर्तिकर्ताओं के लिए द्वार खोल दिए हैं। सिंगापुर की ऊर्जा एजेंसी के मुताबिक रिलायंस से यह डील अरामको को अंतरराष्ट्रीय बाजार में शिखर पर ले जाएगा, जहां अभी उसे अन्य उत्पादकों से प्रतिस्पद्र्धा का सामना करना पड़ रहा है। एशिया में तेल की बढ़ती मांग पर भी सऊदी की नजर है। भारत अपने कच्चें तेल की जरूरतों का लगभग 85 फीसदी आयात करता है और अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी का अनुमान है कि यह 2040 तक दुनिया का सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता देश बन जाएगा। वुड मैकेंजी के अनुसार, देश में तेल की खपत 50 लाख बैरल से बढक़र 2035 तक 82 लाख बैरल प्रतिदिन हो जाएगी। छोटी अवधि में भारतीय खपत में वृद्धि कहीं न कहीं मंद की भरपाई करेगी।
अमरीका और रूस ने बढ़ाया तेल का निर्यात
अमरीका इस वर्ष मार्च तक भारत को 64 लाख टन तेल निर्यात कर चुका है। अब वह विश्व का 9वां सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बन गया। अगले पांच वर्ष में एशिया में अमरीकी तेल का आयात 8 से 9 फीसदी तक बढऩे की उम्मीद है। रूसी तेल कंपनी रोसनेफ्ट और उसकी साझेदार कंपनियों द्वारा जामनगर के पास चार लाख बैरल प्रतिदिन की क्षमता वाली रिफाइनरी का अधिग्रहण करने के बाद रूस का तेल निर्यात मार्च 2018 में पांच गुना बढक़र 30 लाख टन हो गया था। इस वर्ष यह 22 लाख टन रह गया।
एशिया में पैर पसार रहा है सऊदी अरब
सऊदी अरब एशिया में अपनी मौजूदगी बढ़ा रहा है। वह इंडोनेशिया में एक रिफाइनरी का निर्माण कर रहा है और दक्षिण कोरियाई परिशोधन इकाई को 60 लाख डॉलर खर्च कर विस्तार देने जा रहा है। अरामको ने चीन के लियानिंग प्रांत में 10 अरब डॉलर की लागत से रिफाइनिंग कॉम्प्लेक्स बनाने के एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। मलेशिया में 3 लाख बैरल क्षमता की रिफाइनरी लगा रहा है।