तालाब या नदी की मिट्टी, गाय का गोबर, गुड़, मक्खन और भस्म मिलाकर पार्थिव शिवलिंग बनाएं। जहां तक हो पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुंह रखकर शिवलिंग बनाना चाहिए। शिवलिंग के निर्माण में इस बात का ध्यान रखें कि यह 12 अंगुल से ऊंचा नहीं हो। इससे अधिक ऊंचा होने पर पूजन का पुण्य नहीं मिलता है। मनोकामना पूर्ति के लिए शिवलिंग पर प्रसाद चढ़ाना चाहिए। शिवलिंग को स्पर्श किया प्रसाद को ग्रहण नहीं करना चाहिए।
पार्थिव के समक्ष समस्त शिव मंत्रों का जप किया जा सकता है। रोग से पीड़ित लोग महामृत्युंजय मंत्र का जप भी कर सकते हैं। दुर्गासप्तशती के मंत्रों का जप भी किया जा सकता है। पार्थिव के विधि वत पूजन के बाद उनको श्री राम कथा भी सुनाकर प्रसन्न कर सकते हैं।
शास्त्री के अनुसार अनेक प्रकार की कामनाओं की पूर्ति के लिए भगवान शिव का अनेक प्रकार की औषधि वस्तुओं से अभिषेक किया जाता है। संतान प्राप्ति के लिए दूध, स्नेह के लिए दही, मैत्री दांपत्य सुख के लिए गोघृत (गाय का घी), शहद, व्यापार वृद्धि गन्ने का रस, मधुर संबंधों के लिए मधु शहद, धन प्राप्ति के लिए गन्ने का रस, शत्रु भय निवृत्ति के लिए सरसों के तेल, रोग नाश के लिए गिलोय रस, मानसिक शांति, क्रोध शांति के लिए कुशोदक, चंदन से अभिषेक करने पर कामनाओं की पूर्ति होती है।