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असंगठित मजदूरों की पीडा पर सुप्रीम कोर्ट चिंतित,मजदूरी भुगतान के लिए सरकार से मांगा जवाब

locationजयपुरPublished: Apr 03, 2020 06:30:11 pm

Submitted by:

Mukesh Sharma

शुक्रवार को (Supreme court ) सुप्रीम कोर्ट ने (Lock Down) लॉक डाउन के कारण असंगठित क्षेत्र के (Migrant workers) प्रवासी मजदूरों को (Payment of Wages) मजदूरी भुगतान करने पर (GOI) केन्द्र सरकार से 7 अप्रेल तक (Reply)जवाब मांगा है।

जयपुर
शुक्रवार को (Supreme court ) सुप्रीम कोर्ट ने (Lock Down) लॉक डाउन के कारण असंगठित क्षेत्र के (Migrant workers) प्रवासी मजदूरों को (Payment of Wages) मजदूरी भुगतान करने पर (GOI) केन्द्र सरकार से 7 अप्रेल तक (Reply)जवाब मांगा है। जस्टिस नागेश्वर राव और जस्टिस दीपक गुप्ता की बैंच ने यह आदेश एक्टिविस्ट हर्ष मंदर और अंजलि भारद्वाज की जनहित याचिका पर यह आदेश दिए हैं। कोर्ट ने संकट के इस समय में मजदूरों की पीडा पर विशेष रुप से चिंता जताई है।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने याचिका पर आपत्ति जताते हुए कहा कि जनहित याचिकाओं की इन दुकानों को बंद करना चाहिए। सही लोग धरातल पर लोगों की मदद कर रहे हैं और ऐसे हालात में एसी कमरों में बैठकर जनहित याचिका दायर करने से कोई सहायता नहीं होगी।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि सरकारी आदेश के बावजूद ठेकेदार मजदूरों को पूरी मजदूरी नहीं दे रहे हैं। पिछले दो दिनों में ही मकान मालिकों ने बडी संख्या में मजदूरों को उनके घरों से निकाल दिया है। पहले लॉकडाउन और फिर प्रवासी मजदूरों को जहां हैं वहीं रोकने के निर्देश से समस्या ने विकराल रुप धारण कर लिया है। सरकार ने प्रत्येक नियोक्ता को मजदूरों को पूरी मजदूरी का भुगतान करने के निर्देश दिए है,लेकिन अधिकांश मजदूर उन शहरों को छोड चुके हैं जहां वह काम कर रहे थे तो उन्हें भुगतान कैसे मिलेगा।
इससे निपटने का एक ही तरीका है कि सरकार लॉक डाउन की अवधि के लिए प्रवासी मजदूरों को नगद या इनके बैंक खातों में न्यूनतम मजदूरी के हिसाब से भुगतान करे।
सुप्रीम कोर्ट ने 31 मार्च को प्रवासी मजदूरों के कल्याण के लिए निर्देश जारी किए थे। इस मामले में केन्द्र सरकार ने बताया था कि देशभर में 21 हजार 64 रिलीफ कैंप स्थापित किए हैं और इनमें करीब 6 लाख 66 हजार 291 प्रवासी मजदूरों को शैल्टर दी गई है। जबकि मंदर का कहना है कि यदि सरकार की बताई गई संख्या को सही माना भी जाए तो भी प्रवासी मजदूर इससे कहीं ज्यादा हैं और अकेले दिल्ली में ही करीब 15 लाख प्रवासी मजदूर हैं। उन्होंने कई प्रेस रिपोर्ट के हवाले से बताया कि बहुत सारे मजदूर अभी वहीं हैं जहां वह काम करते थे,लेकिन पैसा और भोजन नहीं होने के कारण उनके हालात बेहद खराब हैं।

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