जयपुर

स्कूलों की मनमानी पर लगे लगाम, पेरेंट्स के लिए चुनौती बन गया एडमिशन

पैसा कैसे खींचा जाये यही आज की शिक्षा का मूल ध्येय बन गया है।

जयपुरApr 16, 2018 / 04:59 pm

Priyanka Yadav

जयपुर . जीवन में शिक्षा के क्षेत्र का क्या महत्व है ये किसी को बताने की जरूरत नहीं है। करोड़ों बच्चे हर सुबह अपना बस्ता लेकर स्कूल जाते हैं। हर माता-पिता की दिली ख्वाहिश रहती है कि उनका बच्चा पढ़-लिखकर एक काबिल इंसान बने और दुनिया में खूब नाम रोशन करे। इन स्वप्नों को पूरा करने में स्कूल और शिक्षा व्यवस्था बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं। लेकिन विडंबना यह है कि लोगों के जीवन को गढऩे वाली यह पाठशाला आजकल एक ऐसा व्यवसाय का रूप ले चुकी है। जिसने अच्छी शिक्षा को पैसे वालों की बपौती बना कर रख दिया है। यहां तो अब साधारण तथा मध्यमवर्गीय परिवार बस बड़े स्कूलों को दूर से टकटकी लगाकर देखते हैं और सोचते हैं कि काश उनका बच्चा भी ऐसे स्कूलों में पढ़ पाता।
 

नीलकमल, झोटवाड़ा ने कहा की यदि कोई बच्चे को अच्छी स्कूल में दाखिला दिलवा भी दे तो फीस के साथ-साथ अन्य भी कई खर्चे उसे झेलने पड़ते हैं। पुस्तकें और यूनिफॉर्म के खर्चे इतने ज्यादा होते हैं कि हर व्यक्ति उसे झेल नहीं पाता। देखा जाए तो स्कूल का व्यवसाय इतना लाभदेय हो गया है कि स्कूल वालों ने पुस्तक और स्कूल ड्रेस का व्यापार भी स्कूल में ही करना शुरू कर दिया है। स्कूल संचालक अपने ही रिश्तेदार को पुस्तकों और ड्रेस का ठेका दे देते है। इसमें से लाभ का हिस्सा वो भी लेते हंै और उनके रिश्तेदार भी। इस मनमानी को रोकने के लिए सरकार को चाहिए कि वह शिक्षा का व्यवसायीकरण पर रोक लगाये। निजी शिक्षण संस्थाओं की फीस सरकार द्वारा तय की जानी चाहिए।
 

ललिता राव, कालवाड़ रोड ने कहा की आज के दौर मैं बच्चों को अपनी मनपसंद के स्कूल में प्रवेश दिलवाना अपने आप में एक बड़ी चुनौती हो गया है। खासकर मध्यवर्गीय परिवार तो अपने बच्चों को उनकी पसंद के स्कूल में नहीं पढ़ा सकते। आज आलम यह है कि नर्सरी कक्षा की फीस ही लाखों रुपए हो गयी है। यदि बच्चे को अच्छे स्कूल में पढ़ाना है तो बैंक अकाउंट में अच्छी खासी रकम होनी चाहि। वरना अपने बच्चे को अच्छे कहे जाने वाले स्कूल में पढ़ाने का सपना बस एक सपना बन कर ही रह जायेगा।
 

यशोदा चौहान, वैशाली नगर ने कहा की वर्तमान में स्थिति भयावह है। बच्चों को शिक्षित करना गौण हो गया है और शिक्षा के केन्द्र व्यापारिक केन्द्र बन कर रह गए हैं। जिस प्रकार औद्योगिक वस्तुओं के बारे में विविध विज्ञापनों के द्वारा प्रचार-प्रसार करके उपभोक्ताओं को आकषिर्त किया जाता है, उसी तरह आजकल शिक्षा संस्थाओं का विभिन्न संचार माध्यमों से आकर्षक विज्ञापन किया जाता है। और इसके माध्यम से विद्यार्थी एवं अभिभावकों को अपनी ओर खींचा जाता है। मानो विद्यालय नहीं औद्योगिक वस्तुओं का कार्यालय है।
 

वर्षा पारीक, झोटवाड़ा ने कहा की विद्यार्थियों के माध्यम से अभिभावकों से पैसा कैसे खींचा जाये यही आज की शिक्षा का मूल ध्येय बन गया है। ऐसे में सरकार को भी सोचना चाहिए कि वो आम जनता को क्यों इस प्रकार लुटने दे रही है। स्कूलों को ऐसा अधिकार क्यों कि वो बच्चों के भोले-भाले अभिभावकों को शिक्षा के नाम पर मनमानी फीस वसूल करें। यदि हमारी शिक्षा व्यवस्था में सुधार नहीं हुआ तो यकीनन हमारे युवाओं का भविष्य अंधेरे की ओर चला जायेगा। शिक्षा को व्यवसाय नहीं गौरव बनायें। ताकि हर एक बच्चा शिक्षा को प्राप्त कर सके और देश का नाम रोशन करे। सरकार को भी ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि शिक्षा का मौलिक अधिकार हर बच्चे तक पहुंचे।
 
Copyright © 2024 Patrika Group. All Rights Reserved.