स्थिति को देखते हुए जयपुर विकास प्राधिकरण इस बात का पता लगाने की कोशिश कर रहा है कि किस आरओबी की कितनी उम्र बाकी हैं। और शहर में मौजूद आरओबी में से कितने रेलवे ओवरब्रिज ऐसे हैं जो मौजूदा वाहन संख्या का भार वहन करने की क्षमता रखते हैं। जेडीए का मकसद ये जानना है कि मौजूदा आरओबी में से कितने आरओबी तय मानकों पर खरे हैं और कितने आरओबी ओवरलोड हैं, जिन्हें नया बनाने की जरूरत है।
जानकारी के अनुसार जेडीए शहर में मौजूदा रेलवे ओवरब्रिज की हेल्थ का पता लगाने के लिए सेंसर टेक्नोलॉजी की मदद लेगा। जयपुर विकास प्राधिकरण शहर के सभी रेलवे ओवरब्रिज में सेंसर इंस्टॉल करेगा। इसके बाद तय समय तक सेंसर से डेटा एकत्र किया जाएगा। फिर डेटा का विश्लेष्ण कर आरओबी की मौजूदा वाहन संख्या के हिसाब से क्षमता और कितनी उम्र बाकी है, इसका पता लगाया जाएगा। जो आरओबी अनफिट या कमजोर पाए जाएंगे, उनकी जगह नए रेलवे ओवरब्रिज का निर्माण करने की योजना बनेगी। जेडीए शहर में बढ़ रहे यातायात को देखते हुए आरओबी की भार वहन क्षमता और तकनीकी तौर पर आरआबी की उम्र पता लगाने की योजना पर काम कर रहा है।
क्या है वाइब्रेशन सेंसर टेक्नोलॉजी
जानकारी के अनुसार वाइब्रेशन सेंसर टेक्नोलॉजी एक जटिल प्रक्रिया है। इस तकनीक में रेलवे ओवरब्रिज के विभिन्न हिस्सों में सेंसर इंस्टॉल किए जाते हैं, जो आरओबी पर से गुजरने वाले वाहन से उत्पन्न कंपन (वाइब्रेशन) को काउंट करता है। प्रत्येक वाहन की आवाजाही की वाइब्रेशन का डेटा इसमें सेंसर स्टोर करता रहता है। साथ ही जब रेलगाड़ी आरओबी के नीचे से गुजरती है, तो उसकी वाइब्रेशन भी काउंट होती है। एक तय अवधि तक का डेटा स्टोर करके उसका अध्ययन किया जाता है। स्टडी का कई पहलुओं के आधार पर अध्ययन होता है। वाइब्रेशन काउंट डेटाके विश्लेष्ण से आरओबी के स्ट्रक्चर की मौजूदा स्थिति और भार वहन क्षमता का पता चलता है। जेडीए भी जयपुर के आरओबी का हेल्थ रिपोर्ट कार्ड तैयार करने के लिए यही तकनीक अपनाएगा
जानकारी के अनुसार वाइब्रेशन सेंसर टेक्नोलॉजी एक जटिल प्रक्रिया है। इस तकनीक में रेलवे ओवरब्रिज के विभिन्न हिस्सों में सेंसर इंस्टॉल किए जाते हैं, जो आरओबी पर से गुजरने वाले वाहन से उत्पन्न कंपन (वाइब्रेशन) को काउंट करता है। प्रत्येक वाहन की आवाजाही की वाइब्रेशन का डेटा इसमें सेंसर स्टोर करता रहता है। साथ ही जब रेलगाड़ी आरओबी के नीचे से गुजरती है, तो उसकी वाइब्रेशन भी काउंट होती है। एक तय अवधि तक का डेटा स्टोर करके उसका अध्ययन किया जाता है। स्टडी का कई पहलुओं के आधार पर अध्ययन होता है। वाइब्रेशन काउंट डेटाके विश्लेष्ण से आरओबी के स्ट्रक्चर की मौजूदा स्थिति और भार वहन क्षमता का पता चलता है। जेडीए भी जयपुर के आरओबी का हेल्थ रिपोर्ट कार्ड तैयार करने के लिए यही तकनीक अपनाएगा
प्रति घंटे वाहन संख्या का भी चलेगा पता
जानकारी के अनुसार सेंसर तकनीक से आरओबी पर से गुजरने वाले वाहनों की संख्या, पी आॅवर्स और नॉन पीक आॅवर्स में प्रति घंटे कितने वाहन गुजरते हैं, इसका भी पता चल सकेगा। दिन—रात के 24 घंटे का डिटेल व्हीकल डेटा मिलने से ट्रेफिक पुलिस को रूट प्लान बनाने में भी मदद मिलेगी। साथ ही जेडीए भविष्य के हिसाब से कहां नया आरओबी बनेगा इसकी प्लानिंग कर सकेगा।
जानकारी के अनुसार सेंसर तकनीक से आरओबी पर से गुजरने वाले वाहनों की संख्या, पी आॅवर्स और नॉन पीक आॅवर्स में प्रति घंटे कितने वाहन गुजरते हैं, इसका भी पता चल सकेगा। दिन—रात के 24 घंटे का डिटेल व्हीकल डेटा मिलने से ट्रेफिक पुलिस को रूट प्लान बनाने में भी मदद मिलेगी। साथ ही जेडीए भविष्य के हिसाब से कहां नया आरओबी बनेगा इसकी प्लानिंग कर सकेगा।