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जान का जोखिम उठाकर जिंदगियां बचा रहे ग्रामीण

locationजयपुरPublished: Sep 25, 2019 09:10:32 pm

Submitted by:

Ashish

Matrukundia submergence area in Rajsamand : राजस्थान के अधिकांश जिलों में इस बार औसत से ज्यादा बारिश हुई।

जान का जोखिम उठाकर जिंदगियां बचा रहे ग्रामीण

जान का जोखिम उठाकर जिंदगियां बचा रहे ग्रामीण

जयपुर
Matrukundia submergence area in Rajsamand : राजस्थान के अधिकांश जिलों में इस बार औसत से ज्यादा बारिश हुई। ज्यादातार बांध लबालब हो गए। हाड़ौती संभाग में बाढ़ जैसे हालात बन गए। अच्छी बारिश ने भले ही जलसंकट से जूझ रहे राजस्थान को राहत दी है लेकिन बांधों के लबालब होने के बाद छोड़ जा रहे पानी ने कई जगहों पर लोगों की मुश्किलें भी बढ़ा रखी हैं। ऐसी ही मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है राज्य के राजसमंद जिले में मातृकुंडिया डूब क्षेत्र के प्रभावित कई गांवों के सैकंड़ों ग्रामीणों को। इन गांवों के क्षेत्रों में पानी भरने से जहां फसलें खराब हो गई हैं, वहीं पशुओं के लिए चारे का संकट भी खड़ा हो गया है। ऐसे में अपने पालतु मवेशियों की जिंदगी बचाने के लिए ग्रामीण अपनी जानजोखिम में डालकर यहां कड़े संघर्ष का सामना कर रहे हैं।

आपको बता दें कि सूरज उगने के साथ ही मातृकुंडिया बांध के डूब क्षेत्र के कुण्डिया,गिलूण्ड, खुमाखेड़ा, टीलाखेड़ा, जवासिया, सांवलपुरा समेत अन्य कई गांवों के हजारों काश्तकारों का संघर्ष शुरू हो जाता है। इनके घर से निकलने के बाद वापस आने तक इनकी सलामती के लिए परिवार के लोग दुआएं करते रहते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि ये काश्तकार पानी में डूबी अपनी कुछ बची फसल को जुटाने और पशुओं के लिए चारा लाने के लिए अपनी जानजोखिम में डालकर दिनभर जूझते रहते हैं।

जलमग्न हाे चुके हैं खेत

वहीं, किसान बांध के डूब क्षेत्र में स्थित खेतों में गले, कमर तक के पानी में उतरकर ये ग्रामीण अपने पालतु जानवरों के लिए चारे की जुगत करते हैं। आपको बता दें कि इन गांवों के अधिकांश किसानों के खेत मातृकुण्डिया बांध में पानी भर जाने के साथ ही जलमग्न हो चुके हैं। इस वजह से खेतों में खड़ी फसलें भी डूब चुकी हैं। पानी भर जाने के कारण फसलें सड़ना शुरू हो गई हैं। इस क्षेत्र में कई गांवों के लोग खुद अपनी मदद करने में जुटे हैं। प्रशासनिक सहायता के दावे यहां पर नदारद हैं।

सूरज निकलने के साथ संघर्ष

सुबह होने के साथ ही काश्तकार बांध के विभिन्न किनारों पर जाकर बैठ जाते हैं। फिर बांध क्षेत्र में मछली पालन के ठेकेदार से नाव उपलब्ध कराने की गुहार करते हैं। इस गुहार के बाद कई बार तो किसानों को नाव उपलब्ध हो जाती है तो कई बार नाव नहीं मिलने पर किसान गले कमर तक के पानी को पैदल ही पार कर अपने खेतों तक पहुंचते हैं। इस दौरान खेतों में खड़ी फसलें, कंटीली झाडिय़ां, कांटेदार तार में कई बार नांव फंसने से ग्रामीणों की मुश्किलें और भी बढ़ जाती हैं।

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