आम बोलचाल में बारह वफात भी कहा जाता है दरअसल, इस दिन मुस्लिम धर्मावलंबी कब्रिस्तानों में जाकर अपने पूर्वजों की कब्र पर फातिहा पढ़ते हैं। शब-ए-बारात जिसे आम बोलचाल में बारह वफात भी कहा जाता है, इस दिन मु्स्लिम धर्मावलंबी घरों में मीठे पकवान बनाते हैं और उन्हें गरीबों-मिस्कीनों में वितरित करते हैं। राजधानी जयपुर के मु्स्लिम बहुल इलाकों में आज सुबह से ही लोग इस पर्व को मनाने में जुट गए हैं, हालांकि लोग घरों में रहकर इस पर्व को मना रहे हैं। शब-ए-बारात रात की काफी अहमियत है।
पूरे साल के गुनाहों का हिसाब-किताब किया जाता है शब-ए-बारात मुसलमान समुदाय के लिए इबादत, फजीलत, रहमत और मगफिरत की रात मानी जाती है। इस रात में पूरे साल के गुनाहों का हिसाब-किताब भी किया जाता है और लोगों की किस्मत का फैसला भी होता है। इसलिए लोग रात भर जागकर न सिर्फ अपने गुनाहों से तौबा करते हैं बल्कि अपने उन बुजुर्गों की मगफिरत के लिए भी दुआ मांगते हैं जिनकी मृत्यु चुकी है। यही वजह है कि लोग इस मौके पर कब्रिस्तान भी जाते हैं।
”शबे बरात के मौके पर भी मसाज़िद और क़ब्रिस्तान के बजाए अपने अपने घर ही पर इबादत और दुआए तोबा इस्तिग्फ़ार करें। कोरोना वाइरस की वजह से हमारी हुकूमत की जानिब से पुरे मुल्क मे लॉक डाउन है। इस दौर में भीड़ इकट्ठा होने पर वाइरस के फैलने का खतरा हे। लिहाज़ा शबे बरात के मोके पर भी मसाज़िद, क़ब्रिस्तान और दरगाहों मे जमा होने के बजाए अपने अपने घरों ही मे इबादत, तिलवात और अपने और अपने मरहूमों के लिए दुआ मगफिरत की जाए। दुआए तोबा इस्तिग्फ़ार की जाए। इस दौरान कोरोना महामारी के मद्देनजर देश और दुनिया के लिए दुआ करें।”