देश के विनिर्माण क्षेत्र में व्यापार की भावना तेजी से गड़बड़ा रही है। इस बात की अटकलें तेज हो रही हैं कि जर्मनी की अर्थव्यवस्था पर मंदी मंडराने लगी है। पूरे यूरोजोन की विकास दर गिर रही है। २०१० से २०१२ के बीच ग्रीस पर कर्ज के चलते यूरोप पहले ही आर्थिक संकट में आ चुका है। इस पर इटली, स्पेन और पुर्तगाल जैसे दक्षिण यूरोपीय देशों में वित्तीय चिंताओं ने यहां के बाजार को हिला दिया था। उस वक्त कमजोर यूरो के साथ निर्यात में वृद्धि करने वाला एकमात्र यूरोपीय देश जर्मनी ही था। यूरोपीय संघ में उत्तर और दक्षिण की विषमता को बढ़ाने वाले नकारात्मक पहलुओं के बावजूद यह भी सच है कि जर्मनी ने यूरोप में आर्थिक सुधारों का नेतृत्व किया है। हालांकि इस बार जर्मनी की अर्थव्यवस्था यूरोप के लिए भरोसा नहीं, चेतावनी के संकेत दे रही है।
इटली और ब्रिटेन के हालत भी ठीक नहीं
जर्मनी और फ्रांस के बाद यूरोजोन की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था इटली भी इस तिमाही में शून्य वृद्धि दर तक सिमट गई। इसकी वजह उस राजनीतिक उथल पुथल भी, जिसके कारण इटली की गठबंधन सरकार के पतन की आशंका बढ़ गई है। इटली की इस दशा के पीछे लोन वसूल नहीं करने वाले वित्तीय संस्थान भी हैं। यदि एक के बाद एक कर्जदारों का रवैया बिगड़ता है तो वित्तीय संकट बढ़ सकता है। ब्रिटेन में जब से बोरिस जॉनसन ने प्रधानमंत्री पद संभाला है, तब से ब्रेग्जिट की अटकलें फिर बढ़ गई हैं। यदि ऐसा हुआ तो यह ब्रिटेन और यूरोपीय संघ दोनों ने लिए अराजकता की स्थिति हो सकती है।