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शहादत का यह कैसा सम्मान, शहीद के माता-पिता 8 साल से काट रहे हैं चक्कर

locationजयपुरPublished: Jul 26, 2018 12:40:39 pm

Submitted by:

Mridula Sharma

2003 में शहीद हुए थे मेजर आलोक माथुर, 2010 में बनवाई प्रतिमा, लेकिन प्रतिमा लगवाने के लिए काट रहे चक्कर

jaipur

शहादत का यह कैसा सम्मान, शहीद के माता-पिता 8 साल से काट रहे हैं चक्कर

देवेन्द्र सिंह राठौड़/जयपुर. 7 अक्टूबर, 2003 को अरुणाचल प्रदेश के पश्चिम जिला कामेंग में आतंकियों से लोहा लेते शहीद हुए मेजर अलोक माथुर के पिता केप्टन आरएएस माथुर बेटे को खोने के बाद भी मायूस नहीं थे। देश के लिए जान देने के भाव ने उनके सीने को गर्व से चौड़ा किए हुए था। उन्हें खुशी थी कि बेटे की शहादत युवाओं के लिए प्ररेणा बनेंगी। इसलिए स्मारक बनवाकर शहीद बेटे की प्रतिमा लगवाने की सोची। बस इसके बाद दफ्तरों के चक्कर काटते-काटते 8 साल गुजर गए। झोटवाड़ा के कृष्णा कॉलोनी निवासी केप्टन आरएएस माथुर बेटे की शहादत से युवाओं को प्रेरणा मिले, इसके लिए काफी प्रयास के बाद वर्ष 2005 में कॉलोनी स्थित एक पार्क में शहीद स्मारक बनाने में कामयाब हुए।
मां देर तक निहारती रहती थीं प्रतिमा को
वर्ष 2010 में मूूर्ति लगाने के लिए परकोटा स्थित एक मूर्तिकार को ऑडर्र भी दे दिया। शहीद बेटे की प्रतिमा आकर लेने लगी तो मां मधु कभी आंखे बदलवाती तो कभी चेहरे की बनावट और नाक को ठीक कराती। जब भी जाती देर तक प्रतिमा को निहारती रहती। इस दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री ने मूॢत के अनावरण कार्यक्रम में आने की सहमति भी दे दी, लेकिन पार्क में मूॢत लगवाने के लिए स्वायत्त शासन विभाग से अनुमति नहीं लेने की वजह से कार्यक्रम निरस्त हो गया। पिता माथुर ने बताया कि वे अनुमति को लेकर कई बार स्वायत्त शासन मंत्री, विधायक, सांसद, महापौर से मिल चुके है। उधर, पत्रिका संवाददाता ने दुकान में जाकर देखा तो मूर्ति धूल फांक रहीं थीं।
पिता चाहते हैं सम्मान से लगे मूर्ति
पिता माथुर ने बताया कि कई संस्थाओं, एनजीओ और संगठनों ने मूर्ति लगाने के लिए उनसे कहा लेकिन वे चाहते हैं कि पूरी स्वीकृति के साथ सम्मान पूर्वक सरकार मूर्ति लगवाए। स्मारक भी कई जगह से खंडित हो चुका है। इसकी भी किसी ने सुध नहीं लीं।

घायल अवस्था में कायम रहा जज्बा, मिला सेना मैडल
मेजर ग्रिफ के आदमियों और दैनिक वेतन भोगी मजदूरों को 21 लाख रुपए वेतन व भत्ता बांटने जा रहे थे। इस बीच एक आतंकवादी ने एक राउंड फायर किया तो मेजर के दाये बाजू में जा लगा। घायल अवस्था में मेजर ने दूसरे आतंकवादी की गन की बैरल को पकड़े रखा और जबरदस्त लड़ाई में आंतकवादी से दो गन और 25 जिंदा राउंड भी पकड़े। उन्हें अस्पताल ले जाया गया। जहां रक्त अधिक बहने और गहरे घाव से शहीद हो गए। उनकी इस वीरता और अदम्य साहस, बहादुरी से 2005 में उन्हें मरणोरांत सेना मैडल से अलंकृत किया गया।
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