वर्ष 2010 में मूूर्ति लगाने के लिए परकोटा स्थित एक मूर्तिकार को ऑडर्र भी दे दिया। शहीद बेटे की प्रतिमा आकर लेने लगी तो मां मधु कभी आंखे बदलवाती तो कभी चेहरे की बनावट और नाक को ठीक कराती। जब भी जाती देर तक प्रतिमा को निहारती रहती। इस दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री ने मूॢत के अनावरण कार्यक्रम में आने की सहमति भी दे दी, लेकिन पार्क में मूॢत लगवाने के लिए स्वायत्त शासन विभाग से अनुमति नहीं लेने की वजह से कार्यक्रम निरस्त हो गया। पिता माथुर ने बताया कि वे अनुमति को लेकर कई बार स्वायत्त शासन मंत्री, विधायक, सांसद, महापौर से मिल चुके है। उधर, पत्रिका संवाददाता ने दुकान में जाकर देखा तो मूर्ति धूल फांक रहीं थीं।
पिता माथुर ने बताया कि कई संस्थाओं, एनजीओ और संगठनों ने मूर्ति लगाने के लिए उनसे कहा लेकिन वे चाहते हैं कि पूरी स्वीकृति के साथ सम्मान पूर्वक सरकार मूर्ति लगवाए। स्मारक भी कई जगह से खंडित हो चुका है। इसकी भी किसी ने सुध नहीं लीं।
घायल अवस्था में कायम रहा जज्बा, मिला सेना मैडल
मेजर ग्रिफ के आदमियों और दैनिक वेतन भोगी मजदूरों को 21 लाख रुपए वेतन व भत्ता बांटने जा रहे थे। इस बीच एक आतंकवादी ने एक राउंड फायर किया तो मेजर के दाये बाजू में जा लगा। घायल अवस्था में मेजर ने दूसरे आतंकवादी की गन की बैरल को पकड़े रखा और जबरदस्त लड़ाई में आंतकवादी से दो गन और 25 जिंदा राउंड भी पकड़े। उन्हें अस्पताल ले जाया गया। जहां रक्त अधिक बहने और गहरे घाव से शहीद हो गए। उनकी इस वीरता और अदम्य साहस, बहादुरी से 2005 में उन्हें मरणोरांत सेना मैडल से अलंकृत किया गया।