मां शाकंभरी के प्राकट्य को लेकर अलग—अलग ग्रंथों में अलग—अलग बातें कहीं गई हैं। ज्योतिषाचार्य पंडित सोमेश परसाई बताते हैं कि देवी भागवत महापुराण में शाकंभरी माता को देवी दुर्गा का ही स्वरूप बताया गया है। इसके अनुसार पार्वतीजी ने शिवजी को पाने के लिए कठोर तपस्या की। उन्होंने अन्न—जल त्याग दिया. जीवित रहने के लिए केवल शाक-सब्जियां ही खाईं। इसलिए उनका नाम शाकंभरी रखा गया।
ज्योतिषाचार्य पंडित नरेंद्र नागर के अनुसार मां शाकंभरी ने दुर्गमासुर नामक राक्षस का संहार किया था। इस संबंध में पद्म पुराण में विस्तार से उल्लेख किया गया है। कथा के अनुसार एक बार धरती पर जब अकाल पड़ा तो पूरा अन्न खत्म हो गया। तब देवी शाकंभरी प्रकट हुई और शाक—सब्जियां उगाकर लोगों की प्राण रक्षा की और सृष्टि को नष्ट होने से बचाया। देवी ने सौ नैत्रों से बारीश की इसलिए उन्हें शताक्षी कहा गया।