इस तरह शाकंभरी नवरात्र 21 जनवरी से प्रारंभ होकर पूर्णिमा यानि 28 जनवरी को समाप्त होंगे। शाकंभरी देवी वस्तुतः मां अन्नपूर्णा देवी का रूप हैं जोकि शाक-सब्जियों की देवी हैं। मां शाकंभरी यानि मां अन्नपूर्णा का मां दुर्गा के सभी स्वरूपों में सबसे अनूठा रूप है। मां शाकंबरी को आदिशक्ति के रूप में पूजा जाता है।
पौष शुक्ल अष्टमी को बांदा अष्टमी, बनादा अष्टमी भी कहते हैं जिस दिन से शाकंभरी नवरात्रि की शुरुआत होती है। गुप्त नवरात्रि की तरह शाकंभरी नवरात्रि का भी बहुत महत्व है। नवरात्र के इन 9 दिनों में मां शाकंबरी अर्थात मां अन्नपूर्णा की साधना की जाती है। देवीस्तुति के ग्यारहवें अध्याय में आदिशक्ति के रूप में मां शाकंबरी का वर्णन किया गया है।
इसमें स्पष्ट कहा गया है कि आदिशक्ति के जिन स्वरूपों का वर्णन मिलता है उनमें सबसे अनूठा रूप मां शाकंभरी का ही है। माता शाकंभरी को कहीं चार भुजाओं वाली और कहीं अष्ट भुजाओं वाली देवी दर्शाया गया है। कथा है कि जब एक बार पृथ्वी पर कई वर्षों तक सूखा पड़ने से खाने को अन्न का एक दाना भी नहीं बचा था, मां शाकंभरी ने अपने शरीर पर उगी शाक-वनस्पति से ही लोगों के प्राणों की रक्षा की थी।