पंचांग के अनुसार इस बार ज्येष्ठ अमावस्या 10 जून को है। शनि जयंती पर शनिदेव की प्रसन्नता के लिए व्रत रखने और शनि पूजा करने का विधान है। इससे जहां शनिदेव का आशीर्वाद प्राप्त होता है वहीं कुंडली में शनि दोष हो तो उसका दुष्प्रभाव खत्म हो जाता है। शनि का प्रकोप शांत करने का यह सबसे अच्छा अवसर माना जाता है।
ज्योतिषाचार्य पंडित एमकुमार शर्मा बताते हैं कि शनि जयंती पर व्रत रखकर शनिपूजा से हर तरह की परेशानियां दूर होती है। शनि जयंती के दिन सुबह जल्दी उठकर सूर्यदेव को जल अर्पित करें, इसके बाद शनिदेव का स्मरण करते हुए व्रत और पूजा का संकल्प लें। दिनभर व्रत रखते हुए यथासंभव रात में शनि पूजन करें।
इस दिन शनि देव के बीज मंत्र— ओम प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराए नम: का अधिक से अधिक जाप जरूर करें। दशरथ कृत शनि स्त्रोत्र या पिप्पलाद कृत शनि स्त्रोत्र का पाठ करें। जो शनि की महादशा—अंतरदशा आदि से गुजर रहे हैं या जिनपर शनि की साढ़े साती चल रही है उन्हें शनि जयंती पर व्रत रखकर शनि पूजा जरूर करनी चाहिए।
ज्योतिषाचार्य पंडित सोमेश परसाई बताते हैं कि शनिदेव न्याय के देवता हैं और कर्मों के अनुसार फल देते हैं। पिछले जन्मों में या इस जन्म में जो भी पाप अथवा गलत काम किए हैं, शनि दशा में उनका दुष्परिणाम भुगतना ही पडता है। हमेशा याद रखें कि शनिदेव जल्द प्रसन्न होनेवाले देव नहीं हैं, उनकी नियमित आराधना से आंशिक राहत ही मिल सकती है।
शनिजन्य प्रकोपों से शांति प्राप्त करने के लिए शनि जयंती के दिन मजदूरों, असहायों की सहायता करें, खासतौर पर विकलांगों को, जरूरतमंदों को दान दें। तिल, सरसों तैल आदि का दान करें, शनि मंदिर में जाकर शनि देव के दर्शन करें। पीपल के समक्ष तैल का दीपक लगाएं, पीपल की परिक्रमा करें। इन उपायों से शनि देव प्रसन्न होते हैं।