scriptइस उम्रवालों को शनि बिल्कुल नहीं देते दुख, साढ़े साती में भी मिलती है राहत | Shani Sadesati Pippalad Rishikrit Shani Strot | Patrika News

इस उम्रवालों को शनि बिल्कुल नहीं देते दुख, साढ़े साती में भी मिलती है राहत

locationजयपुरPublished: Jul 04, 2020 08:56:21 am

Submitted by:

deepak deewan

नवग्रहों में न्यायाधीश माने जाते शनिदेव सभी को अपने कर्मों का फल जरूर देते हैं. अच्छे कर्म करनेवालों को सुखी करते हैं जबकि बुरे कर्म करनेवालों को प्रताडित करते हैं. हालांकि उम्र का एक ऐसा भी दौर रहता है जब शनिदेव जरा भी दुख नहीं देते. शनि प्रकोप से राहत की यह कथा ऋषि पिप्पलाद से जुडी है.

Shani Sadesati Pippalad Rishikrit Shani Strot

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जयपुर. नवग्रहों में न्यायाधीश माने जाते शनिदेव सभी को अपने कर्मों का फल जरूर देते हैं. अच्छे कर्म करनेवालों को सुखी करते हैं जबकि बुरे कर्म करनेवालों को प्रताडित करते हैं. चूंकि व्यवहारिक जीवन में सभी कोई न कोई पाप कर्म कर ही जाता है इसलिए जीवन में सभी को कुछ न कुछ कष्ट भोगना ही पडता है. हालांकि उम्र का एक ऐसा भी दौर रहता है जब शनिदेव जरा भी दुख नहीं देते. शनि प्रकोप से राहत की यह कथा ऋषि पिप्पलाद से जुडी है.
ज्योतिषाचार्य पंडित नरेंद्र नागर के मुताबिक शिव महापुराण में भगवान शिव के अनेक अवतारों में से एक पिप्पलाद अवतार का वर्णन भी किया गया है। शिव के पिप्पलाद अवतार महर्षि के पुत्र थे. महर्षि दधीचि और उनकी पत्नी सुवर्चा दोनों ही भगवान शिव के परम भक्त थे। यही कारण था कि उनके यहां भगवान शिव ने पिप्पलाद के रूप में जन्म लिया। उनका जन्म पीपल के पेड़ के नीचे हुआ इसलिए ब्रह्माजी ने उनका नाम पिप्पलाद रखा।
असुरों से संघर्ष के लिए वज्र बनाने के लिए महर्षि दधीचि के शरीर की अस्थ्यिां ली गईं थीं. महर्षि दधीचि के वियोग में उनकी पत्नी सुवर्चा भी पिप्पलाद को जन्म देने के बाद सती हो गईं. पिप्पलाद जब बडे हुए तो जन्म से पूर्व ही पिता के चले जाने और जन्म होते ही माता के भी सती होने की बात जानकर दुखी हुए. अपने बचपन में ही अनाथ होकर कष्ट झेलने का कारण उन्होंने देवताओं से पूछा तो उन्हें बताया गया कि शनि के प्रकोप के कारण ऐसा हुआ है। यह सुनकर पिप्पलाद बड़े क्रोधित हुए.

ज्योतिषाचार्य पंडित दिनेश शर्मा बताते हैं कि पिप्पलाद ने कहा कि शनि को इतना अहंकार है कि वह नवजात शिशुओं को भी नहीं छोड़ता है। उन्होंने अपने ब्रह्मदंड से शनि पर प्रहार कर किया जो उनके पैर पर लगा जिससे शनिदेव लंगड़े हो गए। देवताओं ने पिप्पलाद मुनि से शनिदेव को क्षमा करने की विनय की. देवताओं की प्रार्थना पर पिप्पलाद ने शनि को छोड तो दिया पर यह वजन लिया कि शनि जन्म से लेकर 16 साल तक की उम्र तक किसी को कष्ट नहीं देंगे। यही वजह कि बाल्यावस्था में शनि की साढेसाती भी प्रभावी नहीं होती.
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