चतुर्थी तिथि की अन्य विशेषताएं भी हैं। ज्योतिषाचार्य पंडित सोमेश परसाई बताते हैं कि चतुर्थी चन्द्रमा की चौथी कला है। माना जाता है कि जल के देवता वरुण कृष्ण पक्ष में इसका अमृत पीते हैं। हालांकि वरुण देव यह अमृत लौटा भी देते हैं। वरुण देव शुक्ल पक्ष में यह अमृत वापस कर देते हैं। चतुर्थी तिथि की दिशा नैऋत्य मानी गई है।
चतुर्थी तिथि काे खला नाम से भी जाना जाता है। इस नाम से ही स्पष्ट है कि यह तिथि अशुभ रहती है इसलिए चतुर्थी तिथि पर शुभ कार्य वर्जित रहते हैं। कृष्ण पक्ष में चतुर्थी तिथि पर शिव पूजन शुभ माना गया है लेकिन शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर शिव पूजन अशुभ कहा गया है। पौष मास में यह तिथि शून्य कही गई है।
इस तिथि का वार से विशेष संबंध है। ज्योतिषाचार्य पंडित नरेंद्र नागर के अनुसार गुरुवार को आनेवाली चतुर्थी तिथि जहां मृत्युदा कही गई है वहीं शनिवार की चतुर्थी तिथि को सिद्धिदा अर्थात् सफलतादायक कहा गया है। इस विशेष स्थिति यानि शनिवार को चतुर्थी तिथि आने पर इसके रिक्ता होने का दोष समाप्तप्रायः हो जाता है।