गुलाब कोठारी का अग्रलेख ‘ऊर्जा का संतुलन’ मानव को सचेत करता है। प्रकृति से उलट व्यवहार घातक बना है। अतिक्रमण, वनों की कटाई, गोचर भूमि पर अतिक्रमण, प्रदूषण कोरोना जैसी घातक बीमारियों को न्यौता दे रहा है। सृष्टि, संस्कृति, प्रकृति के अनुकूल आचरण ही सुकून दे सकेगा।
शिवजी लाल मीना, जयपुर
कोरोना हो या फिर सार्स, इबोला, निपाह आदि रोग ये सब मनुष्य के अनंत भोग एवं प्रकृति के नियमों के उलंघन के कारण पनपे रोग है। कोरोना त्रासदी भी ऐसी ही एक भीषण महामारी है। यह रोग चीन के वुहान शहर के मीट बाजार से निकला है। पशु-पक्षी तो प्रकृति की शोभा होते हैं। ऐसा लगता है हम बाजार को नहीं बाजार हमें खा रहे हैं।
-आईदान सियाग (नोखा) बीकानेर
यह सही है कि बदलते परिवेश में नर-नारियों के बीच दूरियां अधिक बनती जा रही हैं। प्रकृति से छेड़छाड़ करने से स्त्रियों में भारी बदलाव आया है। यही वजह है कि समाज में अपराध की अनेक विकृतियां जन्म ले रही हैं।
– तेजप्रताप यादव, शिक्षाविद जवाहरनगर श्रीगंगानगर
प्रतिज्ञा शरीर की सूक्ष्म से सूक्ष्म चीज को अपने सरल शब्दों में पाठक तक पहुंचाने का महत्वपूर्ण कार्य गुलाब कोठारीजी ने किया है। केवल शरीर सुविधाएं बनकर रह गया है। बाकी ऐसा नहीं है, इसलिए कोठारी जी के प्रत्येक लेख पर फोकस होना चाहिए ताकि जीवन की महत्वपूर्ण बातों को समझ कर जीवन को ऊंचाई दी जा सकती है।
गौतम चमन, साहित्यकार, बाड़मेर
कोठारी जी ने बिल्कुल सटीक और समसामयिक लिखा है कि आज की शिक्षा से तो हमारी सृष्टि के अनेक तत्व खो गए हंै। यह कैसी शिक्षा है जिसमें संस्कारों से ही नई पीढ़ी दूर हो गयी है। यह कैसी शिक्षा है जिसमें बस अंको को ही महत्व दिया जा रहा है। हमें चिंतन करना होगा।
-भैरू राम गुर्जर, पूर्व जिला शिक्षा अधिकारी
हमारी संस्कृति का मूल आधार प्रकृति के नियम हंै लेकिन इन नियमों के साथ लगातार छेडख़ानी के नतीजे हमें भुगतने पड़ रहे हैं। विकास के नाम पर लगातार तबाही के नतीजे हमें देखने को मिल रहे। लॉकडाउन में जब प्रकृति ने सांस लेना शुरू किया था वह अब फिर से धीरे-धीरे खत्म होने लगा है।
-सुरेंद्र शर्मा, जोधपुर
गुलाब कोठारी जी ने सही लिखा कि दूसरे की नकल करने से स्वयं का विकास रुकता है। जीवन में आगे बढऩे के लिए स्वयं को अच्छी चीजें अपनाते हुए आगे बढऩा चाहिए। जब भी किसी की नकल करके आगे बढ़ते हैं तो तय है नुकसान होगा ही।
— अहिंसा जैन, उदयपुर
-आदित्य विजय, वरिष्ठ शिक्षक, कोटा
भारतीय दर्शन को वैज्ञानिक आधार पर प्रस्तुत कर गुलाबजी ने आत्मा व शरीर की पृथकता के सिद्धांत को बहुत सरल शब्दों में समझाया है। नई पीढ़ी को यह लेख पढ़ भारतीय ज्ञान को समझना चाहिए।
-मोहन जाखड़, सामाजिक कार्यकर्ता, सीकर
शरीर को कार और मन को चालक बताने के साथ शरीर, बुद्धि व मन के सूक्ष्म कार्यों की विवेचना की गई है। लेख वैज्ञानिक और आत्मिक ज्ञान प्राप्ति के साधकों के लिए महत्वपूर्ण है।
-पंडित रामावतार मिश्र, भागवताचार्य व ज्योतिविद्, सीकर
लेख में आज की शिक्षा के संदर्भ में महत्वपूर्ण बात लिखी है। सृष्टि निर्माण के महत्वपूर्ण तत्व आज की शिक्षा नीति ने खो दिए हैं, जिससे जीवन और प्रकृति के बीच समन्वय शिक्षा का अभाव रहता है। विज्ञान वार्ता में आत्मा शरीर एवं प्रकृति का महत्वपूर्ण समन्वय को सारगर्भित तरीके से समझाया गया है। युवा पीढ़ी में वेद विज्ञान की विपुल सम्पदा से परिचित कराने के उदेश्य से आलेख बहुत ही महत्वपूर्ण है।
– गोरधनसिंह ज़हरीला, साहित्यकार, बाड़मेर
शिक्षा के राजनीतिकरण और निजी स्कूलों की प्रतिस्पर्धा ने विद्यार्थियों को भ्रमित करने का काम किया है। आलेख ऊर्जा का संतुलन न केवल पठनीय है बल्कि विद्यार्थियों को नई राह दिखाने वाला भी है। विद्यार्थी जीवन को इससे सीख लेनी चाहिए। सरकार को चाहिए कि वह शिक्षा प्रणाली में लगातार सुधार और समीक्षा करती रहे।
– सुरेंद्र कुमार उपाध्याय, समाजसेवी बीकानेर
जीवन में शिक्षा अनिवार्य है लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि हम समाज व संस्कृति को भूल जाएं। आज की युवा पीढ़ी पढ़ाई और आगे जॉब तक ही लक्ष्य लेकर चल रही है। शिक्षा जो ग्रहण की उसका फायदा हम नीचे तक नहीं पहुंचाएं तो क्या मतलब रहेगा।
— जितेश श्रीमाली, उदयपुर