शब्दों का शोर तो एक तमाशा है, मौन ही नृत्य की सही परिभाषा है : दीपक महाराज
-स्पिक मैके के तहत पंडित दीपक महाराज ने दी प्रस्तुति
शब्दों का शोर तो एक तमाशा है, मौन ही नृत्य की सही परिभाषा है : दीपक महाराज
शब्दों का शोर तो एक तमाशा है, मौन ही नृत्य की सही परिभाषा है। कुछ ऐसे ही शब्दों से पंडित दीपक महाराज ने कथक को परिभाषित किया। मौका था आईआईएस यूनिवर्सिटी की ओर से बुधवार को आयोजित स्पिक मैके कार्यक्रम का, इसके तहत पंडित दीपक महाराज ने प्रस्तुति दी और गल्र्स से रूबरू हुए। उन्होंने कहा कि क्लासिकल वही सीख सकता है, जिसके मन में धैर्य है। एक स्टूडेंट द्वारा पूछे गए सवाल के जवाब में पंडित दीपक महाराज ने कहा कि वो आज के युग में जिस तरह से किसी भी गाने पर कथक डांस हो रहा है, उसके सख्त खिलाफ है, ऐसे में कथक की शुद्धता भंग होती है। उन्होंने अपने पिता बिरजु महाराज का उदाहरण देते हुए कहा कि जब भी उन्हें कोई बॉलीवुड फिल्म ऑफर होती थी, तो वे उसके सीन, एक्ट्रेस की वेशभूषा के बारे में अवश्य पूछते थे और यही कारण है कि बॉलीवुड में उनके काम की आज भी कद्र होती है, चाहे वो देवदास का ढाई शाम रोक लई हो या फिर बाजीराव मस्तानी का मोहे रंग दो लाल हो।
मुगलों के बाद कथक में महिलाओं की एंट्री
कथक प्रस्तुति में पंडित दीपक महाराज का तबलावादन पर प्रांशु चतुरलाल, वोकल एवं हारमोनियम पर गुलाब वारिस और सारंगी पर मोहम्मद आयूब ने साथ दिया। इसके साथ ही पंडित दीपक महाराज ने कथक की विधा टुकड़ा प्रस्तुत किया, इसके बाद मशहूर 16 चक्कर, तिहाइयां पेशकर छात्राओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। माखन चोरी के गद्यभाव ने तो एक ऐसा समां बांधा कि सभी छात्राएं इस नृत्य से जुड़ती हीं चली गईं। ढाई शाम रोक लई पर अपनी कला का प्रदर्शन कर पूरे माहौल को सांस्कृतिक एवं सूफियाना रंग में रंग दिया। इस दौरान दीपक महाराज ने जानकारी देते हुए कहा कि कथक की शुरुआत ही पुरुषों से हुई थी, मुगलों के आने के बाद महिलाओं की एंट्री हुई, लेकिन अब सिर्फ महिलाएं ही कथक करती हैं, पुरुषों की संख्या न के बराबर हो चुकी है।
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