बड़ी संख्या में आये लोग..
देश भर के सिल्क बुनकरों की कलात्मकता देखने बड़ी संख्या में लोग आ रहे हैै। प्रदर्शनी में आए बुनकरों ने सिल्क पर दक्षिण के मंदिरों को धागों से बुना है, वंही कुशल चितेरे की तरह उल्लास और आनंद के दृश्यों को भी छापा है।
देश भर के सिल्क बुनकरों की कलात्मकता देखने बड़ी संख्या में लोग आ रहे हैै। प्रदर्शनी में आए बुनकरों ने सिल्क पर दक्षिण के मंदिरों को धागों से बुना है, वंही कुशल चितेरे की तरह उल्लास और आनंद के दृश्यों को भी छापा है।
सिल्क इंडिया एक्जीबिशन में..
प्रदर्शनी में देश भर के सिल्क कारिगर अपने बेहतरीन उत्पादों के साथ आए है। कारीगरों ने बडी ही खुबसुरती के साथ सिल्क पर अपनी कल्पनाओं को आकार दिया हैं। कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिला गुरूवार को ‘हस्तशिल्पी ‘ की ओर से बिड़ला ऑडिटोरियम में आयोजित 6 दिवसीय सिल्क इंडिया एक्जीबिशन में। हस्तशिल्पी के प्रबंध संचालक टी अभिनंद ने बताया कि इस एग्जीबिशन में भारत के विभिन्न प्रांतो के साथ -साथ पाकिस्तान और बांग्लादेश के ढाका सिल्क भी प्रदर्शित की जा रही है।
प्रदर्शनी में देश भर के सिल्क कारिगर अपने बेहतरीन उत्पादों के साथ आए है। कारीगरों ने बडी ही खुबसुरती के साथ सिल्क पर अपनी कल्पनाओं को आकार दिया हैं। कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिला गुरूवार को ‘हस्तशिल्पी ‘ की ओर से बिड़ला ऑडिटोरियम में आयोजित 6 दिवसीय सिल्क इंडिया एक्जीबिशन में। हस्तशिल्पी के प्रबंध संचालक टी अभिनंद ने बताया कि इस एग्जीबिशन में भारत के विभिन्न प्रांतो के साथ -साथ पाकिस्तान और बांग्लादेश के ढाका सिल्क भी प्रदर्शित की जा रही है।
गौतम की कला को देखकर हर कोई हुआ दंग..
इसके अलावा पश्चिम बंगाल के पूर्व मदनीपुर से आए बुनकर गौतम की कला को देखकर हर कोई दंग है। प्रदर्शनी में आए कोलकाता के बुनकरों ने अपनी पेंटिंग कला के लिए सिल्क को कैनवास की तरह उपयोग किया है।
इसके अलावा पश्चिम बंगाल के पूर्व मदनीपुर से आए बुनकर गौतम की कला को देखकर हर कोई दंग है। प्रदर्शनी में आए कोलकाता के बुनकरों ने अपनी पेंटिंग कला के लिए सिल्क को कैनवास की तरह उपयोग किया है।
एक साड़ी को बनाने में लगता है 3 माह तक का समय..
प्रदर्शनी में पश्चिम बंगाल से आए शांतनु ने विष्णुपुरी सिल्क और खादी सिल्क पर जंगल में कुलांच मारते हिरन, आकाश में उड़ते उन्मुक्त पक्षियों को दर्शाया है। वंही बुनकर अपने साथ आरी स्टीच वर्क की साडिय़ां लाए है। इसे बनाने के लिए पहले सिल्क पर पेंटिंग की जाती है फिर पेंटिंग पर धागे से बुनाई होती है। एक साड़ी को बनाने में तीन माह तक का समय लग जाता है।
प्रदर्शनी में पश्चिम बंगाल से आए शांतनु ने विष्णुपुरी सिल्क और खादी सिल्क पर जंगल में कुलांच मारते हिरन, आकाश में उड़ते उन्मुक्त पक्षियों को दर्शाया है। वंही बुनकर अपने साथ आरी स्टीच वर्क की साडिय़ां लाए है। इसे बनाने के लिए पहले सिल्क पर पेंटिंग की जाती है फिर पेंटिंग पर धागे से बुनाई होती है। एक साड़ी को बनाने में तीन माह तक का समय लग जाता है।