जयपुर अजमेर राजमार्ग पर अत्यधिक दुर्घटनाओं को देखते हुए दूदू सीएचसी के साथ ट्रोमा सेंटर बनाया गया था। अभी यह सीएचसी के साथ ही है, अलग से कोई व्यवस्था नहीं है। इमरजेंसी एक्सीडेंट का कोई केस आता है तो उसका अन्य सीएचसी की तरह ही ईलाज किया जाता है।
चौमूं : निजी अस्पताल जाओ या जयपुर राजकीय सामुदायिक अस्पताल को ही ट्रोमा सेंटर बनाया हुआ है। लेकिन इसमें इसमें पर्याप्त सुविधाएं नहीं होने से घायलों को इसका लाभ नहीं मिल रहा। ऐसे में उन्हें उपचार कराने के लिए निजी अस्पतालों की शरण लेनी पड़ रही है। अस्पताल में बना ट्रोमा सेंटर नाममात्र का है। इसमें त्वरित गति से होने वाली सुविधाएं नहीं होने से इमरजेंसी में दुर्घटना ग्रस्त मरीजों भर्ती नहीं कर उन्हें जयपुर रैफर कर दिया जाता है। कई बार तो ब्लड प्रेशर, पल्स आदि नापने वाला मॉनिटर भी चालू नहीं रहता है। उसे भी गंभीर मरीज के ट्रोमा सेंटर में पहुंचने के बाद चालू किया जाता है। वहीं मरीज को इंजेक्शन एवं मरहम पट्टी कर इतिश्री कर ली जाती है और हाथों-हाथ रैफर कार्ड बनाकर रैफर कर दिया जाता है।
मेडिकल कॉलेज अस्पतालों के भरोसे… राज्य में 22 ट्रोमा सेंटर जिला अस्पताल और 20 सीएचसी और अन्य अस्पतालों में चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के अधीन चल रहे हैं। चिकित्सा शिक्षा विभाग के अधीन 15 अस्पताल मेडिकल कॉलेज स्तर के हैं। जहां आवश्यक सुविधाएं घायलों को मिल जाती है।
जिम्मेदार विभाग चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग