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सौ में से 11 रुपए खर्च कर सरकार देख रही शहर से गांवों का सपना

locationजयपुरPublished: Jul 14, 2019 10:49:57 am

Submitted by:

Nidhi Mishra

प्रदेश में रुर्बन मिशन कागजों में ही दम तोड़ता दिख रहा है। चार सालों में अधिकतर क्लस्टरों की सिर्फ कागजी डीपीआर ही बन सकी है।

Rurban Mission In Rajasthan

सौ में से 11 रुपए खर्च कर सरकार देख रही शहर से गांवों का सपना

जयपुर। गांवों में शहरों जैसी सुविधाएं देने का सपना प्रदेश में कागजों में दम तोड़ता नजर आ रहा है। केन्द्र के श्यामा प्रसाद मुखर्जी रुर्बन मिशन के तहत इस योजना की चाल प्रदेश में इतनी धीमी है कि तीन साल से कागजी कार्रवाई और बैठकें तो खूब हुई, लेकिन धरातल पर ग्रामीण विकास महकमा सिर्फ 11 प्रतिशत ही राशि खर्च कर पाया। योजना के तहत कई क्लस्टर तो आज भी ऐसे हैं, जहां चयन के चार साल बीतने के बाद भी सरकारें उनकी सूरत नहीं बदल पाई। चयनित क्लस्टरों के लिए केन्द्र व राज्य की साझेदारी से 1346. 25 करोड़ रुपए के निवेश की विस्तृत कार्ययोजना (डीपीआर) बनाई गई, लेकिन तीन चरणों की योजना अनुमोदित होने के बाद भी खर्च महज 161.10 करोड़ रुपए ही हो पाए हैं। प्रस्तुत है प्रदेश के कुछ चुनिंदा क्लस्टरों से वास्तविक हालात बयां करती ग्राउंड रिपोर्ट….
केस 1:
नौगांवा- तीन साल बीते, सिर्फ डीपीआर बनी
रुर्बन मिशन के दूसरे फेज में अलवर जिले के नौगांवा कलस्टर में नौगांवा, चीडवा और रसगन ग्राम पंचायत को शामिल किया गया। अनुमानित कार्ययोजना 100 करोड़ की तैयार की गई। योजना प्रभारी रमेश गुर्जर का कहना है कि वर्तमान में केंद्र और राज्य सरकार के अंश की स्वीकृति का कार्य चल रहा है। कोई कार्य स्वीकृत नही हुआ है, केवल विस्तृत कार्य योजना तैयार की जा चुकी है। कार्ययोजना में 17 मदो की कार्य योजना बनाई गई है, जिस पर आगामी वर्षो में कार्य प्रारंभ किया जाएगा।
केस 2:
गढ़ी- प्रस्ताव हुआ निरस्त, अब फिर मशक्कत
वर्ष 2016-17 के चरण में बांसवाड़ा जिले में गढ़ी पंचायत समिति का चयन किया गया था। गढ़ी, परतापुर, बेडवा ओर खेरन का पारडा पंचायतों को जोड़ा गया था। विकास अधिकारी राजेश वर्मा के अनुसार प्रस्ताव मंजूर होने से पूर्व पिछले वर्ष परतापुर गढ़ी को नगरपालिका बना दिया गया। पंचायतो का कुछ हिस्सा नपा में शामिल होने से प्रस्ताव निरस्त हो गया। अब इसी साल दूसरा प्रस्ताव भेजा गया है। जिसमे खेड़ा, भगोरा ओर साकरिया पंचायतों को शामिल किया गया है।
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केस: 3
डबलीवास कुतुब- विकास के लिए बस चयन की औपचारिकता
हनुमानगढ जिले की डबलीवास कुतुबवास पंचायत को एक वर्ष पूर्व तृतीय फेज के लिए चयनित किया गया था। लेकिन वास्तव में किसी भी तरह से स्मार्ट गांव की दिशा में कार्य नहीं हुआ। सरपंच अमनदीपकौर चोटिया ने बताया कि योजना के तहत किसी भी तरह की राशि नहीं आयी तथा न ही किसी अन्य एजेंसी ने कोई कार्य करवाया। विकास अधिकारी इकबाल सिंह के अनुसार जयपुर से आये प्रतिनिधि सिर्फ डीपीआर तैयार कर ले गये थे, परंतु किसी भी तरह की राशि नहीं आयी। योजना कागजों में ही सिमटी रही।
केस: 4
सालावास: चार साल धीमी रही विकास की चाल
सीएम अशोक गहलोत और केन्द्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत के गृह जिले में चयनित सालावास कलस्टर को चार वर्ष पहले पहले चरण में चयनित किया गया था। 6 ग्राम पंचायत चुनी गईं। क्लस्टर में विकास कार्य तो हुए लेकिन इनकी गति अब तक धीमी ही रही। चार वर्ष में भी कन्वर्जेन्स और केन्द्रीय राशि के 30.65 करोड़ रुपए में से चार साल बीतने के बाद भी करीब 16 करोड़ रुपए ही वास्तव में खर्च हो पाए हैं। सरपंच रेखा मांगस ने बताया कि योजना पर पंचायतीराज के अलावा कोई भी विभाग ध्यान ही नहीं दे रहा है।
नौ दिन चले अढ़ाई कोस
तीन साल की कार्ययोजना में राज्य सरकार की विभिन्न योजना में कन्वर्जेंस के जरिए 1001. 19 करोड़ रुपए के कार्य कराए जाने थे, लेकिन अब तक महज 147 करोड़ रुपए के कार्य ही हो पाए हैं। केन्द्र ने अपने हिस्से की 345.06 करोड़ रुपए की राशि में से 144 करोड़ रुपए राज्य को दे दिए, लेकिन खर्च महज 14.06 करेाड़ रुपए ही हो सके।

अब तक बने 15 क्लस्टर
वर्ष 2015-16 से शुरू हुई इस योजना में तीन चरणों में अब तक राज्य में 15 क्लस्टर चयनित हो चुके हैं। हर क्लस्टर में चार-पांच ग्राम पंचायतों को शामिल कर इनमें शहरों की सुविधाएं विकसित करनी थी। 2015-16 में 5, 2016-17 में 6 और 2017-18 में 4 क्लस्टरों का चयन किया गया था।
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