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जयपुर

वोट बैंक-नेताओं का चक्रव्यूह…, स्लम फ्री राजस्थान का सपना चूर

वोट बैंक के कारण राजनीति की भेंट चढ़ रही स्लम फ्री मुहिम: वहीं गुजरात में बिल्डरों के जरिए उसी जगह बहुमंजिला आवास, लोग, सरकार, बिल्डर सभी खुश, उधर राजस्थान में सरकार ने 9 वर्ष पहले पॉलिसी बनाकर फाइल में दबाई

जयपुरOct 31, 2021 / 06:49 pm

Amit Vajpayee

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अमित वाजपेयी/ जयपुर। शहर को स्लम-फ्री (कच्ची बस्ती मुक्त) बनाने की मुहिम में राजस्थान सफल नहीं हो सका। यहां सरकारी जमीन पर 1500 से ज्यादा कच्ची बस्तियां हैं। इनमें से महज दस फीसदी कच्ची बस्तियों में ही मूलभूत सुविधा पहुंची। नौ साल पहले बनी स्लम डवपलमेंट पॉलिसी को फाइलों में दबाने के कारण ऐसा हुआ। जबकि, कमोबेश इसी तरह की पॉलिसी (स्लम रिहेबिलिटेशन पॉलिसी पीपीपी) पर गुजरात सरकार बेहतर तरीके से काम कर रही है।
यही कारण है कि अहमदाबाद नगर निगम (एएमसी) ने पिछले पांच वर्ष में 20 कच्ची बस्ती के सैकड़ों लोगों को उसी जगह पक्के आवास बनाकर सौगात दी। यहां जयपुर को छोड़ कहीं भी प्रभावी काम नहीं हुआ। यहां दो दशक में करीब दो दर्जन कच्ची बस्तिवासियों को पक्के मकानों में शिफ्ट किया गया।

गुजरात व राजस्थान की पॉलिसी में समानता…

-पब्लिक-प्राइवेट-पार्टनरशिप के तहत बिल्डर के जरिए उसी जगह पक्के आवास बनेंगे।
-निर्माण कार्य के दौरान कच्ची बस्ती के लोगों को दूसरी जगह शिफ्ट करने का खर्च बिल्डर देगा।
-पक्के बहुमंजिल आवास (जी+2 से जी+7 तक) सीवरेज, पेयजल, सड़क व अन्य सुविधाएं बिल्डर अपनी लागत से विकसित करेगा।
-कम से कम 25 वर्गमीटर (269 वर्गफीट) क्षेत्रफल का आवास।

-कच्ची बस्ती के लोगों को नि:शुल्क आवास आवंटन।
समझें: पॉलिसी एक, गुजरात आगे फिर हम क्यों पीछे
गुजरात: न लोगों पर भार न सरकार पर

अहमदाबाद म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन ने कच्ची बस्ती के लोगों से एक भी पैसा नहीं लिया। अर्थात नि:शुल्क आवंटन। न ही सरकार पर आर्थिक भार पड़ा। क्योंकि, इस काम में बिल्डरों को जोड़ा गया। बिल्डरों ने न केवल पक्के बहुमंजिला आवास का निर्माण किया, बल्कि निर्माण कार्य के दौरान लोगों के दूसरी जगह रहने का खर्चा भी उठाया। इसके बदले सरकार ने बिल्डर को वहीं कुछ जमीन दे दी।
राजस्थान: पक्के मकान देने की बजाय वहीं अधिूसचित
राजस्थान डवलपमेंट स्लम पॉलिसी (पब्लिक—प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल) लागू की गई। इसके तहत बिल्डर को जोड़कर पीपीपी मॉडल पर कच्ची बस्ती की जगह पक्के मकान बनाने थे। इसके बदले बिल्डर को वहीं जमीन का एक हिस्सा मिलेगा, जिसे वह विकसित करके बेच सकेगा। इसके उलट राज्य सरकार का ज्यादा ध्यान कच्ची बस्ती को डिनोटिफाइड करने पर रहा।
गुजरात इसलिए आगे…

-कच्ची बस्ती की जगह ही पक्के आवास में बसाने के पीछे कारण यह है कि वर्षों से लोगों का रोजगार यही आस-पास इलाके से जुड़ा है। अहमदाबाद के अम्बावाड़ी में शांतादीप और नवरंगपुरा में लखुडी हाउसिंग योजना इसका उदाहरण।
-गुजरात सरकार की पॉलिसी में पहले 60 प्रतिशत लोगों की सहमति का प्रावधान रखा, लेकिन उसे 2013 में हटा दिया। तर्क-सरकारी जमीन पर कब्जा करना और फिर नहीं हटना उनका हक नहीं। इससे काम में तेजी आई।
-सेवा व महिला हाउसिंग ट्रस्ट जैसी संस्थाओं को जोडना, जिससे लोगों का विश्वास बना।
-जयपुर में केवल संजय नगर कच्ची बस्ती में इस पॉलिसी पर काम शुरू हुआ, लेकिन वह भी ठप है।

राजस्थान में नेताओं का अडंगा
राजस्थान में नेताओं की दखलंदाजी के कारण कच्ची बस्तियों को हटाकर प्रभावितों को दूसरी जगह शिफ्ट करने का काम नहीं हो सका। नेताओं को डर है कि उनके विधानसभा क्षेत्र से कच्ची बस्ती के लोग चले गए तो उनका वोट बैंक भी प्रभावित होगा।

फैक्ट फाइल…

जयपुर…
-310 कच्ची बस्ती जयपुर में

-1.14 लाख घर कच्ची बस्ती में
-109 कच्ची बस्ती परिभाषा से बाहर किए गए यानि डिनोटिफाइड

-71 हजार घर हैं बाकी

अहमदाबाद…
-588 कच्ची बस्ती अहमदाबाद शहर में
-164 सरकारी जमीन पर बसी
-20 बस्तियों की जगह बहुमंजिला पक्के आवास

-46 बस्तियों में काम की प्रक्रिया चल रही

हम भी काम करेंगे…
शहरों को स्लम फ्री बनाने पर काम चल रहा है। पॉलिसी के तहत डवलपर्स को इसमें किस तरह जोड़ा जाए, इस पर भी मंथन किया गया है। दूसरे राज्यों के काम का अध्ययन किया है, जल्द परिणाम सामने आएंगे।
-दीपक नंदी, निदेशक, स्वायत्त शासन विभाग

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