-निर्माण कार्य के दौरान कच्ची बस्ती के लोगों को दूसरी जगह शिफ्ट करने का खर्च बिल्डर देगा।
-कम से कम 25 वर्गमीटर (269 वर्गफीट) क्षेत्रफल का आवास। -कच्ची बस्ती के लोगों को नि:शुल्क आवास आवंटन।
गुजरात: न लोगों पर भार न सरकार पर अहमदाबाद म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन ने कच्ची बस्ती के लोगों से एक भी पैसा नहीं लिया। अर्थात नि:शुल्क आवंटन। न ही सरकार पर आर्थिक भार पड़ा। क्योंकि, इस काम में बिल्डरों को जोड़ा गया। बिल्डरों ने न केवल पक्के बहुमंजिला आवास का निर्माण किया, बल्कि निर्माण कार्य के दौरान लोगों के दूसरी जगह रहने का खर्चा भी उठाया। इसके बदले सरकार ने बिल्डर को वहीं कुछ जमीन दे दी।
राजस्थान डवलपमेंट स्लम पॉलिसी (पब्लिक—प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल) लागू की गई। इसके तहत बिल्डर को जोड़कर पीपीपी मॉडल पर कच्ची बस्ती की जगह पक्के मकान बनाने थे। इसके बदले बिल्डर को वहीं जमीन का एक हिस्सा मिलेगा, जिसे वह विकसित करके बेच सकेगा। इसके उलट राज्य सरकार का ज्यादा ध्यान कच्ची बस्ती को डिनोटिफाइड करने पर रहा।
-गुजरात सरकार की पॉलिसी में पहले 60 प्रतिशत लोगों की सहमति का प्रावधान रखा, लेकिन उसे 2013 में हटा दिया। तर्क-सरकारी जमीन पर कब्जा करना और फिर नहीं हटना उनका हक नहीं। इससे काम में तेजी आई।
-जयपुर में केवल संजय नगर कच्ची बस्ती में इस पॉलिसी पर काम शुरू हुआ, लेकिन वह भी ठप है। राजस्थान में नेताओं का अडंगा
-310 कच्ची बस्ती जयपुर में -1.14 लाख घर कच्ची बस्ती में
-109 कच्ची बस्ती परिभाषा से बाहर किए गए यानि डिनोटिफाइड -71 हजार घर हैं बाकी अहमदाबाद…
-588 कच्ची बस्ती अहमदाबाद शहर में
-20 बस्तियों की जगह बहुमंजिला पक्के आवास -46 बस्तियों में काम की प्रक्रिया चल रही हम भी काम करेंगे…
शहरों को स्लम फ्री बनाने पर काम चल रहा है। पॉलिसी के तहत डवलपर्स को इसमें किस तरह जोड़ा जाए, इस पर भी मंथन किया गया है। दूसरे राज्यों के काम का अध्ययन किया है, जल्द परिणाम सामने आएंगे।