जानकारी के अनुसार दवा दुकानों की ओर से लपकों को कमीशन के आधार पर नियुक्त किया हुआ है. जो लपका, मरीज के परिजनों को जाल में फंसाकर दवा दुकान तक ले जाकर दवा दिलवाने में अधिक सफल होता है, उसका कमीशन उसके बिल के आधार पर बनता है. माना जा रहा है कि कुछ लपके रोजाना 5-7 हजार तक का कमीशन आस पास की दवा दुकानों से बनवा रहे हैं यानि इनकी मासिक अनुमानित आय एक लाख से डेढ़ लाख रुपए तक भी है जिसका बोझ सिर्फ और सिर्फ मरीज की जेब तक जा रहा है.
अस्पताल ने इस साल की शुरूआत में ही लपकों को रोकने की योजना बनाई थी. इनडोर मरीजों के परिजनों के आस पास लपकों को नहीं आने देने के लिए लाइफ लाइन तक (Online drug prescription) ऑनलाइन दवा पर्ची पहुंचाने की योजना थी. इसे आईसीयू व अन्य विभाग में शुरू कर दिया गया है। अस्पताल ने इसके लिए एक हैल्पर और एक फार्मासिस्ट को छह-छह वार्ड दिए हुए है.ये दोनों कर्मचारी वार्ड या आईसीयू से दवा पर्चियां एकत्रित कर काउंटर तक पहुंचाते हैं. निशुल्क दवा काउंटर से मरीज के परिजन को सीआर नंबर दिया जाता है. मरीज के परिजन को लाइफ लाइन काउंटर पर जाकर सीधे सीआर नंबर देना होता है। इससे बीच में मिलने वाले लपकों तक दवा पर्ची नहीं पहुंच पाती लेकिन अस्पताल की यह योजना कम्प्यूटरों की कमी और नेटवर्क कनेक्टिविटी की कमी के कारण इन वार्डों और विभागों से आगे ही नहीं बढ़ पाई.