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स्वास्थ्य सेवाओं के कुप्रबंधन से बढ़ता रहा सवाई मानसिंह अस्पताल का भार, अब क्षमता से दोगुना काम करने की मजबूरी

locationजयपुरPublished: Mar 18, 2019 11:05:36 am

Submitted by:

Mridula Sharma

शहर के अन्य अस्पतालों में मरीज रुकें तो बढ़े उपचार की गुणवत्ता

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स्वास्थ्य सेवाओं के कुप्रबंधन से बढ़ता रहा सवाई मानसिंह अस्पताल का भार, अब क्षमता से दोगुना काम करने की मजबूरी

विकास जैन/जयपुर. हर मर्ज की दवा बन गया है एसएमएस। सर्दी-खांसी-जुकाम से लेकर हर बड़ी बीमारी के इलाज के लिए शहर के लोग सिर्फ एसएमएस अस्पताल पहुंच रहे हैं। ऐसे हालात में डॉक्टर, जांच मशीनें और ओपीडी दोगुनी क्षमता से सेवाएं दे रहे हैं। अस्पताल की सालाना 15 लाख मरीजों के इलाज की क्षमता है, लेकिन करीब 30 लाख मरीज यहां आ रहे हैं। वहीं घर के पास स्थित बेहतर सुविधाओं युक्त अस्पताल मरीजों के लिए तरस रहे हैं। छोटे अस्पतालों का विकास करने के पीछे यही मंशा थी कि किसी भी तरह एसएमएस का दबाव कम हो और यह आमजन के लिए और बेहतर अस्पताल बने। इसके बावजूद इस अस्पताल का दबाव कम होने के बजाय लगातार बढ़ता ही रहा। नतीजे में अस्पताल की क्षमता से 50 फीसदी से भी अधिक मरीजों का यहां उपचार होने लगा। मरीजों को तत्काल इलाज के बजाए इंतजार बढ़ता गया। पड़ताल में सामने आया कि पिछले आठ सालों में यहां ओपीडी और इमरजेंसी में ही करीब 2 करोड़ 10 लाख मरीज उपचार करवा चुके हैं। जो संभवत: दुनिया भर में किसी भी एक अस्पताल में सर्वाधिक में से हो सकते हैं।
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कैसे मिलेगी गुणवत्तापूर्ण सेवा
– सोनोग्राफी: 2010 में 1274 प्रोसीजर हुए थे, जो पिछले साल 1,29,719 पर पहुंच गए। सबसे पहले 2011 में इसमें एक साथ उछाल आया, जब एक ही साल में यह संख्या 52,875 तक पहुंच गई।
– ईसीजी जांच: 2010 में 32,116 जांचें, अब 1,79,039 हुर्ईं। 2011 में ही यह 1,45,308 तक पहुंच गई।
एक्सरे: 2010 में एक्सरे संख्या 67,126 से बढ़कर अब 3,64,111 हो चुकी है।
दो उदाहरण: सरकार क्यों जिम्मेदार
– निजी को दे दिया भवन : 15 साल पहले सीकर रोड पर ट्रोमा अस्पताल बनना था लेकिन भवन निजी अस्पताल को दे दिया गया। पहले बने हुए ट्रोमा सेंटर को निजी अस्पताल को देने के बाद सरकार ने और पैसे लगाकर एसएमएस के पास ही दूसरा ट्रोमा सेंटर बना दिया
– वंचित इलाका महरूम : 10 साल पहले मानसरोवर शिप्रा पथ पर चिकित्सा शिक्षा विभाग का मानस आरोग्य सदन बनकर तैयार था, लेकिन उसे भी एक निजी अस्पताल को दे दिया गया और बड़े इलाके को सरकारी अस्पताल की सुविधा से वंचित होना पड़ा।
बोझ कम होने में बड़ी बाधाएं
– कुछ यूनिटें शिफ्ट करने की कोशिश की गई, लेकिन दबाव बनाकर कई बार डॉक्टर फिर एसएमएस आ गए
– बड़े डॉक्टर छोटे अस्पतालों में जाकर बैठने में खुद को छोटा समझते थे
– ऐसा नहीं है कि सारे ही डॉक्टर छोटे अस्पतालों में नहीं गए। जयपुरिया और कांवटिया में तो सुपर स्पेशियलिटी सुविधाएं तक विकसित हो चुकी हैं।
दूसरे अस्पतालों पर ध्यान ही नहीं दिया
सरकार ने छोटे अस्पतालों का विकास तो किया, लेकिन वहां मरीजों को रोक नहीं पाई। 2010 में एसएमएस में एक साल में 19 लाख के करीब जांच होती थीं, वह पिछले साल 2018 में बढ़कर करीब 86 लाख तक पहुंच चुकी है। इमरजेंसी व ओपीडी मरीजों की संख्या भी चौंकाने वाली है। 8 साल पहले यहां साल में करीब 10 लाख मरीज इन दोनों माध्यमों से उपचार करवाते थे, पिछले साल यह संख्या करीब 30 लाख थी।
पूर्व अधीक्षकों ने कहा: क्षमता से अधिक मरीज, अब रैफरल की जरूरत
– सुविधाएं दूसरे अस्पतालों में भले ही बढ़ाते जाओ, लेकिन एसएमएस में आज मरीजों की संख्या को भी देखना चाहिए। क्षमता से करीब दोगुने मरीज यहां है। जब तक एसएमएस को रैफरल अस्पताल नहीं बनाया जाएगा, तब तक इस अस्पताल पर से दबाव कम होगा ही नहीं।
डॉ. नरपत सिंह शेखावत
– एसएमएस अस्पताल को रैफरल अस्पताल बनाने के लिए हमने हमारे समय में प्रयास किए। सामान्य मरीजों को उनके आसपास रोका जाए तो उन्हें भी तत्काल इलाज मिलेगा और एसएमएस को भी राहत मिलेगी। यहां साल में 15 लाख मरीजों का उपचार वर्तमान संसाधनों में किया जा सकता है।
डॉ. वीरेंद्र सिंह
हो घोषणा
– एसएमएस को रैफरल घोषित किया ही जाना चाहिए। ऐसा नहीं करने पर कितने भी नए अस्पताल हम बढ़ाते जाएंगे, उसका फायदा एसएमएस को नहीं मिलेगा। कोई सा भी विभाग देख लो, हर जगह क्षमता से अधिक मरीज हैं।
डॉ.एल.सी.शर्मा
वर्तमान अधीक्षक ने कहा, पिछले सालों से बढ़े हैं रोगी
– एसएमएस अस्पताल में मरीज यहां उन्हें मुहैया कराई जा रही सुविधाओं के कारण आ रहे हैं। दूसरे अस्पतालों में भी सुविधाएं लगातार बढ़ रही हैं। अब उन अस्पतालों में भी मरीजों की संख्या बढ़ी है।
डॉ. डीएस मीणा

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