अध्ययन में ये जीन सामान्य रूप में कई बच्चों में पाए गए हैं। बड़ी संख्या में अलग-अलग जीन का भी पता चला है। अभी तक बच्चों में लम्बाई कम होने के प्रमुख कारणों में आनुवंशिक, पारिवारिक हिस्ट्री, थायराइड और सीलियक गेहंू की एलर्जी के कारण प्रमुख थे। जिनमें ये कारण नहीं होते थे, उनकी कम लम्बाई का इलाज संभव नहीं था।
नए जीन सामने आने के बाद उपचार पर होगा काम
अब इस अध्ययन के बाद नए जीन के उपचार के लिए नई दवाएं इजाद करने की प्रक्रिया शुरू हो पाएगी। इस अध्ययन को इंडियन जनरल ऑफ एंडोक्रायनोलॉजी में प्रकाशन की अनुमति मिल गई है। जल्द ही इसका प्रकाशन होगा। इसके बाद यह अध्ययन ऑनलाइन उपलब्ध हो जाएगा। वर्ष 2014 में कॉलेज में इस लैब की स्थापना के बाद यह अपनी तरह का बड़ा अध्ययन बताया जा रहा है। यह अध्ययन 19 बच्चों पर किया गया। कॉलेज के प्राचार्य एवं नियंत्रक डॉ. यूएस अग्रवाल का कहना है कि जेनेटिक रिसर्च लैब की स्थापना के बाद यह बड़ी कामयाबी है।
अब इस अध्ययन के बाद नए जीन के उपचार के लिए नई दवाएं इजाद करने की प्रक्रिया शुरू हो पाएगी। इस अध्ययन को इंडियन जनरल ऑफ एंडोक्रायनोलॉजी में प्रकाशन की अनुमति मिल गई है। जल्द ही इसका प्रकाशन होगा। इसके बाद यह अध्ययन ऑनलाइन उपलब्ध हो जाएगा। वर्ष 2014 में कॉलेज में इस लैब की स्थापना के बाद यह अपनी तरह का बड़ा अध्ययन बताया जा रहा है। यह अध्ययन 19 बच्चों पर किया गया। कॉलेज के प्राचार्य एवं नियंत्रक डॉ. यूएस अग्रवाल का कहना है कि जेनेटिक रिसर्च लैब की स्थापना के बाद यह बड़ी कामयाबी है।
अधिकांश बच्चों में मिला जीन का दोहरापन और अनुपस्थिति
कॉलेज के एंडोक्रायनोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. संदीप माथुर का कहना है कि शरीर में 46 तरह के क्रोमोसोम होते हैं। इस तकनीक में इनका विस्तृत परीक्षण किया जाता है। लाखों मार्कर का एक चिप से अध्ययन होता है। इसमें सामने आया कि जिन बच्चों में लम्बाई नहीं बढऩे के कारण पता नहीं थे, उनके जीन्स में दोहरापन था या उनकी अनुपस्थिति थी। अध्ययन के लिए एकत्र डाटा का विश्लेषण बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ साइंटिफिक रिसर्च के प्रशांत सूवीवाला और डॉ. कृष्ण मोहन ने किया। मेडिकल कॉलेज से डॉ. संदीप माथुर के साथ डॉ. हेमा सिंह और डॉ. प्रवीण चौधरी ने अध्ययन में सहयोग किया।
कॉलेज के एंडोक्रायनोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. संदीप माथुर का कहना है कि शरीर में 46 तरह के क्रोमोसोम होते हैं। इस तकनीक में इनका विस्तृत परीक्षण किया जाता है। लाखों मार्कर का एक चिप से अध्ययन होता है। इसमें सामने आया कि जिन बच्चों में लम्बाई नहीं बढऩे के कारण पता नहीं थे, उनके जीन्स में दोहरापन था या उनकी अनुपस्थिति थी। अध्ययन के लिए एकत्र डाटा का विश्लेषण बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ साइंटिफिक रिसर्च के प्रशांत सूवीवाला और डॉ. कृष्ण मोहन ने किया। मेडिकल कॉलेज से डॉ. संदीप माथुर के साथ डॉ. हेमा सिंह और डॉ. प्रवीण चौधरी ने अध्ययन में सहयोग किया।