script…तो 1952 में सुमित्री होतीं पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति | so in 1952 Sumitri would have been the first tribal woman president | Patrika News

…तो 1952 में सुमित्री होतीं पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति

locationजयपुरPublished: Jun 25, 2022 08:15:36 pm

Submitted by:

Anand Mani Tripathi

झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू को एनडीए प्रत्याशी बनाए जाने से देश को पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति मिलने जा रही है। ऐसे में सिंगरौली की सुमित्री देवी पर चर्चा होना भी लाजिमी है। 1952 में अगर सांसद और विधायकों का बहुमत मिल जाता तो सुमित्री देश की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति होतीं।

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झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू को एनडीए प्रत्याशी बनाए जाने से देश को पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति मिलने जा रही है। ऐसे में सिंगरौली की सुमित्री देवी पर चर्चा होना भी लाजिमी है। 1952 में अगर सांसद और विधायकों का बहुमत मिल जाता तो सुमित्री देश की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति होतीं।

वरिष्ठ पत्रकार जयराम शुक्ला बताते हैं कि 1952 में देश का पहला राष्ट्रपति चुना जाना था। कांग्रेस ने डॉ.राजेंद्र प्रसाद को प्रत्याशी बनाया। इनके मुकाबले में डॉ. राम मनोहर लोहिया ने सोशलिस्ट पार्टी से आदिवासी सुमित्री देवी को नामित किया था। सुमित्री तब मध्यप्रदेश में सिंगरौली की विधायक थीं। हालांकि सांसद-विधायकों का बहुमत नहीं मिलने के कारण लोहिया का ख्वाब अधूरा रह गया था, जिसे अब पीएम नरेंद्र मोदी पूरा करने जा रहे हैं।

सिंगरौली विधानसभा सीट के लिए पहली बार 1951 में चुनाव हुए थे। यह सीट सिंगरौली निवास के नाम से जानी जाती थी। वोटरों को दो विधायक चुनने थे। खैराही गांव की सुमित्री को सोशलिस्ट पार्टी ने प्रत्याशी बनाया। उनके खिलाफ कांग्रेस व भारतीय जनसंघ सहित अन्य दलों के छह उम्मीदवार थे।

तब सुमित्री और श्याम कार्तिक दुबे चुनाव जीते थे। यह सीट विंध्य प्रदेश में आती थी। तब वहां 48 सीट थीं। बाद में विंध्य प्रदेश को मध्यप्रदेश में शामिल किया गया। उसके बाद नए राज्य मध्यप्रदेश के चुनाव 1957 में कराए गए। राज्य पुनर्गठन के बाद सुमित्री ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा था, लेकिन वे हार गई थीं।


अब खपरैल घर ही पहचान

सुमित्री के परिजन शोभा सिंह बताते हैं कि विधायक बनने के बाद उनकी दादी सुमित्री पालकी की सवारी करती थीं। अब खपरैल घर और ऊबड़-खाबड़ सड़कें ही यहां की पहचान है। अब परिवार खेती-किसानी करता है।

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