प्रदूषण नियंत्रण मंडल के सदस्य सचिव अजय कुमार गुप्ता ने बताया कि राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण मंडल, खनन व भूविज्ञान विभाग के अधिकारियों की एक समिति बनाई गई है। समिति को 24 मई तक अपनी रिपोर्ट सौंपने के निर्देश दिए गए हैं। समिति इस पर भी विचार करेगी कि इस संबंध में उभरकर सामने आने वाली पर्यावरणीय समस्याओं को किस तरीके से दूर रखा जा सकता है। समिति की सिफारिशों को लेकर एक कार्यशाला भी इसी महीने आयोजित की जाएगी। इसमें खान, क्रशर, ग्राइंडिंग उद्योग, प्लांट सप्लायर्स सहित कई संबंधित क्षेत्रों के उद्यमी उपस्थित रहेंगे। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा नदी की बजरी के इस्तेमाल पर रोक लगाने संबंधी आदेश के बाद से बजरी की किल्लत हो गई है। सुप्रीम कोर्ट का मानना था कि इससे नदी के अंदर के जीवन यानी जैव विविधता पर असर पड़ रहा था।
तकनीकी अड़चन को दूर करना जरूरी
अभी खनिजों से निकलने वाले अवशिष्ट मुख्यतया पत्थर खनन के स्थान पर धूल के तौर पर स्टोन कटिंग यूनिट में कटिंग वेस्ट के तौर पर और खदान के मुहाने पर भारी मात्रा में उपलब्ध हैं। लेकिन इसके उपयोग के लिए पर्यावरणीय स्वीकृति में संशोधन करने की जरूरत होगी। आबादी को ध्यान में रखते हुए अभी स्टोन क्रशर यूनिट को 1500 मीटर दूर रखा जाता है। खनिजों के अवशिष्टों को खपाने के लिए अभी कोई अनुदान या वित्तीय सहायता नहीं मिलती है, जबकि खनन विभाग द्वारा 5-10 रुपए प्रति टन की सब्सिडी दी जा सकती है।