ज्योतिषाचार्य पंडित सोमेश परसाई बताते हैं कि इस दिन पवित्र नदियों में स्नान का महत्व है। द्वापर युग में भीष्म पितामह ने धर्मराज युधिष्ठिर को सोमवती स्नान का महत्व बताया था. इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने से समृद्धि और स्वास्थ्य सुख प्राप्त होता है। सोमवती अमावस्या पर धान, पान, हल्दी, सिन्दूर और सुपाड़ी की भंवरी दी जाती है। भंवरी का सामान ननद, भांजे या ब्राहृमण को दिया जाता है। स्वयं के परिवार या गोत्र में भंवरी का दान नहीं दिया जाता।
सोमवती अमावस्या के दिन सुबह जल्द उठकर पवित्र नदियों में स्नान करें. घर पर ही गंगाजल या अन्य पवित्र नदियों का जल मिलाकर स्नान किया जा सकता है. सुबह सूर्यदेव को जल अर्पित करें और शिवजी का ध्यान करते हुए व्रत व पूजा का संकल्प लें. पीपल के पेड़ की पूजा करें और शाम को शिवपूजा करें. इस दिन पितरों को याद करते हुए उन्हें जल अर्पित करें. अमावस्या पर पितरों का स्मरण करने से पितरों की आत्माओं को शांति मिलती है। उनकी प्रसन्नता से जीवन में सभी सुख प्राप्त होने लगते हैं।
ज्योतिषाचार्य पंडित नरेंद्र नागर के अनुसार अहम कामों में बार-बार अवरोध आ रहे हों तो सोमवती अमावस्या पर पीपल पेड़ की विधि विधान से पूजा जरूर करें. संभव हो तो 108 परिक्रमा करें और इसके बाद हर अमावस्या पर ऐसा करें. पीपल की इस सरल पूजा से दिक्कतें दूर होने लगेंगी और काम बनने लगेंगे। पीपल के पेड़ में सभी देवों का वास होता है और पितरों का स्थान भी माना जाता है। याद रखें कि जीवन में सुख प्राप्ति के लिए पितरों का आशीर्वाद बहुत जरूरी होता है।