जयपुर

‘हिन्दी’ बॉक्स ऑफिस पर ‘बादशाहत’: दक्षिण की फिल्मों का धमाल बॉलीवुड के लिए कड़ी चुनौती

बदल गई तस्वीर: तमिल, तेलुगू, कन्नड़ और मलयालम की फिल्मों पर जमकर ‘धन-वर्षा’
 
 
हिन्दी पट्टी के दर्शकों में अब ओटीटी और डब फिल्मों का क्रेज

जयपुरMay 17, 2022 / 02:24 am

Aryan Sharma

‘हिन्दी’ बॉक्स ऑफिस पर ‘बादशाहत’: दक्षिण की फिल्मों का धमाल बॉलीवुड के लिए कड़ी चुनौती

नई दिल्ली. दक्षिण की फिल्में समूचे भारत में बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचा रही हैं। पिछले कुछ महीनों में वहां की फिल्मों ने रेकॉर्ड तोड़ कमाई कर हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री के लिए चुनौती खड़ी कर दी है। दक्षिण के फिल्मकारों ने साबित कर दिया है कि कहानी सुनाने की कला सलीकेदार हो तो साधारण थीम पर भी असाधारण फिल्म बनाई जा सकती है।
बॉलीवुड फिल्मों में सलीकेदार ट्रीटमेंट के अभाव में हिन्दी पट्टी के दर्शक न सिर्फ ओटीटी की तरफ खिंचे हैं, दक्षिण की डब फिल्में भी उन्हें खूब आकर्षित कर रही हैं। बॉलीवुड के पारंपरिक दर्शकों के बीच तमिल, तेलुगू, कन्नड़ और मलयालम सिनेमा की स्वीकार्यता बढ़ी है। कभी सलमान खान, शाहरुख खान और अक्षय कुमार की फिल्मों पर टूटने वाले दर्शक अब महेश बाबू, राम चरण, यश, प्रभास, अल्लू अर्जुन, जूनियर एनटीआर के दीवाने हैं। उत्तर भारत में सात साल पहले तेलुगू फिल्मकार एस.एस. राजामौली की ‘बाहुबली: द बिगनिंग’ (Baahubali: The Beginning) ने कारोबारी मैदान में जो धमाका किया था, दक्षिण की फिल्मों को लेकर वैसी धमक तेज से और तेज होती गई। ‘बाहुबली: द कन्क्लूजन’ (2017) के बाद राजामौली की ही नई फिल्म ‘आरआरआर’ (RRR) अब तक 270 करोड़ रुपए से ज्यादा का कारोबार कर चुकी है। ‘केजीएफ’ (K.G.F.) सीरीज और ‘पुष्पा: द राइज’ (Pushpa: The Rise) पर भी हुई धन-वर्षा से स्पष्ट है कि हिन्दी फिल्मों के मुकाबले दक्षिण की मूवीज मौजूदा दौर के दर्शकों की नब्ज बेहतर समझ रही हैं। ‘केजीएफ’ और ‘पुष्पा’ में छोटी-सी कहानी को भव्य तरीके से पर्दे पर पेश किया गया। इन फिल्मों में एक्शन सीक्वेंस और ड्रामे के सहारे कहानी को आगे बढ़ाया जाता है। हर अगले सीन के लिए जमीन तैयार कर ली जाती है और फ्लो बना रहता है। दर्शक तालियां पीटते हैं, सीटियां बजाते हैं और फिल्म से जुड़ जाते हैं। दक्षिण की ‘जय भीम'(Jai Bhim) जैसी फिल्म भी हिन्दी पट्टी के गंभीर दर्शकों का ध्यान खींचती है। यह दक्षिण की फिल्मों का दबदबा ही है कि ‘आरआरआर’ में अजय देवगन और आलिया भट्ट मेहमान भूमिकाओं, जबकि ‘केजीएफ-2’ में संजय दत्त और रवीना टंडन अहम रोल में नजर आ रहे हैं। ऐसा नहीं है कि दक्षिण की सभी फिल्में हिन्दी डोमेस्टिक बॉक्स ऑफिस कोड (Hindi domestic box office code) को तोड़ने में कामयाब रही हैं। इस साल प्रभास की ‘राधे श्याम’, अजीत की ‘वलिमै’, विजय की ‘रॉ (बीस्ट)’ और रवि तेजा की ‘खिलाड़ी’ ने हिन्दी पट्टी में बॉक्स ऑफिस पर निराश किया है। वहीं, बॉलीवुड के प्रसिद्ध सितारे अक्षय कुमार, रणवीर सिंह, अजय देवगन, अमिताभ बच्चन, शाहिद कपूर, जॉन अब्राहम और टाइगर श्रॉफ दर्शकों को आकर्षित नहीं कर पा रहे हैं। दरअसल, इस साल के शुरुआती साढ़े चार महीनों में उनकी जो फिल्में रिलीज हुई हैं, वे या तो फ्लॉप हो गई हैं या बॉक्स ऑफिस पर उम्मीद से बहुत कम प्रदर्शन कर रही हैं।

हॉलीवुड की टक्कर की तकनीक
दक्षिण की कई फिल्मों में हॉलीवुड की टक्कर की तकनीक नजर आ रही है। हॉरर कॉमेडी से पीरियड ड्रामा तक और साइकोलॉजिकल थ्रिलर से साइंस फिक्शन तक, दक्षिण भारतीय सिनेमा में हर जोनर पर फिल्में बन रही हैं। दक्षिण के निर्माता-निर्देशक, लेखक, अभिनेता अछूती थीम को लेकर जोखिम उठाने का साहस दिखाते हैं। वैसा साहस फिलहाल बॉलीवुड में नजर नहीं आता।

बॉलीवुड की हालत कांग्रेस जैसी…
बॉक्स ऑफिस पर बॉलीवुड की पकड़ ढीली पड़ती जा रही है। इस साल ‘द कश्मीर फाइल्स’ (252.90 करोड़ रुपए) को छोड़ कोई हिन्दी फिल्म दक्षिण की फिल्मों जैसी रेकॉर्ड तोड़ कमाई नहीं कर सकी। ट्रेड पंडितों का कहना है कि अगर बॉलीवुड फिल्मों ने ढर्रा नहीं बदला, तो उसकी हालत कांग्रेस जैसी हो जाएगी। कांग्रेस की तरह बॉलीवुड फिल्में भी लगातार सिमटती जा रही हैं।

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