Space: दंग रह जाएंगे जान अंतरिक्ष में ऐसे रहते हैं एस्ट्रोनॉट
Space: जहां एक तरफ हमारे महत्वाकांक्षी मिशन चंद्रयान-2 के लैंडर विक्रम को लेकर उम्मीदें अभी बरकरार हैं… खुशी की बात यह है कि लैंडर विक्रम सही सलामत है… वैज्ञानिकों का कहना है कि वे लगातार संपर्क साधने की कोशिश कर रहे हैं… विक्रम से संपर्क साधने की उम्मीद उन्होंने नहीं छोड़ी है.. ऐसे में हम आपको अंतरिक्ष और अंतरिक्ष यात्रियों के बारे में कुछ बातें बताने जा रहे हैं. जिनके बारे में शायद ही आपको पता होगा… क्या आप जानते हैं कि अंतरिक्ष में अंतरिक्षयात्रियों को कितनी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. दरअसल, अंतरिक्ष यात्रा के बारे में सुनना जितना अच्छा लगता है, ये उससे कहीं ज्यादा मुश्किल होती है. अंतरक्षि यात्रियों को जीरो ग्रैविटी जिंदा रहने और दैनिक जीवन के तमाम काम करने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. उसमें भी सबसे अधिक परेशानी तब होती है जब उन्हें मल-मूत्र का त्याग करना होता है. बता दें कि 19 जनवरी 1961 को अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री एलन शेफर्ड जब पहली बार अंतरिक्ष में गए तो उन्हें वहां सिर्फ 15 मिनट रहना था.ये दुनिया के किसी वैज्ञानिक या इंसान की अंतरिक्ष में पहली यात्रा थी. क्योंकि एलन शेफर्ड को केवल 15 मिनट ही अंतरिक्ष में गुजारने थे इसलिए उनके टॉयलेट की कोई व्यवस्था नहीं की गई थी, लेकिन लॉन्च में देरी होने की वजह से शेफर्ड को अंतरिक्ष सूट में ही पेशाब करनी पड़ी.
उसके कुछ सालों बाद अंतरिक्ष यात्रियों के लिए एक पाउच बनाया गया.इस पाउच के साथ भी एक परेशानी थी और वह यह थी कि यह बार-बार फट जाता था. वहीं शौच के लिए अंतरिक्ष यात्रियों को पीछे की तरफ एक बैग चिपकाकर रखना पड़ता था. इससे अंतरिक्ष यात्री फ्रेश तो हो जाते थे लेकिन उसकी बदबू से उन्हें काफी परेशानी होती थी. लेकिन अपोलो मून मिशन के दौरान पेशाब के लिए बनाए गए पाउच को एक वॉल्व से जोड़ दिया गया था. इस वॉल्व को दबाते ही पेशाब स्पेस में चली जाती थी. इसमें भी एक परेशानी थी कि अगर वॉल्व दबाने में एक सेकेंड की देरी भी हुई तो यूरिन अंतरिक्ष यान में ही तैरने लगती. इसे पहले खोल देने से अंतरिक्ष के वैक्यूम से शरीर के अंग बाहर खींचे जा सकते थे.
इसलिए अंतिरक्ष यात्रियों को एस्ट्रोनॉट्स पाउच में ही पेशाब करनी पड़ी. उसके बाद 1980 के दौरान नासा ने मैग्जिमम
एब्जॉर्बेसी गार्मेंट बनाया, जो एक तरह का डायपर था. इसे खास तौर पर महिला अंतरिक्ष यात्रियों के लिए बनाया गया था. लेकिन इसका प्रयोग पुरुष अंतरिक्ष यात्री भी करते थे. इसके बाद नासा ने जीरो-ग्रैविटी टॉयलेट बनाया.
इसमें अंतरिक्ष यात्री को पीछे बैग तो नहीं बांधना पड़ता, लेकिन शौच करने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ती है.
क्योंकि अंतरिक्ष में मल अपने आप बाहर नहीं आता. एक ट्यूब के जरिए इसमें लगे कंटेनर में मल इक_ा होता है
और पेशाब के लिए भी ऐसा ही सिस्टम है। जमा पेशाब को वाटर रिसाइक्लिंग यूनिट से साफ कर पीने लायक बना दिया जाता है।बात सोने की करें तो सोने के लिए खुद को एक स्लीपिंग बैग के अंदर पैक करना पड़ता है.
पैक होना इसलिए भी जरूरी होता है जिससे कि आपका शरीर एक जगह रहे. सबसे रोचक चीज जो होती है कि
इस रूम में आप उल्टे हो जाएं या सीधे. आपको कोई सेंसेशन महसूस नहीं होती है. आपको बता दें सबसे लंबा स्पेस वॉक का रिकॉर्ड भारत की सुनीता विलियम्स ने बनाया है। अपनी स्पेस यात्रा के दौरान उन्होंने करीब 8 मिनट का एक वीडियो बनाया था जिसमें अंतरिक्ष यात्री की दिनचर्या का पूरा उल्लेख था।