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देश में खेल ही नहीं, सियासत में भी क्रिकेट अव्वल

निशानेबाज राज्यवर्धन सिंह बने खेल मंत्री, सिद्धू, चौहान, शुक्ला और चांदना राज्य सरकार में हैं मंत्री, बाइचुंग भूटिया ने बनाई हमरो सिक्किम पार्टी

जयपुरMar 27, 2019 / 07:32 pm

Aryan Sharma

देश में खेल ही नहीं, सियासत में भी क्रिकेट अव्वल

आर्यन शर्मा/जयपुर. भारत में क्रिकेट को लेकर लोगों की दीवानगी किसी से छुपी नहीं है। इसी वजह से दूसरे खेलों के मुकाबले क्रिकेट की लोकप्रियता चरम पर है। खास बात यह है कि राजनीति में भी क्रिकेट नम्बर एक है, यानी राजनीति के मैदान में उतरने वाले खिलाडिय़ों में सबसे ज्यादा क्रिकेटर हैं। अब विश्व कप 2011 विजेता टीम के सदस्य रहे क्रिकेटर गौतम गंभीर भी सियासी पिच पर भाजपा की तरफ से बैटिंग करेंगे। भाजपा उन्हें नई दिल्ली सीट से चुनावी मैदान में उतार सकती है। वहीं पैरालम्पिक खेलों में पदक विजेता एथलीट दीपा मलिक भी भाजपा से जुड़ गई हैं।
राजनीति में आने वाले खिलाडिय़ों का खेल के आधार पर आकलन करें तो इनमें लगभग आधे प्लेयर तो क्रिकेटर ही हैं। इसकी प्रमुख वजह क्रिकेट खिलाडिय़ों की लोकप्रियता है, जिसे भुनाने के लिए राजनीतिक दल उन्हें अपनी पार्टी का टिकट देने में संकोच नहीं करते हैं। ऐसा नहीं है कि हर क्रिकेटर राजनीति के पिच पर उतरने के बाद जीत के चौके-छक्के मारने में सफल रहा है। कुछ क्रिकेटर ऐसे भी हैं, जो पहली ही गेंद पर क्लीन बोल्ड भी हुए हैं। राजनीति में क्रिकेटरों के बाद हॉकी और फुटबॉल खिलाडिय़ों का नंबर है, जो राजनीति में मिले हुए अवसर को कामयाबी के गोल में बदलने में जुटे हैं। नवजोत सिंह सिद्धू, कीर्ति आजाद, चेतन चौहान जैसे क्रिकेटर जहां राजनीति में अपनी पारी संवार रहे हैं, वहीं ओलम्पिक रजत पदक विजेता निशानेबाज राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने राजनीति की रेंज में उतरते ही पदक जीत लिया। बहरहाल, जिस तरह खेल में खिलाड़ी के प्रदर्शन में हमेशा निरतंरता नहीं रहती, ठीक वैसे ही राजनीति में खिलाडिय़ों का प्रदर्शन उतार-चढ़ाव भरा रहा है।
 

खिलाड़ी तो खेल मंत्री…
राजनीति में अच्छा प्रदर्शन कर लोकसभा या विधानसभा में पहुंच रहे खिलाडिय़ों को अगर मंत्रिमंडल में शामिल किया जाता है तो देखने में यह आया है कि पहली प्राथमिकता उन्हें खेल मंत्रालय का जिम्मा देने की रही है।निशानेबाज राज्यवर्धन सिंह राठौड़, क्रिकेटर चेतन चौहान, लक्ष्मी रतन शुक्ला और पोलो खिलाड़ी अशोक चांदना इसके उदाहरण हैं। भारतीय सेना में रह चुके राज्यवर्धन ने 2004 के ओलंपिक खेलों में निशानेबाजी में रजत पदक जीता था। वे वर्ष 2013 में भाजपा में शामिल हुए और 2014 के लोकसभा चुनाव में जयपुर ग्रामीण सीट से सांसद बने। वह अभी केंद्रीय मंत्री हैं और उनके पास सूचना एवं प्रसारण व खेल मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार है। 2019 आम चुनाव में भाजपा ने राज्यवर्धन को एक बार फिर जयपुर ग्रामीण सीट से प्रत्याशी बनाया है।
सुनील गावस्कर के साथ सलामी बल्लेबाज रहे पूर्व क्रिकेटर चेतन चौहान राजनीति में अच्छी शुरुआत करने के बाद लंबी पारी खेल रहे हैं। उन्होंने क्रिकेट के बाद भाजपा से राजनीति की पारी शुरू की। वे उत्तर प्रदेश की अमरोहा सीट से दो बार सांसद रह चुके हैं। अभी वे उत्तर प्रदेश के खेल एवं युवा मामले मंत्री हैं।
भारत के लिए तीन एकदिवसीय मैच खेलने वाले पूर्व ऑलराउंडर लक्ष्मी रतन शुक्ला ने अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस की सदस्यता लेने के बाद पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 2016 में हावड़ा उत्तर सीट से जीत हासिल की। वे अभी प. बंगाल सरकार में खेल एवं युवा मामलों के राज्य मंत्री हैं।
इसी तरह राजस्थान में 2018 के विधानसभा चुनाव में पोलो खिलाड़ी अशोक चांदना हिंडोली सीट से लगातार दूसरी बार जीते। अभी वे खेल एवं युवा मामले राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) हैं। इसके अलावा उनके पास कौशल विकास सहित अन्य मंत्रालय भी हैं। उन्होंने 2014 में भीलवाड़ा सीट से लोकसभा का चुनाव भी लड़ा, लेकिन इस प्रयास को जीत में नहीं बदल पाए।
 

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सिद्धू संवार रहे अपनी पारी
पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू राजनीतिक पारी में भी सफल हैं, लेकिन वह विवादों से ज्यादा घिरे रहते हैं। सिद्धू 2004 में भाजपा में शामिल हुए। उसके बाद वे अमृतसर लोकसभा सीट से सांसद बने। इसी सीट से 2007 का उपचुनाव और 2009 का चुनाव भी जीते। 2016 में वे कुछ महीनों तक राज्यसभा सदस्य भी रहे। 2016 में उन्होंने भाजपा छोड़ दी और फिर 2017 में कांग्रेस का दामन थाम लिया। इसके बाद पंजाब विधानसभा चुनाव 2017 में वे अमृतसर पूर्व से विधायक बन गए। अभी वे पंजाब सरकार में पर्यटन, संस्कृति व संग्रहालय मंत्री हैं। वे कांग्रेस के स्टार प्रचारक भी हैं।
पूर्व क्रिकेटर कीर्ति आजाद भी राजनीति में मुखर रहे हैं। बिहार के मुख्यमंत्री रहे कांग्रेसी नेता भागवत झा आजाद के पुत्र आजाद को यों तो राजनीति विरासत में मिली है, लेकिन उन्होंने क्रिकेट कॅरियर के बाद राजनीति का रुख किया। आजाद 2014 में बिहार की दरभंगा सीट से तीसरी बार लोकसभा सांसद बने। वह 1993 में दिल्ली की गोल मार्केट सीट से विधायक भी रहे हैं। हाल ही में वे कांग्रेस में शामिल हो गए।
पूर्व क्रिकेट कप्तान मोहम्मद अजरुद्दीन की क्रिकेट पारी का अंत मैच फिक्सिंग स्कैंडल के कारण बेहद निराशाजनक तरीके से हुआ था। इसके बाद 2009 में वे कांग्रेस में शामिल हो गए और मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश) सीट से जीतकर लोकसभा पहुंचे। 2014 में उन्होंने राजस्थान की टोंक-सवाई माधोपुर सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन जीत हाथ नहीं लगी।
ये राज्यसभा में हुए नामित
पहलवान दारा सिंह 1998 में भाजपा में शामिल हुए। वे राज्यसभा में नामित होने वाले पहले खिलाड़ी थे। वे 2003 से 2009 तक राज्यसभा सदस्य रहे। इधर, क्रिकेट के मैदान पर बड़े-बड़े गेंदबाजों के छक्के छुड़ा देने वाले पूर्व भारतीय कप्तान सचिन तेंदुलकर 2012 से 2018 तक राज्यसभा में मनोनीत सदस्य रहे। लेकिन वे यहां ज्यादातर समय ‘बारहवें खिलाड़ी’ ही नजर आए। बॉक्सिंग रिंग में प्रतिद्वंद्वी को चित कर देने वाली मुक्केबाज मैरी कॉम को 2016 में राज्यसभा में नामित किया गया।
नहीं खोल पाए खाता
टीम इंडिया के टेस्ट क्रिकेट में सफल कप्तानों में से एक मंसूर अली खान पटौदी ने 1971 में विशाल हरियाणा पार्टी के टिकट पर गुडग़ांव लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन जीत का खाता नहीं खोल पाए। वर्ष 1991 में पटौदी कांग्रेस के टिकट पर मध्य प्रदेश की भोपाल लोकसभा सीट से चुनावी दंगल में उतरे, लेकिन यहां वे भाजपा के सुशील चन्द्र वर्मा के सामने क्लीन बोल्ड हो गए।
एकदिवसीय विश्वकप में पहली हैट्रिक लेने वाले तेज गेंदबाज चेतन शर्मा 2009 में बसपा के टिकट पर हरियाणा की फरीदाबाद सीट से लोकसभा चुनाव लड़े। यहां वे तीसरे स्थान पर रहे।
पूर्व क्रिकेटर मोहम्मद कैफ 2014 में कांग्रेस से उत्तर प्रदेश की फूलपुर लोकसभा सीट से उम्मीदवार थे, लेकिन वह चौथे स्थान पर रहे।
आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग के कारण चर्चा में रहे तेज गेंदबाज एस. श्रीसंत 2016 में भाजपा में शामिल हुए। वे केरल के विधानसभा चुनाव में तिरुवनंतपुरम सीट से लड़े, पर उन्हें शिकस्त मिली।
पूर्व ऑलराउंडर मनोज प्रभाकर ने भी क्रिकेट के मैदान से सियासत के दंगल में पैर जमाने की कोशिश की, लेकिन 1996 के लोकसभा चुनाव में दक्षिण दिल्ली संसदीय सीट पर उन्हें बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा।
बल्लेबाज विनोद कांबली लोक भारती पार्टी में शामिल हुए और 2009 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में विक्रोली सीट से उम्मीदवार बने, मगर करारी हार का सामना करना पड़ा।
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दमदार ‘किक’ का इंतजार
पूर्व भारतीय कप्तान प्रसून बनर्जी लोकसभा सांसद बनने वाले पहले प्रोफेशनल फुटबॉल खिलाड़ी हैं। वे 2013 के उपचुनाव में तृणमूल कांग्रेस से प. बंगाल की हावड़ा लोकसभा सीट से जीते। 2014 के लोकसभा चुनाव में वे फिर से सांसद चुने गए। अब 2019 में एक बार फिर तृणमूल ने उन पर भरोसा जताया है और उनसे जीत की हैट्रिक की उम्मीद है।
भारतीय टीम के स्टार फुटबॉलर और कप्तान रहे बाइचुंग भूटिया ने 2014 में तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर पश्चिम बंगाल की दार्जिलिंग सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें भाजपा के एसएस अहलुवालिया से शिकस्त खानी पड़ी। इसके बाद उन्होंने 2016 के विधानसभा चुनाव में सिलीगुड़ी सीट से किस्मत आजमाई, मगर यहां भी वे विफल रहे। 2018 में उन्होंने तृणमूल कांग्रेस का साथ छोड़ दिया। इसके बाद उन्होंने नए सिरे से राजनीतिक पारी शुरू करने के लिए अपने गृह राज्य सिक्किम में हमरो सिक्किम पार्टी का गठन किया। अब उनकी पार्टी सिक्किम में आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनाव लड़ रही है। भूटिया ने विधानसभा सीट गंगटोक से नामांकन दाखिल किया है।
पूर्व फुटबॉलर सोमाताई शैजा ने 2012 में मणिपुर की उखरूल सीट से विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए। 2017 के चुनाव में फिर से उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। वे भाजपा के टिकट पर चुनाव में उतरे थे।
पेनल्टी कॉर्नर को ‘गोल’ में बदलने की कोशिश
हॉकी खिलाड़ी असलम शेर खान का राजनीति में सफर उतार-चढ़ाव भरा रहा। उन्होंने 1984 में मध्य प्रदेश की बैतूल लोकसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीता। इसके बाद 1989 में वे हार गए। 1991 में वे फिर से सांसद चुने गए, मगर 1996 के चुनाव में हार गए। 2004 में वे नेशनल कांग्रेस पार्टी से भोपाल लोकसभा सीट से चुनावी मैदान में उतरे, पर इस बार भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा। 2009 में वे कांग्रेस के टिकट पर सागर लोकसभा सीट से चुनाव लड़े, लेकिन यहां भी हार गए।
हॉकी टीम के कप्तान रहे परगट सिंह 2012 में शिरोमणी अकाली दल से पंजाब विधानसभा चुनाव में जालंधर कैंट सीट से विधायक बने। इसके बाद 2017 में वे कांग्रेस के टिकट पर जीतकर विधानसभा पहुंचे।
भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कप्तान दिलीप टिर्की 2012 में बीजू जनता दल से राज्यसभा में पहुंचे। राज्यसभा सदस्य रहते हुए वे 2014 लोकसभा चुनाव में ओडिशा की सुंदरगढ़ सीट से चुनाव में उतरे, पर सफल नहीं हुए।
हॉकी टीम के पूर्व कप्तान धनराज पिल्लै ने भी 2014 में आम आदमी पार्टी में शामिल होकर अपना राजनीतिक कॅरियर शुरू किया।
ये भी खेल से सियासत में पहुंचे
करणी सिंह पहले लोकसभा चुनाव 1952 से लेकर 1977 तक राजस्थान की बीकानेर संसदीय सीट से सांसद रहे। वे निशानेबाज थे।
एथलीट (धाविका) ज्योर्तिमयी सिकदर ने भी राजनीति के ट्रैक पर माकपा के साथ दौडऩा शुरू किया। वे 2004 में पश्चिम बंगाल की कृष्णा नगर सीट से सांसद बनीं। अगली बार यानी 2009 के चुनाव में वह सांसद बनने की दौड़ में अपने प्रतिद्वंद्वी से पिछड़ गईं।
तीन बार ओलम्पिक में हिस्सा ले चुकी ***** फेंक खिलाड़ी कृष्णा पूनिया ने 2013 में कांग्रेस की सदस्यता ली। फिर उन्होंने सादुलपुर सीट से राजस्थान विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन हार गई। 2018 में वे फिर से चुनाव में उतरीं और विधायक बनने में सफल रहीं।
ओडिशा की बोलांगिर लोकसभा सीट से बीजू जनता दल से लगातार दो बार सांसद बन चुके के.एन. सिंह देव निशानेबाज रहे हैं। सांसद बनने से पहले वे विधायक भी रह चुके हैं। उनके दादा और पिता राजनीति में रहे हैं।
तैराकी में राष्ट्रीय चैम्पियन रही नफीसा अली 2004 में कोलकाता दक्षिण से कांग्रेस और 2009 में लखनऊ से सपा की प्रत्याशी थीं, लेकिन दोनों बार ही वे जीत नहीं सकीं।
पावर लिफ्टिंग और एथलेटिक स्पर्धाओं में लगातार चार बार विश्व चैम्पियनशिप में पदक जीत चुके मेजर सुरेन्द्र पूनिया ने 2014 में आप के टिकट पर सीकर से लोकसभा चुनाव लड़ा। हालांकि वे चुनाव हार गए। 2015 में उन्होंने आप से इस्तीफा दे दिया था। अब 2019 में वे भाजपा में शामिल हो गए हैं।
 

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