धीरे-धीरे मंदिरों से वे फूल इकट्ठा करने लगीं। अब उनके पास 45 मंदिरों के फूल आते हैं। अब वे इस काम से गांव की महिलाओं को भी सशक्त बना रही हैं। माया बताती हैं कि मैंने 19 वर्ष तक कॉर्पोरेट सेक्टर में काम किया। एक वक्त पर लगने लगा कि अब मुझे यह सब छोडक़र अपना कुछ करना है। फिर मैंने नौकरी छोड़ दी । मीनल अपने पारिवारिक बिजनेस में थीं। हम पर्यावरण को लेकर कुछ करने की बातें करते थे। इसी दौरान यह आइडिया आया।
बहाया जाता है फूलों का वेस्ट माया बताती हैं कि उन्हें फूलों के वेस्ट से उत्पाद बनाने का विचार कानपुर के एक स्टार्टअप से मिला। उन्होंने इस स्टार्टअप के बारे में पढ़ा था कि कैसे वे फूलों को रिसाइकल करते हैं। उस दौरान मैंने जाना था कि हर शहर, हर राज्य में मंदिरों से निकलने वाले जैविक वेस्ट को ज़्यादातर पानी में बहाया जाता है।