scriptधरती के नीचे मिला खजाना ही खजाना | Stash of ancient diamonds is discovered | Patrika News

धरती के नीचे मिला खजाना ही खजाना

locationजयपुरPublished: Aug 17, 2019 03:00:09 pm

Submitted by:

Shalini Agarwal

धरती बनने के बाद हुई थी ढेरों उथल-पुथल लेकिन अनछुआ रहा हीरों से भरा यह जखीरा, हीलियम आइसोटोप्स की मदद से मिला

धरती के कोर के पास हीरों से लबालब एक कुंड मिला है। यह कुंड धरती की सतह से 410 किलोमीटर नीचे है। यह खजाना करीब 4.5 बिलियन सालों से यूं ही पड़ा था लेकिन ब्राजील में एक ज्वालामुखी के फटने से वैज्ञानिकों को इसके बारे में पता लग गया। वैज्ञानिकों के एक अंतरराष्ट्रीय समूह ने हीरों के इस भंडार को ढूंढने के लिए हीलियम आइसोटोप्स की मदद ली थी। यह शोध हाल में पत्रिका साइंस में प्रकाशित हुआ है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, हीलियम आइसोटोप्स उनके लिए एक तरह से सटीक टाइम कैप्स्यूल साबित हुए और उन्होंने उन्हें धरती बनने के बाद उतार-चढ़ाव भरे उस कालखंड के बारे में काफी जानकारी दी। इस समय इतनी ज्यादा तीव्र भूगर्भीय क्रियाएं हुईं कि नई-नई बनी धरती पर कुछ भी मूल स्वरूप में नहीं रहा। इस बदलाव के दौरान धरती के अंदर मेंटल का एक हिस्सा, जो क्रस्ट और कोर के बीच कहीं था, वह अनछुआ रहा और अभी तरह वैज्ञानिकों को इस बात का अहसास भी नहीं था कि यह स्ट्रक्चर भी कहीं है। इसके बारे में पहला क्लू वर्ष 1980 में सामने आया, जब वैज्ञानिकों ने यह नोटिस किया कि एक जगह विशेष पर बालजात लावा में हीलियम-3 से हीलियम-4 आइसोटोप्स का अनुपात सामान्य से कुछ अधिक था। वैज्ञानिकों के लिए हैरानी इस बात की थी कि यह अनुपात उन उल्कापिंडों में पाए जाने वाले अनुपात के समान ही था, जो शुरुआत में धरती से टकराए थे। इससे वैज्ञानिकों को पता लगा कि यह लावा धरती के उस हिस्से से आया है, जो करोड़ों साल से बदला नहीं है। शोध की अगुवा ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी की डॉ. सुजेट टिम्मरमैन क के अनुसार, यही पैटर्न समुद्री आईलैंड बालजात में देखा गया, जहां लावा धरती के बहुत नीचे से आता रहता है, और जिससे हवाई और आइसलैंड जैसे आईलैंड बने। डॉ. टिम्मरमैन के अनुसार, सबसे बड़ी समस्या यही है कि हालांकि यह बालजात धरती की सतह पर आता है लेकिन इससे हमें इतिहास की एक झलक ही मिल पाती है। हम उस मेंटल के बारे में कुछ नहीं जानते, जहां से यह पिघल कर ऊपर आ रहा है। अधिक पता लगाने के लिए वैज्ञानिकों ने धरती के क्रस्ट के नीचे 150 किलोमीटर से 230 किलोमीटर के बीच बनने वाले सुपर डीप हीरों में हीलियम आइसोटोप्स रेशो के बारे में पता लगाने की कोशिश की। डॉ. टिम्मरमैन के अनुसार, हीरा सबसे कठोर पदार्थ है और इसे आसानी से नष्ट नहीं किया जा सकता, इसलिए यह धरती की गहराइयों में जानने के लिए सबसे अच्छे टाइम कैप्स्यूल हैं। हम ब्राजील के जुइना क्षेत्र में 23 सुपर डीप हीरों से हीलियम गैस निकालने में कामयाब रहे। इन हीरों का अध्ययन करके वैज्ञानिक यह बता सके कि ये हीरे धरती के नीचे 410 किलोमीटर से 660 किलोमीटर की गहराइयों से मिले हैं, जिसे ट्रांजिशन जोन कहा जाता है। इसके मायने यह हुए है कि धरती की शुरुआत से ही ये भंडार यहां पर है। हालांकि हीरों का जखीरा कितना बड़ा है, इसके बारे में कोई कुछ नहीं जानता और वैज्ञानिक मानते हैं कि अभी ऐसे और भंडार मिल सकते हैं।

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