न्यायाधीश मनीष भण्डारी व न्यायाधीश दिनेश चन्द्र सोमानी की खण्डपीठ ने जीआरजे डिस्ट्रीब्यूटर्स एंड डवलपर्स प्रा. लिमिटेड़ व क्रेडाई एनसीआर भिवाड़ी नीमराणा सोसायटी की याचिका पर यह आदेश दिया। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान नोटिस तामील होने के बावजूद किसी के हाजिर नहीं होने को गंभीरता से लेते हुए अतिरिक्त महाधिवक्ता राजेन्द्र शर्मा को इस मामले में सरकार की पैरवी करने के निर्देश दिए। प्रार्थीपक्ष की ओर से अधिवक्ता आलोक गर्ग व अन्य ने कोर्ट को बताया कि रेरा अधिनियम के तहत इसके लागू होने के एक साल के भीतर राज्य सरकार को नियामक प्राधिकरण और अपीलीय न्यायाधिकरण का गठन करना था, जो अवधि एक मई 2017 को पूरी हो चुकी है।
पहले एक साल तक प्राधिकरण व अपीलीय न्यायाधिकरण को कामचलाऊ व्यवस्था के तहत चलाया जा सकता था, लेकिन राज्य सरकार ने अब तक इस मामले में कोई प्रयास नहीं किया। प्राधिकरण में अध्यक्ष तथा कम से कम दो पूर्णकालिक सदस्य नियुक्त होने चाहिए, केवल पीठासीन अधिकारी प्राधिकरण नहीं हो सकता। इसी तरह खाद्य सुरक्षा अपीलीय न्यायाधिकरण को रेरा के तहत अपीलीय न्यायाधिकरण घोषित किया गया है, वह भी रेरा की धारा 45 के विपरीत है। न्यायाधिकरण में भी अध्यक्ष के साथ दो सदस्य होना आवश्यक है, जिनमें से एक न्यायिक व एक तकनीकी सदस्य हो। न्यायाधिकरण का अध्यक्ष केवल उच्च न्यायालय का वर्तमान या पूर्व न्यायाधीश ही हो सकता है। वर्तमान में इस पद पर डीजे स्तर के पूर्व न्यायिक अधिकारी कार्यरत हैं, जो खाद्य सुरक्षा अपीलीय न्यायाधिकरण के भी अध्यक्ष हैं।
कोर्ट ने अतिरिक्त महाधिवक्ता राजेन्द्र प्रसाद के जरिए राज्य सरकार से यह बताने को कहा है कि कानूनी प्रावधान के अनुसार कानून लागू होने के एक साल के भीतर रेरा प्राधिकरण व अपीलीय न्यायाधिकरण का गठन क्यों नहीं किया! साथ ही, चेताया कि1 मई 2017 के बाद भी प्राधिकरण व न्यायाधिकरण का गठन नहीं होने पर संतोषजनक जवाब नहीं आया तो इसे गंभीरता से लिया जाएगा। कानून का संसद की भावना के अनुरूप पालना नहीं होने को लेकर कोर्ट ने रेरा प्राधिकरण की ओर से जारी होने वाले आदेशों की पालना पर रोक लगा दी है।