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स्टोन स्लरी बन सकती है उद्योगों के लिए संजीवनी, आत्मनिर्भर राजस्थान की दिशा में हो सकती है नई पहल

locationजयपुरPublished: Jun 17, 2020 02:29:39 pm

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dinesh

स्टोन स्लरी ( Stone Slurry ) प्रदेश के कई उद्योगों के लिए संजीवनी साबित हो सकती है। इस स्लरी में प्रचुर मात्रा में कैल्शियम होने से इसका उपयोग प्रदेश की सीमेंट फैक्ट्रियों, पशु आहार, मुर्गी दाना और रंग रोगन में इस्तेमाल होने वाले कलर पेंट के साथ ही वॉल पुट्टी जैसी सामग्री में किया जा सकता है…

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जयपुर। स्टोन स्लरी ( Stone Slurry ) प्रदेश के कई उद्योगों के लिए संजीवनी साबित हो सकती है। इस स्लरी में प्रचुर मात्रा में कैल्शियम होने से इसका उपयोग प्रदेश की सीमेंट फैक्ट्रियों, पशु आहार, मुर्गी दाना और रंग रोगन में इस्तेमाल होने वाले कलर पेंट के साथ ही वॉल पुट्टी जैसी सामग्री में किया जा सकता है। वर्तमान में अनुपयोगी इस स्लरी की बड़ी खपत टाइल्स इंडस्ट्रीज में भी की जा सकती है। यदि राज्य सरकार इसे प्रोत्साहित करें तो यह आत्मनिर्भर राजस्थान की दिशा में पहल बन सकती है। इससे ना केवल स्थानीय उद्योगों को संबल मिलेगा बल्कि स्थानीय बेरोजगारों के लिए नई इंडस्ट्रीज रोजगार का एक साधन भी बन सकता है। प्रदेश में मार्बल, कोटा स्टोन, ग्रेनाइट और सेंड स्टोन यूनिटों से रोजाना हजारों लीटर स्लरी निकल रही है।
राज्य सरकार ने बजट घोषणा में अजमेर जिले को सेरेमिक हब बनाने का ऐलान तो कर रखा है लेकिन वर्तमान समय तक इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए। किशनगढ़ समेत अजमेर जिले के लिए यह उपयोगी मार्बल स्लरी एक वरदान साबित हो सकती है।
रोज निकलती हजारों लीटर स्लरी
प्रदेश में रोजाना हजारों लीटर मार्बल, कोटा स्टोन और ग्रेनाइट की स्लरी निकलती है जो कि अनुपयोगी है और उसे डंपिंग यार्ड में डाल दिया जाता है। करीब 800 से 900 टैंकर रोज स्लरी मार्बल और ग्रेनाइट फैक्ट्री से निकलती है। मार्बल और ग्रेनाइट फैक्ट्रियों से रोज निकलने वाली स्लरी को डंपिंग यार्ड में डाल दिया जाता है।
बेहतर फिल्मी शूटिंग लोकेशन
मार्बल स्लरी से भरे यह डंपिंग यार्ड बर्फीली वादियों से नजर आता है। इससे यह प्रदेश का बेहतर फिल्मी शूटिंग लोकेशन स्थल के रूप में भी विकसित हो सकता है। यहां प्री वेडिंग शूटिंग, कई फ़िल्मी गानों और सीरियल की शूटिंग के साथ ही विज्ञापनों को भी शूट किया जा चुका है।
इससे बने उत्पाद ईको फ्रैंडली
उद्यमियों का कहना है कि केंद्र और राज्य सरकार ध्यान केंद्रित करें तो कोटा में स्लरी आधारित उद्योगों की नई श्रृंखला खड़ी हो सकती है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस स्लरी के उत्पाद ईको फ्रैंडली होते हैं। स्लरी आधारित उद्योग ग्रीन श्रेणी में शामिल किया गया है। केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान रुड़की ने कोटा स्टोन की स्लरी से वैल्यू एडिशन कर उत्पाद बनाने की तकनीकी इजाद की है। यह तकनीक पाषाण वेलफेयर फाउंडेशन को दे दी है। स्लरी आधारित पहला स्टार्टअप 2 साल पहले कोटा में शुरू किया गया था।
मार्बल स्लरी के इस्तेमाल से नए उद्योग स्थापित किए जा सकते हैं साथ ही कई उद्योगों को संबल दिया जा सकता है।
— सुधीर जैन, अध्यक्ष, किशनगढ़ मार्बल एसोसिएशन

सीबीआरआई की तकनीक के तहत टाइल्स इंटरलॉकिंग तैयार करने में कच्चे माल के रूप में 87 फीसदी कोटा स्टोन की सैलरी उपयोग में आती है। शेष में सेंड स्टोन की गिट्टी, सीमेंट, पानी आदि का उपयोग किया जाता है।
— जितेंद्र फतनानी, संचालक, पाषाण वेलफेयर फाउंडेशन
जालौर में 1300 से ज्यादा ग्रेनाइट इकाइयां है। यहां से हजारों लीटर स्लरी निकलती है। इसे बड़ी मात्रा में डम्प किया जाता रहा है। इसके उपयोग से कई उद्योगों को फायदा हो सकता है।
— लालसिंह धानपुर, ग्रेनाइट एसोसिएशन, जालौर
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