जाने दो, छोड़ो भी अब, तुम तो जानते हो भय्या ये पागल हो चुका है। किसी ने मामले को रफा-दफा करते हुए कहा। रघु मुजरिमों की तरह घुटनों में अपना सिर घुसाए उकडू बैठा रहा। लाइनमेन की सारी मार और सारी जिल्लत को बर्दाश्त करते हुए, वह एक शब्द भी नहीं बोला। जब किसी ने उसका हाथ खींच कर उठाया फिर ढकेला गांव की ओर तो उसकी मैली चिथड़े हुई कमीज की बांह और फट गई चरर…से। वह अपना सफेद पायजामा जो मैल से काला नजर आता था मिट्टी में लथेड़ता हुआ अपमानित गांव की ओर चला गया।
दो साल से रघु का यह हाल हो गया है। पागलों की तरह गांव में घूमता है, कोई खाना दे देता है तो खा लेता है वरना भूखा गांव की देवी माता की ओटली पर सो जाता है जो घने पीपल से ढकी हुई है। इतना मैला कुचैला कि घनी छांव में उसका अस्तित्व ही दिखाई न देता। यह माता की ओटली गांव की चौपाल की तरह भी जहां -गांव की सारी अच्छी बुरी खबरें लोगों की जुबान पर सवार हो पहुंचती थी।
दो साल पहले रघु एक गबरू जवान था। गांव के ही तीन चार लड़कों से दोस्ती कर रखी थी। दारू, गांजे, चरस की लत इन सबको थी। उनमें रूसी इस काम में माहिर था कि नशे की चीजों का इंतजाम करता था। इसके लिए पैसों की जरूरत पूरी करने के लिए कुछ दिनों से इन्होंने बिजली के तार काट कर बेचने का काम शुरू किया था। गांव छोटा था, जल्दी ही रात को लोग घरों में दुबक जाते। गांव के बाहर दो खंबों पर बिजली का ट्रांसफार्मर रखा था और डी.पी. स्वीच लगे थे। वहीं से फ्यूज की पेटी खोल बिजली बंद कर देते फिर एक खंबे से दूसरे, दूसरे से तीसरे और फिर कई मीटर तार काट कर बंडल बनाते और शहर में ठिकाने लगा आते।
गांव में बिजली की आंख मिचौली तो चलती ही रहती है। कई-कई घंटे बिजली गुल रहती तो रघु और उसके दोस्तों की चोरी का पता ही न चलता। दूसरे तीसरे दिन चार मील जाकर कस्बे के बिजली आफिस में शिकायत दर्ज कराते और लाइनमेन बिजली दुरूस्त करने आता तब लाइन कटने की बात पता चलती। तब तक ये लोग माल ठिकाने लगा चुके होते। गांव से बाहर मिट्टी की खदान पर जब रात का सन्नाटा पसर जाता तो वहीं इनकी महफिल जमती। नशे में अक्ल उछालें मारने लगती तो सब दिल खोल कर रख देते। रघु नशे में अपनी नई नवेली बीवी कुसुम की खूबसूरती की तारीफें करने लगता, उसके नखरे और रात की सारी बातों का बखान करता तो उसके दोस्त कुछ देर के लिए मस्त हो जाते, पर रूसी इसके आगे की सोचने लगता।
रूसी नशे में बकता यार रघु कभी हमें भी भाभी से मिलाओ। मुंह दिखाई में गुरू यह सोने की चेन दूंगा और गले से लॉकेट वाली चेन उतारने लगता। रघु का नशा गुस्से में बदल जाता और वह गालियां देने लगता, और रूसी को मारने खड़ा हो जाता। उसके दूसरे दोस्त बीच बचाव करते तब जा कर वह थोड़ा ठंडा होता। पर उसे कुसुम की याद फिर सताने लगती क्योंकि वह अपनी पत्नी को हद से ज्यादा प्यार करता था।
दो साल पहले जब वह रात में बिजली के तारों की चोरी करता था तो दिन में इसी चौपाल पर घुन्ना बना बैठा रहता और उसकी करतूतों से जन्मी गांव वालों की कई कष्टप्रद कहानियां सुनता जो उसके कठोर हृदय पर बेअसर साबित होती। जैसे साबू ने गरीबी के बावजूद बेटे चंदन से बहुत उम्मीदें बांधी थी। बारहवीं में अच्छे नंबरों से पास होगा तो उसे इंजीनियर बनाएगा। पर गणित और साइंस के पेपरों की रात बिजली बंद रही। रघु की काली करतूतों का साया पड़ गया। आठ दिन नए तार खींचने में लग गए। तब तक साबू का काता पींजा कपास हो गया।
विधवा जानकी के जेठ की धूप में दिन- दिन भर मजूरी कर बेटी के लिए जोडा़ गया पैसा, चांदी की रकम और नकली रेशम की लाल साड़ी उसी काली रात में चोरी हो गए जो रघु के कारनामों की देन थी। धन्ना की बहू ने इसी अंधेरे में तूवर काठी के ढेर में हाथ डाला कि सांप ने उसके जीवन में ही अंधेरा कर दिया। धन्ना के घर में अब रोटी पानी करने वाली ही न रही तो अब बाप बेटे जैसे तैसे टिक्कड़ सेंक कर मजदूरी पर जाने को मजबूर हो गए। सुखनी प्रसव पीड़ा से छटपटा कर मर गई पर बिजली न होने पर अंधेरे में पास के कस्बे की डाक्टरनी नहीं आ सकी।
यह सारे दुख भरे किस्से बिजली गायब होने पर काली रात में जन्मे प्रेत की तरह गांव की हर गली, हर घर में मनहूसियत की कालिख की तरह छा गए थे। गांव वालों के दिलों से निकलती आहों से बेखबर रघु अपनी शैतानियत में मगन था।
फिर अचानक एक दिन रघु के घर के सामने भीड़ जमा थी। रघु पागलों की तरह चीख रहा था। काली रात के इस प्रेत ने आज रघु की सारी खुशियों को लील लिया था। रघु की करतूतों की वजह से गांव के बेगुनाहों की चीख पुकार और क्रंदन से इतना गहरा अंधेरा फैला कि उसने रघु के अस्तित्व को ही समाप्त कर दिया। बेगुनाहों पर जुल्म सितम से निकली आहें शोले बनकर कैसे जीवन की सारी खुशियों को नष्ट कर देती हंै।
रघु तो जीवन भर दूसरों की जिंदगियों में अंधेरा फैलाता रहा था, आज वह सारे अंधेरे परत दर परत जमा होकर घने काले अंधेरे में बदल गए। मनुष्य को अपने किए गए पापों की तस्वीर इन्हीं अंधेरों में दिखाई देती है। रघु ने पिछली रात फिर तार काटने की योजना बनाई थी। सारे साथी उसके साथ थे, सिर्फ रूसी को छोड़कर। आज रात रघु के द्वारा फैलाए अंधकार मे बलात्कार और हत्या के बाद कुसुम की बेजान लाश को उठाया गया तो उसकी भींचीं हुई मुटठी से मिला लॉकेट। रघु ने एक जोर की चीख मारी पागलों की तरह।
आज वह काले दर्दनाक अंधेरों की परतें उसके जेहन में जम गई हैं जिसे अब कोई नहीं निकाल सकता। रघु अब पागल हो चुका है और रोशनी की तलाश में बिजली के खंबों और टावरों पर चढ़ता फिरता है। क्या अब यह बिजली की रोशनी उसके अंदर पसरे स्याह अंधेरे को दूर कर सकेगी?