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कहानी-बिन बुलाई मेहमान

locationजयपुरPublished: Oct 17, 2020 12:42:11 pm

Submitted by:

Chand Sheikh

नर्स उनकी हालत देख कर अंदाजा लगा चुकी थी कि यह भी दूसरी बहुत सी जन्म लेने वाली बिटियाओं में से एक है जो बेटों की चाहत रखने वालों के लिए ‘बिन बुलाई मेहमान’ होती हैं।

कहानी-बिन बुलाई मेहमान

कहानी-बिन बुलाई मेहमान

रूपाली तिवारी
कहानी

महीनों के इंतजार के पूरा होने का समय बस आ ही गया है। कल ही मम्मी ने फोन पर बताया कि माधवी आज लास्ट चेक अप के लिए गई थी। चेक अप करने के बाद डॉक्टर ने बताया कि बेबी का सिर नीचे की ओर फिक्स नहीं हुआ है। अगर यह दर्द शुरू होने के साथ नॉर्मल स्थिति में आ जाता है तो अच्छी बात है, नहीं तो फिर परसों तो हर हाल में ऑपरेट करना ही होगा। इसलिए डॉक्टर ने बोला है कि आप लोग चाहो तो पण्डित जी से पूछ सकते हो कि दो दिन के अंदर शुभ समय कौन सा रहेगा। डॉक्टर ने यह भी बोला है कि ऑपरेशन करने के लिए आप लोगों को सुबह 8 बजे तक हॉस्पिटल आ जाना है।
ताज्जुब हुआ यह सुनकर कि आजकल डॉक्टर खुद ही कह देते हैं कि भई पण्डित जी से शुभ मुहूर्त पूछ लो कि पेट पर कब कट लगाना है। हमारी यह मानसिकता जो हमारे संस्कारों से जुड़ी है कि हर कार्य शुभ मुहूर्त के अनुसार ही करना चाहिए। कुछ लोग इसे हमारे संस्कार के स्थान पर अंधविश्वास का नाम भी दे देते हैं। पर सन्तानोत्पत्ति के लिए शुभ मुहूर्त मालूम करना, ये आधुनिक काल की वैज्ञानिक प्रगति का आश्चर्यजनक सत्य है या प्रकृति के नियमों का उल्लंघन। ईश्वर ही जाने!
माधवी और उनके परिवार के साथ हमारा कोई खून का रिश्ता तो नहीं पर आपस में अपनापन, मेलजोल खून के रिश्ते से कम भी नहीं है। क्योंकि बरसों से पड़ोसी जो हैं और रिश्तेदारों से कहीं ज्यादा निकट हैं और खासकर तब जब आपस में आचार-विचार मिलते हों तो! बस कुछ ऐसा ही संबंध है हम लोगों के परिवारों में, एक दूसरे के हर सुख-दुख की खबर रहती है।
माधवी के पहले से एक आठ साल की बेटी ‘पाखी’ है बहुत प्यारी समझादार सी। माधवी पहली बार गर्भवती हुई तो हमेशा की तरह जैसे होता है कि पेट वाली महिला को दुनिया बेटे की मां ही कहती है, उससे भी इसी प्रकार की आशाएं बांधी गईं। और सबसे बड़ी बात तो यह थी कि उसके पति महेश की भी बेटे की ही चाहत थी।
माधवी ने गर्भावस्था के वो नौ महीने कैसे डर-डर कर कितने भय में निकाले थे। सबको पता चलता था उसके डरे-सहमे चेहरे को देखकर। कहते हैं कि गर्भवती स्त्री को सदा खुश और संतुष्ट रखना चाहिए पर यहां तो उल्टा ही हुआ था। ईश्वर की इच्छा को कौन चुनौती दे सका है। अंतत: वही हुआ, जो लिखा था। माधवी और महेश के भाग्य में लड़के का नाम रटते-जपते प्यारी सी बिटिया रानी ‘पाखी’ का जन्म हुआ।
पाखी के चार साल बाद माधवी फिर से गर्भवती थी। इस खबर मिलने के बाद से ही वह इस बात से बहुत डरने लगी थी कि अगर फिर से बेटी हुई तो! उसको अभी दो महीने ही हुए होंगे कि उसकी बुआ सास जो कि पण्डितों में कुछ ज्यादा ही विश्वास रखती थी, उनको जैसे ही इसकी सूचना मिली तो वह माधवी की सास को अपने पण्डित जी के यहां ले गई, यह जानने के लिए कि इस बार क्या होने वाला है बेटा या बेटी?
और फिर जो हुआ, यह सुनकर सच में बहुत गुस्सा आया। बहुत दुख और ग्लानि हुई उस बात को याद कर कि ‘औरत ही औरत की दुश्मन होती है। पण्डित जी ने बताया कि इस बार भी बेटी होने का ही योग है। बस फिर क्या था, बुआ सास और माधवी की सास माधवी को गर्भपात के लिए मनाने लगीं। वो दोनों क्या, माधवी का पति और उसके ससुर तक एक और बेटी नहीं चाहते थे। रोज नई-नई बातें बनाकर दबाव बनाया जाता कि इस गर्भ को गिरा दो, दूसरी बेटी नहीं चाहिए हम लोगों को इस घर में! बेचारी माधवी, सोच ही नहीं पा रही थी, क्या करे और क्या ना करे। अपने मम्मी-पापा को भी क्या बोले, रहना तो यहीं है ना ससुराल में! कैसे उन्हें बताए कि क्या हो रहा है मेरे साथ।
सोच कर ही कितना अजीब लगता है ना कि पूरा परिवार एक मां को उसके पेट में पल रहे उस नन्हें से शिशु की हत्या करने का दबाव बना रहा है। माधवी के मन में हर समय यही सवाल आते रहते कि आखिर क्यों सब ऐसा कर रहे हैं। इतना संपन्न ससुराल है मेरा। कोई कमी नहीं तो फिर क्या एक और बेटी का पालन- पोषण नहीं कर सकते। क्यों मुझासे पाप करवाना चाहते हैं? क्यों सब पाप कर रहे हैं? किसी बड़े को मारो या पेट में पल रहे नन्हें से शिशु को, बात तो एक ही है ना। है तो हत्या ही ना। वो कोई मांस का निर्जीव टुकड़ा नहीं है, वह तो एक सजीव प्राणी है! कैसे मार दूं अपने ही शिशु को। ऐसा करके खुद को माफ कर पाऊंगी कभी?
पर बेचारी कब तक उन सबका दबाव झोल पाती। रहना तो वहीं था ना उसे, उन सभी के साथ। आखिर उसने वो मौत की टेबलेट खा ही ली और अपने पेट में पल रही उस नन्हीं सी जान को रौंद दिया। कुचल डाला अपनी ही फुलवारी की उस नन्हीं कली को खिलने से पहले! कितना दर्द, कितनी पीड़ा हुई होगी, उसे यह सब करते हुए। सोच कर ही सिहरन होती है, कितने महीनों, यह दर्द उसके चेहरे, उसकी बातों, उसकी उदास आंखों में दिखाई देता रहा, आखिर मां जो थी वो उस नन्हीं कली की, कैसे भूल जाए, कैसे खुद को माफ कर दे?
वही माधवी अब इस घटना के 8 साल बाद फिर से गर्भ से थी और इस बार तो घर में सबको पक्का विश्वास है कि इस बार बेटा ही होने वाला है। क्योंकि इस बार बुआ सास के पण्डित जी ने ग्रह-गोचर देख कर बताया है। बुआ जी तो माधवी के घबराने पर बड़ी खुश होकर बोल रही थी, अरी! चिंता क्यों करती है, इस बार बेटा ही है। आराम से रह, बस अब तो जल्दी ही आने ही वाला है, बेटा ही होगा। पण्डित जी ने बताया है तो चिंता किस बात की?
उस दिन माधवी और परिवार के सभी सदस्य जल्दी ही हॉस्पिटल चले गए, क्योंकि माधवी को जब दर्द नहीं हुआ तो डॉक्टर के अनुसार ऑपरेशन करना ही एक मात्र विकल्प था। ज्यादा इंतजार करने से मां और बच्चे दोनों की ही जान को खतरा हो सकता था। परिवार में सबने पण्डित जी से ऑपरेशन का मुहूर्त भी मालूम कर लिया था। सुनने में अजीब सा लगता है पर दुनिया में आजकल यह सब भी हो रहा है।
आखिरकार माधवी को ऑपरेशन थिएटर में ले गए। शुरू से ही सब पण्डित जी के इस बार बेटा होने की बात सौ प्रतिशत गारंटी के साथ बताने के कारण बेहद खुश और आश्वस्त थे कि अब खबर आई, अब आई। सब के दिल की धड़कन रुकी हुई लग रही थी, जो बेटे के पैदा होने की खबर पर ही फिर से चलने लगेगी! अगले ही कुछ पलों में ऑपरेशन थिएटर का दरवाजा खुला और एक नर्स एक शिशु को अपने हाथ में हरे कपड़े में पकड़े बाहर निकलते हुए बोली, माधवी के साथ कौन है और कपड़ा हटाते हुए बोली, यह देखिए लक्ष्मी आई है! उसका यह बोलना था और वहां इंतजार कर रहे सब लोगों के जैसे सांप सूंघ गया। उस समय सबके चेहरे देखने लायक थे! सबके चेहरों पर हवाइयां उड़ रही थीं। बिल्कुल शांति छा गई थी, ये सुनकर जिसकी उन्हें सपने में भी कोई आशा नहीं थी।
नर्स अब भी इस इंतजार में थी कि परिवार से कोई तो आ कर इस नन्हीं बिटिया को अपनी गोद में ले और मुझो बधाई भी दे। कोई तो इसे निहार कर इसे दुलार करे और देखे कि किस जैसी हुई है, इनकी नन्हीं बिटिया! पर वह नर्स भी अब तक उनकी ऐसी हालत देख कर अंदाजा लगा चुकी थी कि यह भी दूसरी बहुत सी जन्म लेने वाली बिटियाओं में से एक है जो उन सभी बेटों की चाहत रखने वाले परिवारों के लिए उनकी अपनी संतान नहीं, उनकी अपनी बेटी नहीं, उनका अपना खून नहीं, बल्कि केवल एक ‘बिन बुलाई मेहमान’ होती हैं।
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