scriptकहानी – अनेक लोगों की पसंद है डेफनबेकिया… | Story - Defenbekiya by Vishnu Prasad Chaturvedi | Patrika News

कहानी – अनेक लोगों की पसंद है डेफनबेकिया…

locationजयपुरPublished: Apr 10, 2018 04:18:02 pm

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dinesh

डेफनबेकिया कहीं का’ मैंने गुस्से में कहा और पीछे मुड़कर तेज कदमों से चलकर खुशाल के बंगले से बाहर आ गया…

Defenbekiya
‘सा …..ला……डेफनबेकिया कहीं का’ मैंने गुस्से में कहा और पीछे मुड़कर तेज कदमों से चलकर खुशाल के बंगले से बाहर आ गया। जिस बंगले में घंटों बैठकर गप्पे मारा करता था, उस दिन मैं कुछ सैकण्ड ही रुक पाया था।
खुशाल का नाम शहर के प्रमुख पैसों वालों में गिना जाता है। शहर के सबसे महंगे समझो जाने वाले क्षेत्र में उसका शानदार बंगला है। बंगले के रखरखाव के लिए ही बहुत से लोग रखे हुए हैं। इसी से मैंने अनुमान लगाया था कि खुशाल बहुत पैसे वाला है। अधिक जानने की मैंने कभी कोशिश नहीं की थी। अधिक जानने की आवश्यकता मुझो अनुभव नहीं हुई थी। आज तक मुझो समझा नहीं आया कि खुशाल से मेरी व किश्वर की पहचान को मित्रता का नाम दिया जा सकता है या नहीं। हम तीनों के परिवेश में अन्तर अधिक, समानता कम है। किश्वर एक फैक्ट्री में डाइंग मास्टर का काम करता है। मैं एक सरकारी स्कूल में शिक्षक हूं। खुशाल के विषय में आप जानते ही हैं।
हम तीनों को जोडऩे वाला एक मात्र बिंदु था साहित्य प्रेम। किश्वर गीत लिखता है। गाता भी अच्छा है। मैं कहानी व व्यंग्य लिखता हूं। खुशाल को साहित्य लिखने का समय नहीं मिल पाता। उसे रचनाकारों के मुंह से साहित्य सुनने का शौक है। स्थानीय साहित्यकारों की संगोष्ठियों में हमारी मुलाकातें होती रही थीं। खुशाल मेरी व किश्वर की रचनाओं से कुछ अधिक ही प्रभावित था। खुशाल हमें अपने घर बुलाने लगा। पहले हमें खुशाल के बंगले पर जाने पर झिाझाक होती थी। उसके व्यवहार ने धीरे धीरे सब सामान्य कर दिया। हम घंटों उसके यहां बैठते। खुशाल हमारी रचनाएं सुनता। फिर उनकी समीक्षा किया करता था। मुझो लगता कि खुशाल स्वयं नहीं लिख पाता और हमारे लिखे में भागीदारी निभा कर सृजन सुख पाने का प्रयास करता है। इसमें कुछ बुरा भी नहीं था। यह सिलसिला वर्षों से निरन्तर चलता आ रहा है।
खुशाल का एक शौक और था जो उसे आम धनपतियों से अलग करता था। खुशाल को पौधों से बहुत लगाव है। अपने बंगले अहाते में उसने अनेक पौधे लगा रखे हैं। यूं तो पौधों की देखभाल के लिए एक अशंकालीन माली रखा हुआ है, समय मिलने पर खुशाल स्वयं पौधों को पानी देना पसंद करता है। पौधों के पोषण व धूप-छाया का भी पूरा ध्यान रखता है। दिन के समय खुशाल के यहां जाना होता तो वह हमें अपने छोटे मगर समृद्ध बगीचे में अवश्य ले जाता। पौधों के विषय में खुशाल की जानकारी भी अच्छी थी।
खुशाल के बगीचे की एक बात मुझो अखरती थी। उसने कई घमलों में डेफनबेकिया लगवा रखा था। डेफनबेकिया की चमकदार हरी पत्तियों पर पीले चकते पाए जाते हैं। देखने में सुन्दर लगता है। खुशाल ही क्यों अनेक लोगों की पसंद है डेफनबेकिया। नर्सरी वाले इसे गोपीकृष्ण के नाम से बहुत महंगे बेचते हैं। मैंने एक बार नर्सरी वाले से पूछा था कि डेफनबेकिया गोपीकृष्ण कैसे हो गया? बाबू जी आपने बिहारी जी का दोहा नहीं सुना – मेरी भव बाधा हरौ, राधा नागरि सोय, जा तनु की झाांई परे, स्याम हरित दुति होय। डेफनबेकिया में राधा ? कृष्ण ?? साक्षात उपस्थित रहते हैं। नर्सरी वाले की बात पर मैं मुस्करा कर रह गया था।
डेफनबेकिया के प्रति मेरी नापसंद का कारण इसका अनुपयोगी होना है। डेफनबेकिया की कोशिकाओं में नुकीले क्रिस्टल पाए जाते हैं। जब कोई इसकी पत्ती को चबाता है तो क्रिस्टल गले में अटक कर परेशानी पैदा कर देते हैं। एक बार मैंने खुशाल को टोकते हुए कहा था कि डेफनबेकिया को इतना सिर क्यों चढ़ा रखा है। केवल रूप ही सब कुछ नहीं होता, व्यक्ति हो या वस्तु, उसे उपयोगी भी होना चाहिए। खुशाल कुछ नहीं बोला हंस कर रह गया था। बाद में खुशाल के माली ने मुझो बताया था कि बगीचे वाली जमीन पर धूप बहुत कम आती है। फूलों के पौधे वहां नहीं लगाए जा सकते। सुंदर पत्तियों के पौधों को चुनना पड़ा है। माली का वह तर्क भी मुझो अधिक प्रभावित नहीं कर पाया था।

उस दिन सुबह किश्वर ने फोन कर मुझो अस्पताल बुलाया था। फोन पर किश्वर की कांपती आवाज से मैंने अनुमान लगा लिया था कि वह परेशानी में है। अस्पताल में पता चला कि किश्वर के पेट में बहुत दर्द है। पीड़ा नाशक देने से कुछ राहत हुई है। डॉक्टर का कहना था कि ऑपरेशन करने पर ही स्थायी आराम मिलेगा। ऑपरेशन के लिए कम से कम दो लाख की तुरन्त आवश्यकता थी। किश्वर की पत्नी रजनी ने बताया कि उसके पास ऐसा कुछ नहीं है जिसको गिरवी रख कर रुपए उधार लिए जा सके। मैंने रजनी से कहा चिंता मत करो, कुछ इंतजाम हो जाएगा।
मुझो तुरंत खुशाल याद आया। मेरा अनुमान था कि दो लाख रुपए खुशाल के लिए कोई बड़ी रकम नहीं है। संकट की घड़ी में खुशाल मदद अवश्य करेगा। किश्वर के इलाज की बात करते ही वह रुपए निकाल कर मेरे हाथ पर रख देगा। यही उम्मीद लेकर मैं खुशाल के पास गया था। मेरा अनुमान जन्म के कुछ ही मिनट बाद ही धराशायी हो गया। रुपए उधार मांगते ही खुशाल के चेहरे के भाव बदल गए थे।
खुशाल बोला अभी तो मेरे पास नहीं है, कुछ इंतजाम करते हैं। मुझो खुशाल की वह बात नागवार लगी। मेरा अनुमान था कि खुशाल बहाना बना कर बात को टाल रहा है। किश्वर के साथ उसकी कोई हमदर्दी नहीं है।
मुझो लगा कि मेरे सामने खुशाल नहीं डेफनबेकिया का पौधा खड़ा है। अपने लिए जीने वाला दिखावटी जीव है। मुझो लगा कि पर पीड़ा को अनुभव नहीं करने वाला इंसान कैसे हो सकता है? क्रोधवश मेरे मुंह से उसके लिए डेफनबेकिया शब्द निकल गया। मेरे कानों ने सुनना व मस्तिष्क ने सोचना ही बंद कर दिया था। खुशाल आगे क्या बोला था उस पर ध्यान दिए बिना मैं उसके यहां से लौट आया था।
मेरे बचत खाते में दो लाख रुपया नहीं था। तभी मुझो याद आया कि दो एफडी बच्ची की शादी के लिए करा रखी है। उन पर ऋण के रूप में दो लाख आसानी से मिल जाएगा। इस विचार ने मेरे गुस्से को बहुत कुछ ठेडा कर दिया था। मैंने अस्पताल लौटकर रजनी को बताया कि धन की व्यवस्था हो गई है। कल ऑपरेशन करवा लेते हैं।

कुछ समय बाद रजनी ने किसी को कहा नमस्कार भाई साहब। मेरी नजरें भी उस ओर उठ गईं। देखा तो खुशाल खड़ा था। मैंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। मुझो समझा ही नहीं आ रहा था कि खुशाल को वहां देख मैं कैसे रिएक्ट करूं?
रजनी को मैंने खुशाल के व्यवहार के विषय में कुछ नहीं बताया था। वैसे छुपाने जैसा भी कुछ नहीं था। मगर मेरी यह धारणा रही है कि कभी कभी सच भी जहर बन जाता है। रजनी को आशा थी कि खुशाल किश्वर की मदद को अवश्य आगे आएगा। यदि मैं रजनी को खुशाल के व्यवहार का सच बता देता तो वह निराशा में डूब सकती थी। रजनी के निराश होने का बुरा प्रभाव किश्वर की देखभाल पर पड़ सकता था। रजनी के चहेरे की अशान्ति किश्वर के दर्द को बढ़ा देती।

‘हां मैं डेफनबेकिया की तरह अनुपयोगी हूं। जानते हो डेफनबेकिया कष्ट तो पहुंचा सकता है मगर किसी की जान नहीं लेता। मैं भी किश्वर के प्राण को संकट में नहीं डाल सकता। मैंने पैकेज से अधिक धन अस्पताल के खाते में ट्रांसफर कर दिया है। अब कोई परेशानी नहीं होगी।’ खुशाल ने मेरे समीप बैठकर धीरे से कहा था, बात समाप्त होते ही खड़ा हो गया। तेज कदमों से चलता खुशाल अस्पताल से ठीक उसी तरह बाहर हो गया जिस तरह मैं उसके बंगले से निकला था।
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